पुण्य तिथि पर विशेष-। शमशाद बेगम हिन्दी फिल्मों की शुरुआती पार्श्वगायिकाओं में से एक थीं। हिन्दी सिनेमा के प्रारम्भिक दौर में उनकी खनखती और सुरीली आवाज ने एक बहुत बड़ी संख्या में उनके प्रशसकों की भीड़ तैयार कर दी थी। हिन्दी फिल्मों के कई सुपरहिट गीत, जैसे-कभी आर कभी पार, कजरा मोहब्बत वाला, लेके पहला-पहला प्यार, बूझ मेरा क्या नाम रे शमशाद बेगम के नाम पर दर्ज हैं। इन गीतों की लोकप्रियता ने शमशाद बेगम को प्रसिद्धि की बुलन्दियों पर पहुँचा दिया था। 2009 में भारत सरकार ने शमशाद बेगम को कला के क्षेत्र में उनके विशिष्ट योगदान के लिए पद्मभूषण से सम्मानित किया था।
शमशाद बेगम का जन्म 14 अप्रैल, 1919 को अमृतसर में हुआ था। वे अपनी युवावस्था से ही के. एल. सहगल की बहुत बड़ी प्रशंसक थीं। फिल्में देखना और गीत सुनना उन्हें बहुत पसन्द था। फिल्में देखने का शौक शमशाद बेगम को इस कदर था कि उन्होंने फिल्म देवदास चैदह बार देखी थी। शमशाद बेगम का विवाह गणपतलाल बट्टो के साथ हुआ था। 1955 में पति की मृत्यु के बाद वे मुम्बई आ गई थीं और बेटी उषा रात्रा और दामाद के साथ रहने लगी थीं। पहली बार शमशाद बेगम की आवाज लाहौर के पेशावर रेडियो के माध्यम से 16 दिसम्बर, 1947 को लोगों के सामने आई। उनकी आवाज के जादू ने लोगों को उनका प्रशंसक बना दिया। तत्कालीन समय में शमशाद बेगम को प्रत्येक गीत गाने पर पन्द्रह रुपये पारिश्रमिक मिलता था। उस समय की प्रसिद्ध कम्पनी जेनोफोन, जो कि संगीत रिकॉर्ड करती थी, उससे अनुबन्ध पूरा होने पर शमशाद बेगम को 5000 रुपये से सम्मानित किया गया था। शमशाद बेगम की सम्मोहक आवाज ने महान संगीतकार नौशाद और ओ. पी. नैय्यर का ध्यान अपनी ओर खींच लिया था और इन्होंने फिल्मों में पार्श्वगायिका के रूप में इन्हें गायन का मौका दिया। इसके बाद तो शमशाद बेगम की सुरीली आवाज ने लोगों को इनका दीवाना बना दिया। पचास, आठ और सत्तर के दशक में शमशाद बेगम संगीत निर्देशकों की पहली पसंद बनी रहीं। शमशाद बेगम ने ऑल इंडिया रेडियो के लिए भी गाया। इन्होंने अपना म्यूजिकल ग्रुप द क्राउन थिएट्रिकल कंपनी ऑफ परफॉर्मिंग आर्ट बनाया और इसके माध्यम से पूरे देश में अनेकों प्रस्तुतियाँ दीं। इन्होंने कुछ म्यूजिक कंपनियों के लिए भक्ति के गीत भी गाए। मशहूर संगीतकार ओ. पी. नैयर ने उनकी आवाज को मंदिर की घंटी बताया था। शमशाद बेगम ने उस समय के सभी मशहूर संगीतकारों के साथ काम किया। शमशाद बेगम की सुरीली आवाज ने सारंगी के उस्ताद हुसैन बख्शवाले साहेब का ध्यान भी अपनी ओर खींचा और उन्होंने इन्हें अपनी शिष्या बना लिया। लाहौर के संगीतकार गुलाम हैदर ने इनकी जादुई आवाज का इस्तेमाल फिल्म खजांची (1941) और खानदान (1942) में किया। 1944 में शमशाद बेगम गुलाम हैदर की टीम के साथ मुंबई आ गई थीं। यहाँ इन्होंने कई फिल्मों के लिए गाया। इन्होंने पाश्चात्य से प्रभावित पहला गीत मेरी जान मेरी जान सनडे के सनडे गाकर धूम मचा दी थी। इनकी गायन शैली पूरी तरह मौलिक थी। इन्हें लता मंगेशकर, आशा भोंसले, गीता दत्त और अमीरबाई कर्नाटकी से जरा भी कम नहीं आंका गया।
