गजानन माधव मुक्तिबोध हिन्दी साहित्य के प्रमुख कवि, आलोचक, निबंधकार, कहानीकार तथा उपन्यासकार थे। प्रगतिशील कविता और नयी कविता के बीच के सेतु भी थे । मुक्तिबोध के पूर्वज के जलगाँव (खानदेश) के निवासी थे। उनके परदादा वासुदेवजी उन्नीसवीं सदी के आरंभ में जलगाँव छोड़कर मुरैना जिला में पड़ने वाले श्योपुर में आ बसे थे। वासुदेव के पुत्र गोपालराव वासुदेव ग्वालियर राज्य के टोंक जिला में कार्यालय अधीक्षक थे। उन्हें फारसी की अच्छी जानकारी थी, इस कारण लोग उन्हें ‘मुंशी’ कहकर भी बुलाते थे। उनकी नौकरी जिस गाँव में होती, वे महीना दो महीना वहाँ रह आते और मेवा-मिठाई से अपना सत्कार कराए बिना प्रसन्न न होते थे। गोपालराव के इकलौते पुत्र थे- माधवराव मुक्तिबोध। माधवरावजी केवल मिडिल तक शिक्षित थे, लेकिन पिता की तरह वे भी अच्छी फारसी जानते थे। धर्म और दर्शन में भी उनकी गहरी रुचि थी। वे कोतवाल थे। उज्जैन की सेंट्रल कोतवाली, जिसकी दूसरी मंजिल पर माधवरावजी का आवास था, सर सेठ हुकुमचंद का महल था। वहाँ सुख सुविधा की कोई कमी नहीं थी। माधवरावजी कर्तव्यपरायण और न्यायनिष्ठ व्यक्ति थे। पुलिस विभाग में रहकर भी उन्होंने हमेशा परले दर्जे की ईमानदारी का ही परिचय दिया। वे महात्मा गाँधी के प्रसंशक थे और लोकमान्य तिलक के पत्र ‘केसरी’ के ग्राहक थे। वे बहुत अच्छे कथावाचक और दैनिन्दनी लेखक भी थे। उनका निधन मुक्तिबोध की मृत्यु के दिन ही हुआ। माधवराव की पत्नी एवं मुक्तिबोध की माँ पार्वतीबाई ईसागढ़ (बुंदेलखंड, शिवपुरी) के समृद्ध किसान-परिवार की थीं। वे छठी कक्षा तक शिक्षित थीं। वे भावुक और स्वाभिमानी थीं। हिंदी के प्रेमचंद और मराठी के हरिनारायण आप्टे उनके प्रिय लेखक थे। मुक्तिबोध के निधन के कुछ ही समय बाद इनका भी देहांत हो गया था।
मुक्तिबोध का जन्म 13 नवम्बर, 1917 को श्योपुर में हुआ था। पूरा नाम रखा गया- गजानन माधव मुक्तिबोध। वे माता-पिता की तीसरी संतान थे। उनसे पहले के दोनों सिशु अधिक जीवित नहीं रह सके थे। इस कारण मुक्तिबोध के लालन-पालन और देख-भाल पर अधिक ध्यान दिया गया। उन्हें खूब स्नेह और ठाठ मिला। शाम को उन्हें बाबागाड़ी में हवा खिलाने के लिए बाहर ले जाता। सात-आठ की उम्र तक अर्दली ही उन्हें कपड़े पहनाते थे। उनकी सभी ज़रूरतो का ध्यान रखा जाता रहा, उनकी हर माँग पूरी की जाती रही। उन्हें घर में ‘बाबूसाहब’ कहकर पुकारा जाता था। वे परीक्षा में सफल होते तो घर में उत्सव मनाया जाता था। इस अतिरिक्त लाड़-प्यार और राजसी ठाट-बाट में पला बालक हठी और जिद्दी हो गया।
इनके पिता पुलिस विभाग के इंस्पेक्टर थे। अक्सर उनका तबादला होता रहता था। इसीलिए मुक्तिबोध की पढाई में बाधा पड़ती रहती थी। 1930 में मुक्तिबोध ने मिडिल की परीक्षा, उज्जैन से दी और फेल हो गए। कवि ने इस असफलता को अपने जीवन की महत्त्वपूर्ण घटना के रूप में स्वीकार किया है। उन्होंने 1953 में साहित्य रचना का कार्य प्रारम्भ किया और 1939 में इन्होने शांता जी से प्रेम विवाह किया।1942 के आस-पास वे वामपंथी विचारधारा की ओर झुके तथा शुजालपुर में रहते हुए उनकी वामपंथी चेतना मजबूत हुई। मुक्तिबोध अस्तित्ववादी विचारधारा के समर्थक थे।आजीवन ग़रीबी से लड़ते हुए और रोगों का मुकाबला करते हुए 11 सितम्बर, 1964 को नई दिल्ली में मुक्तिबोध की मृत्यु हो गयी थी।एजेन्सी।