साल:1859, शहर-टिहरी..महान लेखक, मफसिलाइट के संस्थापक संपादक और महारानी लक्ष्मीबाई के कानूनी सलाहकार बैरिस्टर जान लेंग (19 December 1816 – 20 August 1864) शायद टिहरी नरेश सुदर्शन शाह से मिलने वाले आखिरी गोरे थे. राजा की मौत के करीब 15-20 दिन पहले जान लेंग उनसे टिहरी यात्रा में मिले थे.मसूरी मे लेंग को एक देशी जागीरदार से पता चला कि टिहरी नरेश सुदर्शन शाह उनसे मिलने को उत्सुक हैं.जान लेंग ने अपनी टिहरी यात्रा के बाबत तफसील से लिखा है. वह लिखते हैं..
’10 मई 1859 की सुबह मैं अपने यूरोपीय दोस्तों के एक कारवां के साथ राजा से मिलने मसूरी से टिहरी यात्रा पर निकल पडा…’ उन दिनों मसूरी से टिहरी जाने वाला छफुठा कच्चा रास्ता मसूरी से काणाताल और उत्तर में नीचे उतरकर भागीरथी नदी तट के निकट जुलंगी (Jullinghee) गांव से गुजरता हुआ टिहरी पहुंचता था.. करीब एक हफ्ते की यात्रा के बाद जान लेंग अपने साथियों के साथ टिहरी पहुंचा और उन्होंने भागीरथी-भिलंगना नदियों के संगम के निकट के बडे पेड के नीचे अपने तंबू गाड दिए. राजा को अपने आने की सूचना एक हरकारे के जरिये भेजी गयी.
जान लेंग के तंबू के ठीक सामने श्रीनगर (गढवाल) से आये एक मक्का व्यापारी बनिये के बेटे के ब्याह की दावत चल रही थी. 22 साल के लडके की शादी टिहरी की 8 साल की लडकी से तय हुई थी. दावत से मिठाई और खाना के दो बडे देग लेकर लडके का बाप वो बनिया खुद जान लेंग के तंबू पर देने आया. जान लेंग ने हिंदुस्तानी परम्परा के अनुसार सोने की एक गिन्नी वर को भेंट की.
राजा सुदर्शन शाह के बारे में जान लेंग लिखते हैं.. ‘नाटे कद का बूढा राजा सुदर्शन शाह सभ्य आदमी है, यूरोपीय लोगों का वह बहुत सम्मान करता है, उसे जैसे ही हरकारे से हमारे आने की सूचना मिली, वह अपने सहयोगियों के साथ काबुली घोडे पर सवार होकर हमारे तंबू पर चला आया. तंबु के ठीक सामने राजा के लिये एक कुर्सी लगा दी गयी.. और हम सब गोरों ने उसके सम्मान में अपने हेट उतार कर उसे सलामी दी… ‘
राजा सुदर्शन शाह पंजाब के राजपरिवार के लिए चिंतित थे . उन्होने जान लेंग से राजा दलीप सिंह और राजकुमारी लीना सिंह के बारे में जानकारी ली. लेंग ने बताया कि राजा दलीप सिंह अब लंदन में हैं. राजा ने जान लेंग से अपील की वह कोई बढिया यूरोपीय इंजीनियर टिहरी भिजवाये, वह भागीरथी पर एक अच्छा पुल बनवाना चाहते हैं. बहुत संभव है टिहरी को जोडने वाला भागीरथी का पुल जान लेंग द्वारा भेजे गये किसी यूरोपीय इंजीनियर द्वारा बनाया गया था.
जान लेंग टिहरी करीब एक हफ्ते रूके, राजा ने उनकी खातिरदारी में कोई कसर नहीं छोडी, वापिसी में राजा के दो सिपाही उनके कारवां को छोडने मसूरी तक आये.
जान लेंग लिखते हैं कि उनकी टिहरी यात्रा से वापिसी के करीब 15 दिन बाद उन्हे सूचना मिली कि राजा सुदर्शन शाह का निधन (7 जून 1859) हो गया है. जान लेंग ने मसूरी के क्राईस्ट चर्च में टिहरी नरेश सुदर्शन शाह के शोक में मोमबत्तियां जलाकर उन्हें भावभीनी श्रद्धांजली अर्पित की.संभवतः जान लेंग अंतिम गोरे थे, जो टिहरी नरेश सुदर्शन शाह से मिले थे…•जयप्रकाश उत्तराखंडी (संपादक)-मफसिलाइट/Mafasiilite-(स्थापना वर्ष 1845,संस्थापक संपादक- जान लेंग)