उत्तर प्रदेश में मुख्यमंत्री बनने के बाद योगी आदित्य नाथ की पहली कड़ी परीक्षा प्रदेश के निकाय चुनावों को लेकर होनी थी जिसमें सब से बड़ी प्रतिष्ठा महानगरों के महापौर के चुनाव की थी। इस दृष्टि से देखा जाए तो मुख्यमंत्री श्री येागी ने इस परीक्षा को सिर्फ उत्तीर्ण ही नहीं किया है बल्कि भाजपाई मुख्यमंत्रियों में टॉपर हो गये हैं। इससे पूर्व महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, राजस्थान में निकाय चुनावों में वहां के मुख्य मंत्रियों को इतनी बड़ी सफलता नहीं मिली। उत्तर प्रदेश में नगर निगम महापौर के 16 , नगर निगम के पार्षद 1300 , नगर पालिका परिषद अध्यक्ष 198 , नगर पालिका परिषद सदस्य 5261 , नगर पालिका परिषद अध्यक्ष 438 और नगर पंचायत सदस्य के 5434 सदस्यों का चुनाव होना था। हमारे संविधान की व्यवस्था में लोकसभा और विधान सभा के चुनावों पर ही अक्सर चर्चा होती है लेकिन निकाय चुनावों पर बहुत ध्यान नहीं दिया जाता। हालांकि इनके प्रतिनिधियों की कुल संख्या सांसदों और विधायकों से कहीं ज्यादा होती है और स्थानीय स्तर के ये प्रतिनिधि हमारे देश के लोकतंत्र की नींव होते हैं। इस बार उत्तर प्रदेश में सभी राजनीतिक दलों ने अपने पार्टी चुनाव चिह्न पर चुनाव लड़ा था, इसलिए 2019 में होने वाले लोकसभा चुनाव का सेमी फाइनल माना जा रहा था। भाजपा ने श्री योगी को जो दायित्व सौंपा था, उसे उन्होंने बड़ी खूब सूरती से निभाया है। निकाय चुनावों में भाजपा को शानदार विजय मिली है और नगर निगम महापौरों के चुनाव में भाजपा पूरी तरह छा गयी। नगर निगमों नें भाजपा का पहले भी वर्चस्व था। उसमें बढ़ोत्तरी श्री योगी ने कर दी।
अब इन चुनाव नतीजों पर लोग अपनी तरह से राय दे रहे हैं। विपक्षी राजनीतिक दल तमाम तरह के आरोप मढ़ रहे हैं, जबकि सत्ता पक्ष इसे प्रदेश की जनता का निष्पक्ष फैसला मान रही है। प्रदेश के उपमुख्यमंत्री और पूर्व में लखनऊ के महापौर रह चुके डा- दिनेश शर्मा ने इन चुनावों के नतीजो पर तार्किक पक्ष रखा। उन्होंने कहा कि लोग नोटबंदी और जीएसटी की आलोचना कर रहे थे। इस बारे में तरह-तरह की बातें कही गयीं। नोटबंदी का उद्देश्य प्रधान मंत्री नरेन्द्र मोदी ने साफ-साफ बताया था कि इससे काला धन रखने वालों पर शिकंजा कसा जाएगा। देश के दुश्मन आतंकवादी और नक्सलवादियों की कमर तोड़ी जाएगी। आर्थिक सुधार के लिए यह बहुत जरूरी है। जनता ने इसे समझा था और विपक्षी नेताओं ने जनता को भडक़ाने का बहुत प्रयास किया क्योंकि उसे निश्चित रूप से परेशानी हुई थी। बैंको में घंटों लाइन लगानी पड़ी। शादी-व्याह के कार्यक्रम आयोजित करने में भी अड़चन आयीं लेकिन प्रदेश की जनता ने श्री मोदी के आर्थिक सुधार की कड़वी दवा खुशी के साथ पी ली। इसीलिए डा- दिनेश शर्मा ने कहा कि प्रदेश की जनता ने नोटबंदी के बाद 2017 के विधान सभा चुनाव में भाजपा को इतना प्रचण्ड बहुमत दिया, जितना उसे कभी नहीं मिला था।
संयुक्ता भाटिया फाइल फोटो
संयुक्ता भाटिया बनीं लखनऊ की महापौर
लखनऊ। उत्तर प्रदेश के नगरीय निकाय चुनावों में महापौर पद की सबसे प्रतिष्ठा पूर्ण सीट वाराणसी और लखनऊ में भाजपा प्रत्याशी जीत हासिल कर चुके थे। लखनऊ में भाजपा प्रत्याशी संयुक्ता भाटिया ने अपनी निकटतम प्रत्याशी समाजवादी पार्टी की मीरा वद्र्धन को भारी मतों से पराजित किया है। नगर निकाय चुनावों में सुश्री मायावती को भी बहुत राहत मिली क्योंकि लोकसभा चुनाव और विधान सभा में चुनाव में जिस तरह जनता ने बसपा को ठुकराया था, उसको देखते हुए बसपा की सफलता महत्वपूर्ण है। प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की यह पहली परीक्षा मानी जा रही थी जिसमें वह विशेषज्ञता के साथ उत्तीर्ण हुए हैं।(हिफी)