भारत के प्रमुख त्योहारों में से एक होली पर यूँ तो हिन्दी फिल्मों में असंख्य गाने लिखे और गाये गए हैं, किंतु होली का सबसे लोकप्रिय गीत शकील बदायूँनी ने लिखा था। इस गीत को अपने समय के ख्यातिप्राप्त संगीतकार नौशाद ने संगीतबद्ध किया। शमशाद बेगम ने इस गीत को अपनी सुरीली आवाज से सजाकर अमर बना दिया। फिल्म मदर इंडिया का यह गीत अभिनेत्री नर्गिस पर फिल्माया गया था और गीत के बोल थे-होली आई रे कन्हाई रंग छलके, सुना दे जरा बाँसूरी। इस गीत में गोपियाँ नटखट कृष्ण से गुजारिश कर रही हैं कि वे होली के मौके पर अपनी जादूई बाँसुरी बजाना बंद न करें। यह गीत अपने समय के सबसे सफल गीतों में से एक था, जो लोगों के हृदय पर छा गया था। अपनी सुरीली आवाज से हिन्दी फिल्म संगीत की सुनहरी हस्ताक्षर शमशाद बेगम के गानों में अल्हड़ झरने की लापरवाह रवानी, जीवन की सच्चाई जैसा खुरदरापन और बहुत दिन पहले चुभे किसी काँटे की रह रहकर उठने वाली टीस का सा एहसास समझ में आता है। उनकी आवाज की यह अदाएँ सुनने वालों को बरबस ही अपनी ओर आकर्षित करती है और उनके गानों की लोकप्रियता का आलम यह है कि आज भी उन पर रीमिक्स बन रहे हैं। पहली ही फिल्म में 9 गाने शमशाद बेगम ने अपने गायन करियर की शुरुआत रेडियो से की। उनकी पहली हिंदी फिल्म ‘खजांची’ थी। फिल्म के सारे 9 गाने शमशाद ने गाए। उन्होंने 16 दिसंबर, 1947 को पेशावर रेडियो के लिए गाना गया। उनके इस गाने से ओ.पी. नैय्यर काफी प्रभावित हुए और उन्हें अपनी फिल्म में गाने का मौका दिया। 50, 60 और 70 के दशक में शमशाद संगीतकारों की पसंदीदा हुआ करती थीं। नए जमाने में शमशाद बेगम के जितने गानों को रिमिक्स किया गया शायद ही किसी और गायक के गानों को किया गया हो। खास बात ये रही कि शमशाद का ओरिजनल गाना जितना मशहूर हुआ उतने ही हिट उनके रिमिक्स भी हुए। उनके ‘सैंया दिल में आना रे’, ‘कजरा मोहब्बत वाला’, ‘कभी आर कभी पार’ जैसे गानों के रिमिक्स काफी लोकप्रिय हुए। ‘कजरा मोहब्बत वाला’ के रिमिक्स को तो सोनू निगम ने आवाज भी दी। शमशाद बेगम को इन रिमिक्स पर कोई एतराज नहीं रहा। वो इन्हें वक्त की मांग मानती थीं। मोबाइल की शान शमशाद बेगम के गाने आज भी कई लोगों के मोबाइल फोन की प्लेलिस्ट में मिल जाएंगे। उनकी आवाज का जादू है ही ऐसा।
