अमेरिका ने अफगानिस्तान में सैनिकों को कम करने की बात कही थी लेकन राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने अब वहां चार हजार सैनिक अतिरिक्त तैनात करने का निर्णय लिया है। अभी अमेरिका के वहां 8 हजार चार सौ सैनिक तैनात थे, अब अफगानिस्तान में अमेरिकी सैनिकों की संख्या बढ़कर 12 हजार चार सौ हो जाएगी। यह एक तरह से पाकिस्ताना को अमेरिका की चेतावनी है क्योंकि अफगनिस्तान में आतंकियों को पाकिस्तान की सरजमीं पर कोई मदद न मिल सके और हक्कानी गुट के खिलाफ कार्रवाई पाकिस्तान सरकार करे, इसके लिए अमेरिका पाकिस्तान को आतंकवाद उन्मूलन के नाम पर मदद देता था। अफगानिस्तान में अमेरिकी सैनिकों का बढ़ाया जाना इस बात का संकेत है कि अमेरिका को आतंकवाद के मामले में पाकिस्तान पर भरोसा नहीं रह गया है। राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने अफगानिस्तान को लेकर जो नयी रणनीति बनायी है, उसमें साफ-साफ कहा गया है कि आतंकवादियों पर यदि पाकिस्तान कड़ी और ईमानदारी से कार्रवाई नहीं करता है तो उसे बहुत महंगा पड़ेगा। ध्यान रहे कि पाकिस्तान को आतंकवाद से लड़ने के लिए ही अमेरिका से अरबों डालर की मदद मिलती है लेकिन पाकिस्तान की मंशा को जैसे-जैसे अमेरिका समझता जा रहा है, वैसे-वैसे आर्थिक मदद में कटौती भी हो रही है।
राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने आतंकवादी समूहों को समर्थन देना जारी रखने के लिए पाकिस्तान की निंदा की और उसे चेतावनी दी कि यदि वह ऐसा करना जारी रखता है तो उसे इसके गंभीर परिणाम भुगतने होंगे। उन्होंने कहा हम आतंकवादी संगठनों, तालिबान और क्षेत्र एवं इससे आगे भी खतरा पैदा करने वाले अन्य समूहों को पाकिस्तान द्वारा मुहैया कराई जा रही पनाहगाहों को लेकर अब खामोश नहीं रह सकते। उन्होंने पाकिस्तान को स्पष्ट चेतावनी देते हुए कहा पाकिस्तान के पास अफगानिस्तान में हमारे प्रयास में साझीदार बनकर हासिल करने के लिए बहुत कुछ है, लेकिन आतंकवादियों को शरण देना जारी रखने पर उसके पास खोने के लिए भी बहुत कुछ है। नयी अफगान रणनीति में अमेरिका के राष्ट्रपति ने भारत से भी अपील की कि वह अफगानिस्तान में शांति एवं स्थिरता लाने के लिए विशेषकर आर्थिक क्षेत्र में और योगदान दें। ट्रंप ने कहा ‘हम अफगानिस्तान में स्थिरता लाने में भारत के अहम योगदान की प्रशंसा करते हैं, लेकिन भारत अमेरिका के साथ व्यापार से अरबों डालर कमाता है और हम चाहते हैं कि वह अफगानिस्तान के संबंध में खासकर आर्थिक सहयोग एवं विकास के क्षेत्र में हमारी और मदद करे’। ट्रंप ने आतंकवादियों को शरण देने को लेकर इस्लामाबाद पर निशाना साधा और कहा कि अब समय आ गया है कि पाकिस्तान सभ्यता, व्यवस्था एवं शांति के प्रति अपनी प्रतिबद्धता को दर्शाएं। ट्रंप ने कहा कि अमेरिका पाकिस्तान को अरबों डालर दे रहा है, लेकिन वह अमेरिका के खिलाफ लड़ रहे आतंकवादियों को पनाह दे रहा है।
