पुण्य तिथि पर विशेष-मुहम्मद अली जिन्ना ब्रिटिश भारत के प्रमुख नेता और मुस्लिम लीग के अध्यक्ष भी थे। जिन्ना कराची के एक संपन्न व्यापारी के घर जन्मे थे और सबसे बड़े बेटे थे।
मुहम्मद अली जिन्ना ने बाद में अपना नाम संक्षिप्त करके जिन्ना रख लिया था। जिन्ना के पिता ने जिन्ना को लंदन में एक व्यापारी कंपनी में प्रशिक्षु के रूप में भर्ती करा दिया था। लंदन पहुँचने के थोड़े समय बाद ही मुहम्मद अली जिन्ना व्यापार छोड़कर क़ानून की पढ़ाई में लग गए थे। मुहम्मद अली जिन्ना अपनी क़ानून की पढ़ाई पूरी करके युवा बैरिस्टर के रूप में बम्बई वर्तमान मुम्बई में अपना भाग्य आजमाने की सोचने लगे। बाद के दिनों में बम्बई में उनकी बैरिस्टर अ’छी चलने लगी। बाद में वक़ील के रूप में जमने के बाद जिन्ना ने राजनीति में सक्रिय रूचि लेनी आरंभ कर दी। उन्होंने दादाभाई नौरोजी तथा गोपालकृष्ण गोखले जैसे कांग्रेस के नरमदलीय नेताओं के अनुयायी के रूप में भारतीय राजनीति में प्रवेश किया।
यह एक विडंबना थी कि वह 1906 में हिन्दुओं का ही प्रभुत्व रखने वाली भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस पार्टी के सदस्य बने। वे हिन्दू मुस्लिम एकता के उत्साही समर्थक भी थे। 1910 में वे बम्बई के मुस्लिम निर्वाचन क्षेत्र से केन्द्रीय लेजिस्लेटिव कौंसिल के सदस्य चुने गए 1911 में मुस्लिम लीग में शामिल हुए और 1916 में उसके अध्यक्ष हो गए।
इसी हैसियत से उन्होंने संवैधानिक सुधारों की संयुक्त कांग्रेस लीग योजना पेश की। इस योजना के अंतर्गत कांग्रेस लीग समझौते से मुसलमानों के लिए अलग निर्वाचन क्षेत्रों तथा जिन प्रान्तों में वे अल्पसंख्यक थे वहाँ पर उन्हें अनुपात से अधिक प्रतिनिधित्व देने की व्यवस्था की गई। इसी समझौते को लखनऊ समझौता कहते हैं।
जिन्ना कहते थे कि दोनों समुदाय इकठ्ठे हो जाएँ तो गोरों पर हिंदुस्तान से चले जाने के लिए अधिक दबाव डाला जा सकता है। जिन्ना भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के समर्थक थे परन्तु गांधीजी के असहयोग आंदोलन का उन्होंने तीव्र विरोध किया और इसी प्रश्न पर कांग्रेस से वह अलग हो गए। इसके बाद से उनके ऊपर हिन्दू राष्ट्र की स्थापना के भय का भूत सवार हो गया। उन्हें यह ग़लत फ़हमी हो गई कि हिन्दू बहुल हिंदुस्तान में मुसलमानों को उचित प्रतिनिधित्व कभी नहीं मिल सकेगा। सो वह एक नए राष्ट्र पाकिस्तान की स्थापना के घोर समर्थक और प्रचारक बन गए।
उनका कहना था कि अंग्रेज़ लोग जब भी सत्ता का हस्तांतरण करें उन्हें उसे हिन्दुओं के हाथ में न सौंपें हालाँकि वह बहुमत में हैं। ऐसा करने से भारतीय मुसलमानों को हिन्दुओं की अधीनता में रहना पड़ेगा। जिन्ना अब भारतीयों की स्वतंत्रता के अधिकार के बजाए मुसलमानों के अधिकारों पर अधिक ज़ोर देने लगे। उन्हें अंग्रेज़ों का सामान्य कूटनीतिक समर्थन मिलता रहा और इसके फलस्वरूप वे अंत में भारतीय मुसलमानों के नेता के रूप में देश की राजनीति में उभड़े।
मुहम्मद अली जिन्ना ने लीग का पुनर्गठन किया और क़ायदे आज़म् के रूप में विख्यात हुए। 1940 में उन्होंने धार्मिक आधार पर भारत के विभाजन तथा मुसलिम बहुसंख्यक प्रान्तों को मिलाकर पाकिस्तान बनाने की मांग की। बहुत कुछ उन्हीं वजह से 1947 में भारत का विभाजन और पाकिस्तान की स्थापना हुई।
पाकिस्तान के पहले गवर्नर जनरल बनकर उन्होंने पाकिस्तान को एक राष्ट्र बनाया। पंजाब के दंगे तथा सामूहिक रूप से जनता का एक राष्ट्र से दूसरे राष्ट्र को निगर्मन उन्हीं के जीवनकाल में हुआ। 11 सितम्बर 1948 को कराची में उनकी मृत्यु हो गई।