स्वप्निल संसार। बबिता का फिल्मी करियर सही मायने में सिर्फ सात साल का है, लेकिन उन्होंने इस छोटे से अपने सफर में फिल्म इंडस्ट्री के नामी सितारों के साथ काम किया। साधना और बबिता का फिल्मों में आगमन साथ-साथ हुआ। ये दोनों रिश्ते में चचेरी बहनें हैं। आर के नैयर का स्पर्श पाकर साधना सिंड्रेला की तरह फिल्माकाश में चमक गई। इधर बबिता के पिता अभिनेता हरि शिवदासानी अच्छे खिलाड़ी थे। एक फ्रेंच महिला उनकी दीवानी हो गई और उनसे शादी कर ली। इस तरह पिता सिंधी और मां यूरोपियन होने से बबिता विदेशी मेम की तरह गोरी चिट्टी थीं और नाक-नक्श आकर्षक होने के कारण फिल्मों में काम मिलने में उन्हें जरा भी परेशानी नहीं हुई।
1948 में 20 अप्रैल को जन्मीं बबिता के पिता हरि शिवदासानी स्टूडियो के मालिक थे। घाटे के चलते कुछ समय बाद उनका स्टूडियो बिक गया। बाद में वे अनेक फिल्मों में चरित्र अभिनेता के रूप में काम करते रहे। फिर उनकी बेटी ने अभिनय की दुनिया में कदम रखा। दरअसल, बबिता के घर निर्माता जी पी सिप्पी का आना-जाना होता था। उन्होंने स्क्रीन टेस्ट लेकर बबिता को उस समय के एक नए अभिनेता राजेश खन्ना के साथ म्यूजिकल थ्रिलर फिल्म राज में पेश किया। फिल्म राज तो नहीं चली, लेकिन इसका एक गीत, जिसे मोहम्मद रफी ने गाया था, अकेले हैं चले आओ जहां हो.. को और फिल्म की हीरोइन बबिता को पसंद किया गया। फिल्म में बबिता काफी खूबसूरत दिखीं, यही वजह रही कि उन्हें अपनी फिल्मों में लेने के लिए कई निर्माता तैयार हो गए। उन्हें लगातार काम मिलता गया और एक क्रम के साथ उनकी फिल्में भी रिलीज होती रहीं। बबिता के काम मिलने की एक वजह यह भी रही कि उस दौर की ए-ग्रेड नायिकाएं वहीदा रहमान, माला सिन्हा, वैजयंतीमाला, शर्मीला टैगोर आदि बहुत ज्यादा व्यस्त थीं। जब इन हीरोइनों को निर्माता अपनी फिल्मों में नहीं ले पाते, तो वे नई नायिकाओं बबिता, साधना, मुमताज आदि को फिल्मों में अवसर देते थे। वैसे बबिता को फिल्मों में पहला काम मिला था राज में, लेकिन उनकी पहली रिलीज फिल्म हुई दस लाख। संजय खान, ओमप्रकाश अभिनीत इस फिल्म के निर्देशक थे देवेंद्र गोयल। गोयल साहब की अच्छी जान-पहचान थी हरि शिवदासानी से, तो बबिता को यह फिल्म भी मिल गई। इसमें गीत थे प्रेम धवन के और संगीत रवि का। फिल्म के सभी गीत सदाबहार हुए और बबिता को इसमें भी पसंद किया गया था। बबिता की तीसरी फिल्म थी फर्ज। इसमें उनके हीरो थे जीतेंद्र। इस फिल्म को भी अच्छी कामयाबी मिली और इसके गीतों ने खूब नाम कमाया। इसी फिल्म से जीतेंद्र को जंपिंग जैक का खिताब मिला। फर्ज की सफलता के बाद तो बबिता की फिल्मों के दर्शक दीवाने हो गए। खासकर उस समय के युवा वर्ग। यही वजह थी कि उनकी शशि कपूर के साथ वाली हसीना मान जाएगी, जीतेंद्र के साथ वाली औलाद, शम्मी कपूर के साथ वाली तुमसे अच्छा कौन है, बिस्वजीत के सा किस्मत, शशि कपूर के साथ एक श्रीमान एक श्रीमति, राजेश खन्ना के साथ डोली, जीतेंद्र के साथ अनमोल मोती, राजेंद्र कुमार के साथ अनजाना, अजीम के साथ संतान, मनोज कुमार के साथ पहचान, धर्मेद्र के साथ कब क्यों और कहां, जीतेंद्र के साथ बिखरे मोती और बनफूल, रणधीर कपूर के साथ कल आज और कल और जीत, जीतेंद्र के साथ एक हसीना दो दीवाने और संजय खान के साथ सोने के हाथ फिल्में लगातार आई और ये खूब पसंद की गई। ये सभी सफल हुई थीं। मनोज कुमार अभिनीत फिल्म पहचान मंे वो परी कहां से लाऊं.. गीत में आगे की लाइन है गंगाराम की समझ में न आए.यह गाना बेहद मशहूर हुआ था। गंगाराम वहीं से प्रेरित था। फिल्म सुपरहिट हुई थी। लोगों की मानें, तो बबिता अभिनय के मामले में कमजोर थीं। उनका डांस भी बहुत अच्छा नहीं था, इन सबके बावजूद बबिता को राजेश खन्ना, शम्मी कपूर, राजेन्द्र कुमार, धर्मेन्द्र, जीतेन्द्र, शशि कपूर आदि सितारों के साथ अधिक काम मिला। इन सितारों की वजह से भी फिल्में चलीं और बबिता भी सफल होती गई। जीतेन्द्र के साथ दक्षिण में बनी फिल्म फर्ज ने अच्छी सफलता पाई। प्रकाश मेहरा की पहली फिल्म थी हसीना मान जाएगी। इसमें बबीता की कॉमेडी को खूब सराहा गया। इन तमाम फिल्मों की सफलता के बारे में कहा जाता है कि दरअसल बबिता में अभिनेत्री से ज्यादा गुण मैनेजमेंट के रहे हैं। उन्होंने अपना करियर चतुर व्यवसायी की तरह आगे बढ़ाया और सफलता पाती गई। 1971 में बबिता ने कपूर खानदान में प्रवेश करते हुए राज कपूर के बड़े बेटे रणधीर कपूर से शादी कर ली। खानदान के नियम अनुसार कोई बहू फिल्मों में काम नहीं कर सकती थी। लिहाजा बबीता को भी फिल्मी दुनिया छोड़नी पड़ी। आर के बैनर की फिल्म कल आज और कल में बबिता ने कपूर खानदान की तीन पीढियों यानी पृथ्वीराज कपूर, राज कपूर और रणधीर कपूर के साथ काम किया। शादी के बाद उन्होंने बची हुई फिल्में पूरी कीं और फिर परिवार के साथ घर की होकर रह गई।