मुबारक साल गिरह
स्वप्निल संसार। सुषमा सेठ का जन्म 20 जून 1936 को बम्बई (मुंबई) में हुआ था। दूरदर्शन के प्रथम सोप ओपेरा ‘हम लोग’ की दादी का किरदार बेहद लोकप्रिय रहा। दादी को गले के कैंसर से पीड़ित दिखाया गया था, वे मृत्यु की कगार पर थीं पर यह सुषमा की लोकप्रियता ही थी जिसके कारण इस किरदार की उम्र को दर्शकों की माँग पर बढ़ाना पड़ा।पहली फिल्म ‘जुनून’ में ही उनके रोल को काफी सराहा गया। उसके बाद उन्होंने कई फिल्मों में काम किया—कलयुग, सिलसिला, प्रेम रोग, चांदनी, 1942 ए लव स्टोरी, एक चादर मैली सी, कल हो न हो आदि। उन्होंने अस्सी से अधिक फिल्मों में काम किया। सुषमा सेठ ने फिल्म व थियेटर में जीवन के लगभग पचास वर्ष लगाए हैं। लगभग नब्बे नाटकों में काम किया है। इनके काम को सराहते हुए समय-समय पर पुरस्कारों से नवाजा भी गया।अस्सी का दशक आते आते सशक्त माँओं के किरदारों के लिए पहली पसंद बनीं सुषमा सेठ।सुषमा सेठ का व्यक्तित्व ऐसे किरदारों के लिए उपयुक्त था। उन्होने इस दौर में ऋषि कपूर, विनोद खन्ना, राजेश खन्ना जैसे टॉप के हीरो की माँ की भूमिकाएं अदा कीं।जिस तरह निरूपा राय को अमिताभ बच्चन की माँ का खिताब दिया गया था उसी तरह सुषमा सेठ को ऋषि कपूर की फिल्मी माँ तक कहा गया।सुषमा ने कई टीवी धारावाहिकों में भी काम किया जैसे कि हम लोग व देख भाई देख।सुषमा सेठ ने कुछ नाटकों का निर्देशन भी किया है। इसके अलावा वह सामाजिक गतिविधियों में भी लगी रहीं। सुषमा जी 1998 से एक एनजीओ ‘अर्पणा’ से भी जुड़ी हैं। वह इसके माध्यम से कमजोर वर्ग के बच्चों को डांस-ड्रामा सिखाकर हर साल उसका मंचन करवाती हैं। सुषमा सेठ की लिखी अपने कला के सफर पर आधारित पुस्तक ‘स्टेजप्ले दि जर्नी ऑफ एन एक्टर’ अमैरलिसमंजुल पब्लिशिंग हाउस से छपकर बाजार में आई है। इस पुस्तक में कलाकार ने बचपन से लेकर अब तक के एक्टिंग के करियर को बहुत रोचक ढंग से पिरोया है। फिल्म, थियेटर से जुड़े व साधारण लोग जो कला व कलाकार की कद्र करते हैं, उन्हें यह पुस्तक एक हसीन सफर का एहसास अवश्य कराएगी। सचमुच सुषमा सेठ की जिंदगी का सफर एक अभिनेत्री का रोमांचक और संघर्षपूर्ण सफर है।सुषमा सेठ को कल्पना चावला उत्कृष्टता पुरस्कार से नवाजा गया है।वह वह अंतिम बार शानदार में देखी गई।
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