मुबारक साल गिरह-राम किशोर। किसी फ़िल्म की कहानी की तरह ही है, अभिनेत्री अनु अग्रवाल की कहानी. 1990 में आई फ़िल्म ‘आशिकी’ ने लोगों को प्यार करने का एक नया अंदाज़ सिखाया था. आज भी उस फ़िल्म के गीत चाहे वो ‘मैं दुनिया भुला दूंगा तेरी चाहत में’ हो या ‘धीरे-धीरे से मेरी जिंदगी में आना’. इन्हें सुनते ही हमारे सामने अनु अग्रवाल और राहुल रॉय का चेहरा अपने आप सामने आ जाता है. राहुल रॉय को ‘आशिकी’ के बाद भी आपने ‘बिग बॉस’ या फ़िल्मी पार्टियों में ज़रूर देखा होगा. लेकिन अनु कहीं नहीं दिखती. आखिर अनु कहां हैं, और वे क्या कर रही हैं, वो क्यों हमें पर्दे पर नहीं दिखाई देती? इस तरह के कई सवाल आपके ज़हन में ज़रूर उठते होंगे. तो आइये हम आपको बताते हैं कि 90 के दशक में अपनी पहली ही फ़िल्म से प्रसिद्ध होने वाली अनु आखिर आज क्या कर रहीं हैं.
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11 जनवरी 1969 को दिल्ली में जन्मी अनु अग्रवाल उस समय दिल्ली विश्वविद्यालय से समाजशास्त्र की पढ़ाई कर रही थीं, जब महेश भट्ट ने उन्हें अपनी आने वाली संगीतमय फ़िल्म ‘आशिकी’ में पहला ब्रेक दिया. महज 21 वर्ष की आयु में अभिनय के क्षेत्र में कदम रखने वाली अनु ने अभिनय से लोगों को अपना मुरीद बना लिया था. लेकिन बाद में उनकी ‘गजब तमाशा’, ‘खलनायिका’, ‘किंग अंकल’, ‘कन्यादान’ और ‘रिटर्न टू ज्वेल थीफ़’ फिल्में कब पर्दे पर आईं और कब चली गईं, पता ही नहीं चला. उन्होंने तमिल फ़िल्म ‘थिरुदा-थिरुदा’ में काम किया है. यहां तक अनु ने एक लघु फ़िल्म भी की थी, जिसने उन्हें चर्चा के केंद्र में ला खड़ा किया था, उसका नाम ‘द क्लाऊड डोर’ था. 1996 के बाद अनु बड़े पर्दे से गायब हो गईं और उन्होंने योग और अध्यात्म की तरफ़ रुख कर लिया था.
1999 में हुई सड़क दुघटर्ना ने अनु के जीवन की गाड़ी को एक पटरी से उठाकर दूसरी पटरी पर रख दिया. इस हादसे ने न सिर्फ़ उनकी याददाश्त को प्रभावित किया, बल्कि उन्हें चलने फिरने में भी अक्षम (पैरालाइज़्ड) कर दिया. 29 दिनों तक कोमा में रहने के बाद जब अनु होश में आईं, तो वह खुद को पूरी तरह से भूल चुकी थी. याद्दशात खो चुकी अनु के लिए ये उनका पुर्नजन्म ही था!
लेकिन अनु ने हार नहीं मानी और लगभग 3 वर्ष चले लंबे उपचार के बाद वे अपनी धुंधली यादों को जानने में सफ़ल हो पाईं. इसके बाद उन्होंने अपनी संपत्ति त्याग कर सन्यास की ओर रुख किया.
अनु अपनी आत्मकथा ‘अनयूजवल: मेमोइर ऑफ़ ए गर्ल हू केम बैक फ्रॉम डेड’ को लेकर दुबारा से चर्चा के केंद्र में आईं थी. यह आत्मकथा उस लड़की है जिसकी ज़िंदगी कई टुकड़ों में बंट गई थी और बाद में उसने खुद ही उन टुकड़ों को एक कहानी की तरह जोड़ा है. अब वे मुंबई की झुग्गियों के बच्चों को नि:शुल्क योगा सिखाती हैं. फाइल फोटो