श्री ट्रंप ने अफगानिस्तान में 4 हजार और अमेरिकी सैनिकों को भेजने की योजना को मंजूरी दे दी। ट्रंप ने कहा कि यह अमेरिकी नीति में बदलाव का हिस्सा है और वहां हमारा लक्ष्य तालिबान को परास्त करना है। ट्रंप के इस फैसले का भारत ने स्वागत किया है और कहा है कि इससे आतंकवाद के खात्मे में मदद मिलेगी। यहां यह बता दें कि ट्रंप हमेशा अपने पूर्ववर्ती राष्ट्रपतियों की अफगानिस्तान के बारे में नीतियों के जोरदार आलोचक रहे हैं, लेकिन अब यही चुनौती उनके सामने है कि किस तरह तालिबान को समाप्त किया जाए, क्योंकि अफगानिस्तान में हमेशा ही सरकार की कमजोरियों का तालिबान ने फायदा उठाया है। हालांकि ट्रंप ने इस बात का जिक्र नहीं किया कि अभी अफगानिस्तान में और कितने सैनिकों को तैनात किया जाएगा और उनकी तैनाती अवधि क्या रहेगी, लेकिन आधिकारिक सूत्रों का कहना है कि ट्रंप ने रक्षा मंत्री जिम मैटिस की उस योजना को मंजूरी दी है, जिसमें अफगानिस्तान में चार हजार अतिरिक्त सैनिकों को भेजने की बात कही गई है। यहां यह भी उल्लेखनीय है कि अफगानिस्तान में पहले से ही 8 हजार 400 अमेरिकी सैनिक तैनात है अब और सैनिकों की तैनाती से वहां कुल संख्या बढकर 12 हजार 400 हो जाएगी। ट्रंप ने यह चेतावनी भी दी है कि अफगानिस्तान में अमेरिका का समर्थन एकदम कोरा नहीं है और न ही अमेरिका वहां राष्ट्र निर्माण का इच्छुक है, बल्कि मुख्य लक्ष्य तालिबान का खात्मा है और इसके बाद अफगानिस्तान खुद ही अपने पैरों पर खड़ा हो जाएगा। यहां उल्लेखनीय है कि ट्रंप से पहले अमेरिकी सेंट्रल कमांड के कमांडर जनरल जोसेफ वोटल ने पाकिस्तान यात्रा के दौरान वहां के शीर्ष नेताओं से दो टूक कहा कि सभी पक्षों को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि पाकिस्तान की जमीन का इस्तेमाल उसके पड़ोसियों के खिलाफ आतंकवादी हमले करने या फिर उसकी योजना बनाने में न हो। करीब एक महीने के भीतर चैथा मौका है जब अमेरिका ने आतंकवाद के मसले पर पााकिस्तान की निंदा की है और साथ ही चेतावनी भी दी है।
सवाल यह समझ मंे नहीं आता कि अंतरराष्ट्रीय दबाव के बावजूद पाकिस्तान अपनी जमीन से आतंकी गतिविधियां संचालित होने के खिलाफ कोई ठोस कदम क्यों नहीं उठाता है। वैसे पाकिस्तान ने जनरल वोटल के सामने अफगानिस्तान की अशांति के साथ-साथ कश्मीर का मामला भी उठाया और क्षेत्रीय हितों के मुद्दों को हल करने के लिए अमेरिका के साथ मिलकर काम करने की बात कही। अमेरिका कश्मीर के मुद्दे पर पाकिस्तान की ओर से नाहक दखलंदाजी की अनदेखी करके सिर्फ आतंकवाद के पहलू पर उसे सलाह देता है तो इससे स्थिति में कोई खास फर्क नहीं आने वाला। यह किसी से छिपा नहीं है कि लश्कर-ए-तैयबा से लेकर हिजबुल मुजाहिदीन जैसे कई आतंकी संगठनों को कहां से खुराक और मदद मिलती है। कश्मीर में दखल देने के मकसद से ही इन आतंकी समूहों को पाकिस्तान संरक्षण देता रहा है। यहां तक कि जिस तालिबान को अमेरिका अपना सबसे बड़ा दुश्मन मानता है, उसे भी पाकिस्तान के भीतर से काम करने में दिक्कत नहीं होती है। यहां यह उल्लेखनीय है कि अफगानिस्तान में अमेरिका और अन्य पश्चिमी देशों के हितों पर हक्कानी नेटवर्क के हमले को लेकर पाकिस्तान से उसके खिलाफ कार्रवाई करने को कहा गया था। फिर भी जब हक्कानी नेटवर्क के खिलाफ पर्याप्त कदम उठाए जाने की पुष्टि नहीं हुई तब अमेरिका ने पाकिस्तान को गठबंधन कोष में पैंतीस करोड़ डालर की मदद नहीं देने का फैसला किया। इसके बाद भी अगर पाकिस्तान की समझ में नहीं आ रहा है तो कोई क्या कर सकता है। (हिफी)