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एजेंसी। हिंदी सिनेमा इतिहास के अग्रणी निर्माता-निर्देशक थे। हिन्दी सिनेमा जगत् के युगपुरुष महबूब ख़ान को ऐसी शख़्सियत के तौर पर याद किया जाता है, जिन्होंने दर्शकों को लगभग तीन दशक तक क्लासिक फ़िल्मों का तोहफा दिया। वह युवावस्था में घर से भागकर बम्बई आ गए और स्टूडियो में काम करने लगे। हिंदी सिनेमा को आधुनिकतम तकनीकी से सँवारने में अग्रणी निर्माता-निर्देशक महबूब ख़ान का अहम किरदार रहा है। महबूब ख़ान हॉलीवुड की फ़िल्मों से बहुत अधिक प्रभावित थे और भारत में भी उच्च स्तर के चलचित्रों का निर्माण करने में जुटे रहते थे।
महबूब ख़ान का जन्म 9 सितम्बर, 1907 को सूरत शहर के निकट गाँव में ग़रीब परिवार में हुआ था। शुरू से ही वह मेहनतकश इन्सान थे, इसीलिए उन्होंने अपने निर्माण संस्थान ‘महबूब प्रोडक्शन’ का चिन्ह ‘हंसिया-हथौड़े’ को दर्शाता हुआ रखा। जब वह 1925 के आसपास बम्बई नगरी (वर्तमान मुम्बई) में आये तो इंपीरियल कम्पनी ने उन्हें अपने यहाँ सहायक के रूप में रख लिया। कई वर्ष बाद उन्हें फ़िल्म ‘बुलबुले बगदाद’ में खलनायक का किरदार निभाना पड़ा।
हिन्दी सिनेमा जगत के युगपुरुष महबूब ख़ान को ऐसी शख्सियत के तौर पर याद किया जाता है, जिन्होंने दर्शकों को लगभग तीन दशक तक क्लासिक फिल्मों का तोहफा दिया। कम ही लोगों को पता होगा कि भारत की पहली बोलती फिल्म ‘आलमआरा’ के लिये महबूब ख़ान का अभिनेता के रूप में चयन किया गया था, लेकिन फिल्म निर्माण के समय आर्देशिर ईरानी ने महसूस किया कि फिल्म की सफलता के लिए नये कलाकार को मौका देने के बजाय किसी स्थापित अभिनेता को यह भूमिका देना सही रहेगा। बाद में उन्होंने महबूब ख़ान की जगह मास्टर विठ्ठल को इस फिल्म में काम करने का अवसर दिया था।
कहा जाता है की महबूब ख़ान बहुत शराब पीते थे और उनके नाम के साथ कई प्रेम कहानियाँ भी जुड़ी। वह जिस अभिनेत्री को भी अपनी फ़िल्म में मौका देते, उससे प्यार कर बैठते। उनके निर्देशन में पहली फ़िल्म ‘अलहिलाल’ 1935 में बनी, जो सागर मूवीटोन की फ़िल्म थी। उसमें अभिनेत्री अख्तरी मुरादाबादी के साथ काम करते-करते वह उनके प्यार में उलझ गये। आज़ादी से पूर्व फ़िल्म ‘औरत’ का निर्देशन किया, जिसकी नायिका सरदार अख्तर पर भी महबूब आशिक हो गये और उनका प्यार 24 मई, 1942 को शादी में बदल गया। उनकी कोई सन्तान नहीं हुयी।
1957 में प्रदर्शित फ़िल्म मदर इंडिया महबूब ख़ान की सर्वाधिक सफल फ़िल्मों में शुमार की जाती है। उन्होंने मदर इंडिया से पहले भी इसी कहानी पर 1939 में औरत फ़िल्म का निर्माण किया था और वह इस फ़िल्म का नाम भी औरत ही रखना चाहते थे। लेकिन नर्गिस के कहने पर उन्होंने इसका मदर इंडिया जैसा विशुद्ध अंग्रेज़ी नाम रखा। फ़िल्म की सफलता से उनका यह सुझाव सही साबित हुआ। महान् अदाकारा नर्गिस को फ़िल्म इंडस्ट्री में लाने में महबूब ख़ान की अहम भूमिका रही। नर्गिस अभिनेत्री नहीं बनना चाहती थी, लेकिन महबूब ख़ान को उनकी अभिनय क्षमता पर पूरा भरोसा था और वह उन्हें अपनी फ़िल्म में अभिनेत्री के रूप में काम देना चाहते थे। एक बार नर्गिस की माँ ने उन्हें स्क्रीन टेस्ट के लिए महबूब ख़ान के पास जाने को कहा। चूंकि नर्गिस अभिनय क्षेत्र में जाने की इच्छुक नहीं थीं, इसलिए उन्होंने सोचा कि यदि वह स्क्रीन टेस्ट में फेल हो जाती हैं तो उन्हें अभिनेत्री नहीं बनना पडे़गा।
फ़िल्म ‘मदर इंडिया’ (1957) के निर्माण ने महबूब ख़ान को सर्वाधिक ख्याति दिलाई, क्योंकि ‘मदर इंडिया’ को विदेशी भाषा की सर्वश्रेष्ठ फ़िल्म के लिये अकादमी पुरस्कार के लिये नामांकित किया गया तथा इस फ़िल्म ने सर्वश्रेष्ठ निर्देशक के लिए फ़िल्म फेयर पुरस्कार भी जीता।
महबूब ख़ान की प्रमुख फ़िल्में सन ऑफ़ इंडिया (1962) अ हैंडफुल ऑफ़ ग्रेन (1959)मदर इंडिया (1957) अमर (1954) आन (1952) अंदाज़ (1949) अनोखी अदा (1948) ऐलान (1947) अनमोल घड़ी (1946) हुमायुँ (1945) नाज़िमा (1943) तकदीर (1943)।
अपनी फ़िल्मों से दर्शकों के बीच ख़ास पहचान बनाने वाले महबूब ख़ान 28 मई, 1964 को इस दुनिया से रूख़सत हो गये
फोटो सोशल मिडिया से