इसी प्रकार विधान सभा चुनाव के बाद वस्तु एवं सेवा कर अर्थात जीएसटी को लागू किया गया। विपक्षी दलों ने इसकी भी बहुत आलोचना की और व्यापारियों को भडक़ाया भी गया। कहा जा रहा था कि प्रदेश के निकाय चुनाव में इसका असर दिखाई पड़ेगा, लेकिन चुनाव परिणामों ने यह दर्शा दिया कि प्रदेश की जनता श्री मोदी और भाजपा सरकार के आर्थिक सुधार कार्यक्रमों को पसंद कर रही है। डा- दिनेश शर्मा ने निकाय चुनावों के नतीजे घोषित होते समय प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए इसका विशेष रूप से उल्लेख किया। उन्होंने कहा कि जीएसटी को लेकर सरकार ने जनता की सुविधा के अनुसार संशोधन किये और व्यापारियों ने भी इसे बहुत पसंद किया है। डा- शर्मा ने बताया कि वैट के आधार पर टैक्स की जितनी वसूली होती थी, उससे 33 प्रतिशत ज्यादा वसूली जीएसटी से हुई है। इसलिए जनता ने निकाय चुनाव में भाजपा के आर्थिक सुधारों का समर्थन किया है। इसके साथ ही डा- दिनेश शर्मा ने निकाय चुनावों में भाजपा की जीत के लिए केन्द्रसरकार और प्रदेश सरकार की कार्य प्रणालियों को श्रेय दिया। उन्होंने कहा कि हमने 2014 में लोकसभा चुनाव के समय जनता से जो वादे किये थे, उनको पूरा किया और कई साहसिक कदम भी उठाये। डा- शर्मा ने इन कदमों का उल्लेख नहीं किया लेकिन उनका आशय नोटबंदी, सर्जिकल स्ट्राइक और जीएसटी की तरफ ही था। डा- शर्मा ने यह भी कहा कि प्रदेश की जनता ने निकाय चुनाव में अपने मताधिकार का प्रयोग करते समय भाजपा के संकल्प पत्र को भी ध्यान में रखा। निकाय चुनाव में सभी दल अपने चुनाव चिह्न पर चुनाव लड़ रहे थे लेकिन संकल्प पत्र सिर्फ भाजपा ने जारी किया था। प्रदेश की जनता ने देखा कि भाजपा ने 2017 में विधान सभा चुनाव के लिए जो संकल्प पत्र जारी किया था, उस पर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की सरकार बढ़ी तेजी से अमला कर रही है। अभी सरकार को आठ महीने हुए हैं और पूर्वाचल तथा बुंदेलखंड के विकास के लिए आयोग गठित करने की घोषणा हो गयी है। प्रदेश की जनता को बिजली आपूर्ति का टाइम टेबुल बना दिया गया। बड़े शहरों को अगले साल अक्टूबर तक २४ घंटे बिजली मिलेगी। किसानों की उपज को उचित मूल्य पर खरीदा जा रहा है। कानून व्यवस्था सुधारने की दिशा में भी तेजी से कदम उठाये गये। योगी की सरकार में सबसे बड़ी संख्या में अपराधियों को एन काउंटर में मार गिराया गया है। इन सब बातों का प्रभाव निकाय चुनावों पर पड़ा है। जनता सोच रही है कि इसी तरह निकाय चुनाव के लिए भाजपा ने जो संकल्प पत्र जारी किया है, उस पर भी अमल किया जाएगा।
नगर निकाय चुनावों में भाजपा ने जिस तरह से बढ़त कायम रखी है, उससे केन्द्र सरकार और प्रदेश सरकार के फैसलों पर जनता की स्वीकारोक्ति का पता चलता है। प्रदेश के नगर निगमों में भाजपा का उस समय भी वर्चस्व था जब यहां समाजवादी पार्टी की सरकार थी। इसका यह मतलब लगाया गया था कि श्री नरेन्द्रमोदी की नीतियों को प्रदेश की जनता पसंद कर रही है और भाजपा जनता के हित में काम करती है। इसलिए लोकसभा चुनाव और राज्य विधान सभा चुनाव में बसपा और समाजवादी पार्टी के प्रति जनता की नाराजगी कितनी थी, इस पर भी विचार करना होगा। इस दृष्टि से देखे तो प्रदेश की जनता ने सुश्री मायावती की पार्टी बसपा के प्रति अपने नजरिये में बदलाव किया हे। महापौर के तीन पदो पर बसपा ने भाजपा को जबर्दस्त टक्कर दी और इन पंक्तियों के लिखे जाने तक अलीगढ़ में बसपा प्रत्याशी ने महापौर पद पर जीत हासिल कर ली थी। एक सीट पर बसपा ने बढ़त बनायी थी। इसके साथ ही नगर पंचायत अध्यक्ष और पार्षदों के पद पर भी बसपा ने अच्छी बढ़त बनायी थी। समाजवादी पार्टी ने भी नगर पंचायतों और नगर पालिकाओं में अच्छी सफलता पायी है। सबसे बुरी स्थिति कांग्रेस की रही है जो एक भी महापौर नहीं पा सकी और अन्य चुनावों में भी तीसरे स्थान पर रही।
इन चुनावों में गौर करने वाली बात यह रही है कि निर्दलीय प्रत्याशियों ने समाजवादी पार्टी, बसपा और कांग्रेस से ज्यादा सफलता प्राप्त की है। हालांकि इन प्रत्याशियों के बारे में भाजपा का दावा है कि ये उसके ही समर्थक हैं जो चुनाव के समय नाराज हो गये थे। अन्य दल भी इनपर अपना दावा करेंगे। प्रदेश में विपक्षीदलों का बिखराव भी भाजपा की शानदार जीत में महत्व पूर्ण माना जा रहा है। इन सबके बावजूद योगी आदित्य नाथ की सरकार को इस पहली परीक्षा में सम्मान जनक अंक लगने के लिए बधाई तो देनी हो पड़ेगी। (हिफी)