यही नहीं शमशाद के गाने रिंगटोन्स के रुप में भी हिट रहे हैं। नब्बे के दशक में उनके गाने सबसे ज्यादा डाउनलोड की गई रिंगटोन्स में शामिल थे। 1968 में आई फिल्म ‘किस्मत’ में शमशाद बेगम ने हिरोइन बबीता नहीं बल्कि हीरो विश्वजीत के लिए आवाज दी थी। फिल्म में विश्वजीत पर फिल्माए कुछ गानों में वो लड़की के भेष में थे जिसके लिए आवाज शमशाद की इस्तेमाल की गई। पश्चिमी धुन आधारित पहला गाना शमशाद ने अपनी आवाज की विविधता को साबित करते हुए पश्चिमी धुन पर आधारित गाने भी गाए। उन्होंने सी. रामचंद्र द्वारा कंपोज किया हुआ गाना ‘आना मेरी जान संडे के संडे’ गाकर धूम मचा दी। ये उनका पहला पश्चिमी धुन पर आधारित गाना था। फिल्म रॉकस्टार का गाना ‘कतिया करूं’ काफी हिट रहा था लेकिन क्या आप जानते हैं कि ये गाना शमशाद के पचास साल पहले गाए गाने से प्रेरित है।
शमशाद बेगम ने ‘कतिया करूं’ को 1963 में गाया था। यह गाना पंजाबी फिल्म पिंड डि कुरही में अभिनेत्री निशी पर फिल्माया गया। शमशाद बेगम को कैमरे के सामने आना पसंद नहीं था। कुछ लोगों का मानना है कि शमशाद खुद को खूबसूरत नहीं मानती थीं इसलिए वो फोटो नहीं खिंचवाती थीं। वहीं कुछ लोग कहते हैं कि उन्होंने अपने पिता से कभी कैमरे के सामने न आने का वादा किया था। यही वजह है कि शमशाद बेगम की बहुत कम तस्वीरें उपलब्ध हैं। शमशाद बेगम के. एल. सहगल की बहुत बड़ी फैन थीं। उन्होंने सहगल की फिल्म देवदास 14 बार देखी थी। यही नहीं वो उनकी गायकी से भी काफी प्रभावित थीं। शमशाद बेगम ने ‘निशान’ जैसी फिल्मों नें बहुभाषी गीत भी गाए। फिल्म ‘शबनम’ में बर्मन दा के संगीत निर्देशन में उन्होंने एक गाने में 6 भाषाओं में एक साथ गाया। वह गैर-फिल्मी रेकॉर्ड्स के लिए भी गाती रहीं। हिंदी, पंजाबी, उर्दू और पश्तो में भी उनके कई गैर-फिल्मी गाने हैं। ओ. पी. नैयर की ‘टेंपल बेल’ फिल्मी दुनिया में शमशाद को गाने का मौका देने संगीतकार ओ.पी नैय्यर उन्हें ‘टेंपल बेल’ कहते थे। नैय्यर शमशाद की आवाज की तुलना मंदिर में बजने वाली घंटियों की आवाज से करते थे। शमशाद की गायन शैली पूरी तरह मौलिक थी और उन्होंने लता मंगेशकर, आशा भोंसले, गीता दत्त और अमीरबाई कर्नाटकी के दौर में अपनी अलग पहचान बनाई थी। भारतीय सिनेमा में अपनी सुरीली आवाज से लोगों का दिल जीत लेने वाली मशहूर पार्श्वगायिका शमशाद बेगम का निधन 23 अप्रैल, 2013 को मुम्बई में हो गया। शमशान बेगम ने हिन्दी फिल्म जगत से भले ही कई वर्ष पहले दूरियाँ बना ली थीं, किंतु अपने पूरे कैरियर में बेशुमार और प्रसिद्ध गानों को अपनी आवाज दी। उन्होंने न जाने कितने ही अनगिनत गानों को अपनी आवाज से सजाकर हमेशा हमेशा के लिए जिंदा कर दिया। उनकी बेटी उषा का कहना था कि मेरी माँ हमेशा यही कहती थीं की मेरी मौत के बाद मेरे अंतिम संस्कार के बाद ही किसी को बताना कि मैं अब इस दुनिया से जा चुकी हूँ, और मैं कहीं नहीं जाउँगी जहाँ से आई थी, वहीं वापस जा रही हूँ, मैं सदा सबके साथ हूँ। ये खनकती आवाज अब अपनी जुबान से गाये गए गानों से ही सबके दिलों को सुकून देगी।एजेन्सी।