मुबारक साल गिरह। जबीन जलील हिन्दी सिनेमा के प्रेमियों के लिए 1950 और 60 के दशक में एक जाना पहचाना नाम था। अभिनेत्री जबीन जलील अपने समय में दर्शकों के बीच काफ़ी प्रसिद्ध रहीं। क़रीब 20 साल के अपने कॅरियर के दौरान भले ही जबीन ने महज़ 24 हिन्दी और 4 पंजाबी फ़िल्मों में काम किया हो, लेकिन अपनी ख़ूबसूरती और दिलकश अभिनय के दम पर उस जमाने में उन्होंने लाखों लोगों को अपना दीवाना बनाया। हिन्दी सिनेमा का स्वर्ण काल कहलाए जाने वाले उस दौर की चर्चित अभिनेत्री जबीन सिनेमा के क्षेत्र में प्रोडयूसर के रूप में भी सक्रिय रहीं।
जबीन जलील का जन्म 1 अप्रॅल, 1936 को दिल्ली में हुआ था। उनका सम्बंध बंगाल के बेहद ज़हीन और पढ़े-लिखे ख़ानदान से रहा है। उनके दादा ‘सैयद मौलवी अहमद’ कलकत्ता अब कोलकाता यूनिवर्सिटी से स्नातक की डिग्री हासिल करने वाले पहले बंगाली मुस्लिम थे तो पिता ‘सैयद अबू अहमद जलील’ अंग्रेज़ों के ज़माने के आई.सी.एस. अफ़सर। जबीन की अम्मी ‘दिलारा जलील’ भी पढ़ी-लिखी और मुंशी फ़ाजिल की डिग्री हासिल कर चुकी महिला थीं, जिनका ताल्लुक़ लाहौर के मशहूर ‘फ़कीर ब्रदर्स’ के ख़ानदान से था। ये तीनों भाई सैयद फ़कीर नूरुद्दीन, सैयद फ़कीर सईदुद्दीन और सैयद फ़कीर अज़ीज़ुद्दीन महाराजा रणजीत सिंह के बेहद विश्वस्त मन्त्रियों में थे। महाराजा रणजीत सिंह ने ही इन भाईयों को फ़कीर उपाधि से नवाज़ा था और इनका नाम हिन्दुस्तान के इतिहास में भी दर्ज है। लाहौर का मशहूर ‘फ़कीरखाना संग्रहालय’ भी इन्हीं तीन भाईयों के नाम पर है।
1954 में रिलीज हुई ‘ग़ुज़ारा’ जबीन की पहली फ़िल्म थी, जिसमें उनके हीरो करण दीवान थे। संगीत ग़ुलाम मोहम्मद का था। फ़िल्म तो ज्यादा नहीं चली लेकिन जबीन अपनी तरफ़ लोगों का ध्यान आकृष्ट करने में ज़रूर कामयाब रहीं। 1955 में उनकी दूसरी फ़िल्म ‘लुटेरा’ रिलीज़ हुई जिसमें उनके नायक नासिर ख़ान थे। लेकिन सही मायनों में उन्हें पहचान मिली अपनी तीसरी फ़िल्म ‘नई दिल्ली’ से जिसमें उन्होंने नायक किशोर कुमार की बहन ‘निक्की’ का रोल किया था। 1956 में रिलीज़ हुई इस फ़िल्म में जबीन के नायक की भूमिका अभिनेत्री नलिनी जयवन्त के पति प्रभुदयाल ने की थी। शंकर-जयकिशन के संगीत से सजी, प्रोडयूसर-डायरेक्टर मोहन सहगल की ये फ़िल्म उस दौर की सफलतम फ़िल्मों में से थी। फ़िल्म ‘नई दिल्ली’ की सफलता का जबीन को भरपूर फायदा मिला। 1950 के दशक के आख़िर में उनकी ‘चारमीनार’, ‘फ़ैशन’, ‘जीवनसाथी’, ‘हथकड़ी’, ‘पंचायत’, ‘रागिनी’, ‘बेदर्द ज़माना क्या जाने’ और ‘रात के राही’ फ़िल्में रिलीज़ हुई।
फ़िल्मों से अलग होने के बाद जबीन सामाजिक कार्यों में भी व्यस्त हो गयी थीं। बेटा स्कूल जाने लगा तो उन्होंने उसके कैथेड्रल स्कूल की पी.टी.ए. के चेयरपर्सन की कुर्सी सम्भाल ली। उनकी दोनों बड़ी बहनें पाकिस्तान में और छोटा भाई अमेरिका में बस चुके थे। भारत में उनका कोई भी रिश्तेदार नहीं था, इसलिए बेटे की पढ़ाई और अच्छे भविष्य के लिए जबीन ने भी अमेरिका में बस जाना बेहतर समझा। पति और बेटे के साथ शुरू से ही उनका अमेरिका जाना-आना लगा रहता था, इसलिए ग्रीन कार्ड मिलने में भी कोई मुश्किल नहीं हुई। आख़िरकार 1989 में वह परिवार सहित अमेरिका चली गयीं।
जबीन और उनके परिवार ने क़रीब 10 साल अमेरिका में गुज़ारे। उनकी सास और मां दोनों ही अमेरिका में उनके साथ रहती थीं। जबीन की मां गुजरीं तो बेटा दिविज जो अपनी नानी के बेहद क़रीब था डिप्रेशन में चला गया। नतीजन डाक्टर्स की सलाह पर जबीन को 1998 में वापस मुम्बई आना पड़ा, क्योंकि डाक्टरों का कहना था कि जल्द रिकवरी के लिए दिविज का वापस उस माहौल में जाना ज़रुरी था, जिसमें उसका बचपन गुज़रा था। दिविज को डॉक्टरों की इस सलाह का फ़ायदा भी हुआ और मुम्बई आकर उनकी तबीयत पूरी तरह से ठीक हो गयी।
अशोक काक 2002 में भारत लौटे। जाने माने उद्योगपति के.के. बिडला उनकी प्रबन्धन क्षमता से पहले ही से परिचित थे, इसलिए उन्होंने अशोक काक से अपनी सबसे पुरानी कम्पनियों में से एक, कोलकाता स्थित घाटे में चल रही ‘इंडिया स्टीमशिप कम्पनी’ के हालात सुधारने का आग्रह किया। अशोक ने तीन साल के काण्ट्रेक्ट के दौरान न सिर्फ़ कम्पनी को घाटे से उबारा, बल्कि उसे लाभ की स्थिति में भी ला खड़ा किया। वह तीन साल जबीन ने कोलकाता में गुज़ारे और फिर पति और बेटे के साथ वापस मुम्बई लौट आयीं। फ़िल्म ‘वचन’ के क़रीब 30 साल बाद 2004-05 में जबीन ने दूरदर्शन धारावाहिक ‘हवाएं’ में अभिनय किया। भारत कोष से