25 अक्टूबर 1951 – भारत में पहले आम चुनाव की शुरूआत हुई।
1950 का साल। एक तरफ आजाद भारत गणतंत्र बन चुका था। दूसरी ओर, एशियाई देशों में उथल-पुथल थी। चीन साम्यवाद की जकड़ में आ गया था। जॉर्डन और ईरान के प्रधानमंत्रियों का क़त्ल हो चुका था। उधर कश्मीर को लेकर भारत में भी उबाल था। जवाहरलाल नेहरू यूं तो कहने को प्रधानमंत्री नियुक्त हो गए थे, पर अभी तक देश ने उन्हें चुना नहीं था। रूस नेहरू पर अपना प्रभाव बढ़ा रहा था तो उधर अमेरिका भी इसी कोशिश में था। कुल मिलाकर अस्थिरता का माहौल था।
आजादी के बाद 1951 का पहला आम चुनाव महज एक चुनाव न होकर क्रांति था। किसी को भी यकीन नहीं था कि ये चुनाव सफलता से पूरा हो सकेगा। लेकिन एक अदृश्य हीरो सामने आया और उसने पहले चुनाव में ही लोकतंत्र का कायाकल्प कर दिया। हिंदुस्तान आजाद हुए चार साल हो चुके थे। हिंदुस्तान गणतंत्र बन चुका था। उसका एक संविधान था। देश के प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू के सामने अब सबसे बड़ी चुनौती थी एक चुनी हुई सरकार स्थापित करना।
भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू चुनाव 1951 की गर्मियों में करवाना चाहते थे। लेकिन एक शख्स ने नेहरू की इस बात को खारिज कर दिया। वो शख्स थे इलेक्शन कमिश्नर सुकुमार सेन। तब चुनाव आयोग में तीन नहीं सिर्फ एक इलेक्शन कमिश्नर ही होता था। उसी पर बीड़ा था निष्पक्ष चुनाव कराने का। बहुत कम लोग जानते हैं कि सुकुमार सेन को भारतीय लोकतंत्र का अदृश्य हीरो कहा जाता है।
भारतवर्ष का पहला आम चुनाव करवाना आसान काम न था। इतने बड़े पैमाने पर पहले कभी चुनाव नहीं करवाया गया था। वोट देने लायक 85 प्रतिशत जनता को पढ़ना-लिखना नहीं आता था। वोटर लिस्ट भी तैयार नहीं थी। चुनाव चिह्न, बैलेट पेपर और बैलेट बॉक्स कुछ भी तैयार नहीं था। काफी विचार-विमर्श के बाद तय हुआ कि आजाद भारत का पहला आम चुनाव 1952 के जनवरी और फरवरी महीनों में होगा। कुल 4500 सीटों पर, जिसमें 489 सीटें लोकसभा के लिए, बाकी विधानसभाओं के लिए।
लाखों पोलिंग बूथ के अलावा स्टील के बैलेट बॉक्स भी तैयार करवाना था। इसके लिए 8200 टन स्टील की आपूर्ति की गई। टाइपिंग, चुनाव पर नजर रखने और सुरक्षा के लिए लाखों लोगों को कॉन्ट्रेक्ट पर तैनात किया गया। इतना ही नहीं दूरदराज पहाड़ों और दुर्गम स्थानों पर मौजूद गांव को कस्बे और शहर से जोड़ने के लिए पुल बनवाए गए। इस तरह से पहले लोकसभा चुनावों की वजह से ये सभी गांव सालों बाद पुल के जरिए दूसरे गांवों या कस्बों से जुड़ गए।
पहला लोकसभा चुनाव इसलिए यादगार है क्योंकि इससे पहले भारत में इतने बड़े पैमाने पर कभी चुनाव नहीं हुए थे। कई नए प्रयोग किए गए। लेकिन उस चुनाव में देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने जितनी मेहनत की, शायद ही आज कोई नेता कर सके। दरअसल पहला लोकसभा चुनाव जब हो रहा था तब हिंदुस्तान को आजाद हुए चार साल बीत चुके थे। देश के भीतर सब कुछ बदल चुका था। भारत एक गणतंत्र बन चुका था। उसका अपना एक संविधान था। लेकिन अगर कुछ नहीं बदला तो वो था नेहरू का करिश्माई नेतृत्व।
देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू का पहला चुनाव प्रचार भी यादगार है। एक कमेंटेटर के मुताबिक कांग्रेस का चुनाव प्रचार केवल नेहरू पर केंद्रित था। चुनाव में नेहरू ने सड़क, रेल, पानी और हवाई जहाज सभी का सहारा लिया। उन्होंने 25 हजार मील की दूरी तय की। 18 हजार मील हवाई जहाज से, 52 सौ मील कार से, 16 सौ मील ट्रेन से और 90 मील नाव से। चुनाव आयोग के लिए राहत की बात ये थी कि निरक्षरता के बावजूद पूरे देश में 60 प्रतिशत वोटिंग हुई। पहले लोकसभा चुनावों में कांग्रेस को सबसे ज्यादा 364 सीटें मिली थीं।
1951: पहली लोकसभा-कुल सीटें 489-इंडियन नेशनल कांग्रेस 364-कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया 16-सोशलिस्ट पार्टी 12 । फेस बुक वॉल से