एजेंसी। पहला परीक्षण, कोड नाम स्माइलिंग बुद्धा 18 मई 1974 में आयोजित किया गया था। परमाणु बम, बुनियादी सुविधाओं और संबंधित तकनीकों पर शोध के निर्माण की दिशा में प्रयास द्वितीय विश्व युद्ध के बाद से ही भारत की ओर से शुरू किया गया। भारत का परमाणु कार्यक्रम 1944 में आरंभ हुआ माना जाता है जब परमाणु भौतिकविद् होमी भाभा ने परमाणु ऊर्जा के दोहन के प्रति भारतीय कांग्रेस को राजी करना शुरू किया-एक साल बाद इन्होंने टाटा मूलभूत अनुसंधान संस्थान की स्थापना की।
1950 के दशक में प्रारंभिक अध्ययन बीएआरसी में किये गए और प्लूटोनियम और अन्य बम घटकों के उत्पादन व विकसित की योजना थी। 1962 में, भारत और चीन विवादित उत्तरी मोर्चे पर संघर्ष में लग गए और 1964 के चीनी परमाणु परीक्षण से भारत ने अपने आप को कमतर महसूस किया। जब विक्रम साराभाई इसके प्रमुख बन गए और 1965 में प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री ने इसमें कम रुचि दिखाई तो परमाणु योजना का सैन्यकरण धीमा हो गया।
बाद में जब इंदिरा गांधी 1966 में प्रधानमंत्री बनीं व भौतिक विज्ञानी राजा रमन्ना के प्रयासों में शामिल होने पर परमाणु कार्यक्रम समेकित किया गया। चीन के द्वारा एक और परमाणु परीक्षण करने के कारण अंत में 1967 में परमाणु हथियारों के निर्माण की ओर भारत को निर्णय लेना पड़ा और 1974 में अपना पहला परमाणु परीक्षण, मुस्कुराते बुद्ध आयोजित किया।
मुस्कुराते बुद्ध के जवाब, परमाणु आपूर्तिकर्ता समूह ने गंभीर रूप से भारत के परमाणु कार्यक्रम को प्रभावित किया। दुनिया की प्रमुख परमाणु शक्तियों ने भारत और पाकिस्तान, जो भारत की चुनौती को पूरा करने के लिए होड़ लगा रहा था, पर अनेक तकनीकी प्रतिबन्ध लगाये। परमाणु कार्यक्रम ने वर्षों तक साख और स्वदेशी संसाधनों की कमी तथा आयातित प्रौद्योगिकी और तकनीकी सहायता पर निर्भर रहने के कारण संघर्ष किया। आईएईए में, तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने घोषणा की कि भारत के परमाणु कार्यक्रम सैन्यकरण के लिए नहीं है हालाँकि हाइड्रोजन बम के डिजाइन पर प्रारंभिक काम के लिए उनके द्वारा अनुमति दे दी गई थी।
18 मई 1974 को पोखरण में परमाणु परिक्षण कर भारत ने पूरी दुनिया को हिला दिया था। भारत से पहले इस तरह का न्यूकलियर टेस्ट सिर्फ संयुक्त राष्ट्र के 5 स्थायी देशों ने किया था। भारत इस परिक्षण के बाद दुनिया के ताकतवर देशों की कतार में मजबूती से खड़ा हो गया। आज से 47 साल पहले भारत ने पहला परमाणु परीक्षण कर पूरी दुनिया को चौंका दिया था। तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के नेतृत्व में भारत ने ये करिश्मा कर दिखाया था। इतना ही नही इंदिरा गांधी ने अपने रक्षा मंत्री को भी नहीं पता लगने दी थी पोखरण में परमाणु परिक्षण होगा। भारत के इस परीक्षण को जहां इंदिरा गांधी ने शांतिपूर्ण परमाणु परीक्षण करार दिया तो वहीं दूसरी तरफ अमेरिका ने भारत को परमाणु सामग्री और ईधन की आपूर्ति रोक दी थी।
साल 1972 में भाभा एटॉमिक रिसर्च सेंटर का दौरा करते हुए तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने वहां के वैज्ञानिकों को परमाणु परीक्षण के लिए संयंत्र बनाने की इजाजत दी थी ।लेकिन गांधी की ये इजाजत मौखिक थी । क्योंकि परीक्षण के दिन से पहले तक इस पूरे ऑपरेशन को गोपनीय रखा गया था । यहां तक कि अमेरिका को भी इसकी कोई जानकरी नहीं लग पाई। नाराज अमेरिका ने परमाणु सामग्री और इंधन के साथ कई तरह के और प्रतिबंध लगा दिए थे। संकट की इस घड़ी में सोवियत रूस ने भारत का साथ दिया ।
दरअसल 18 मई 1974 को उस दिन बुद्ध जयंती थी। तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी उस दिन एक फोन का इंतजार कर रही थीं। उनके पास एक वैज्ञानिक का फोन आता है और वह कहते हैं “बुद्ध मुस्कराए”। इस संदेश का मतलब था कि भारत ने पोखरण में परमाणु परीक्षण कर दिया है जो सफल रहा। इसके बाद दुनिया में भारत पहला ऐसा देश बन गया था जिसने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद का सदस्य न होते हुए भी परमाणु परीक्षण करने का साहस किया है। परमाणु बम का व्यास 1.25 मीटर और वजन 1400 किलो था। सेना इसको बालू में छिपाकर लाई थी। सुबह 8 बजकर 5 मिनट पर यह राजस्थान के पोखरण में विस्फोट किया था। बताया जाता है कि 8 से 10 किमी इलाके में धरती हिल गई थी।