शाह शुजा मुगल सम्राट शाहजहां और महारानी मुमताज महल के दूसरे पुत्र थे । शुजा के भाई बहन जहाॅंआरा बेगम, दारा शिकोह,रोशनारा बेगम,औरंगजेब, मुराद बख्श, गौहर बेगम और अन्य थे। उनकी तीसरी पत्नी किश्तवार के राजा तमसेन की पुत्री थी। उनके तीन बेटे थे – सुल्तान जैन-उल-दीन (बॉन सुल्तान/ सुल्तान बैंग), बुलंद अख्तर और जैनुल आब्दीन और चार बेटियां – गुलरुख बानू, रोशनारा बेगम और अमीना बेगम थी. वह बंगाल और उड़ीसा के गवर्नर थे और वर्तमान में बांग्लादेश ढाका में उनकी राजधानी थी। जब शाहजहां बीमार पड़ गए, तब उनके चार बेटों – दारा शिकोह, शाह शुजा, औरंगजेब और मुराद बख्ख के बीच सिंहासन के लिए संघर्ष शुरू हुआ। शाह शुजा ने तुरंत नवंबर 1657 में खुद को सम्राट का ताज पहनाया और शाही खिताब लिया । शाह शुजा ने तुरंत स्वयं को बंगाल का स्वतंत्र प्रशासक घोषिक कर दिया। इलाहाबाद के निकट खजुहा में 5 जनवरी, 1659 को औरंगज़ेब और शाह शुजा के मध्य उत्तराधिकारी के लिये युद्ध हुआ था। शाह शुजा जब आगरा के तख़्त के लिए बढ़े तो उसे रोकने के लिए शाहजहां ने राजकुमार सुलेमान शिकोह के साथ राजा जय सिंह और अनिरुद्ध गौड़ को भेजा. बड़ी ताताद में राजपूतों ने तख़्त की लड़ाई में औरंगज़ेब का साथ दिया.इनमें शुभ करन बुंदेला, भागवत सिंह हाड़ा, मनोहर दास हाड़ा, राजा सारंगम और रघुनाथ राठौर प्रमुख थे. ज़्यादातर राजपूत राजाओं ने तख्त की लड़ाई में शाहजहां और उसके बड़े बेटे दाराशिकोह का विरोध किया था.शाहजहाँ के बीमार पड़ने पर उसके चारों पुत्र दारा शिकोह, शाहशुजा, औरंगज़ेब एवं मुराद बख़्श में उत्तराधिकार के लिए संघर्ष प्रारम्भ हो गया। शाहजहाँ की मुमताज़ बेगम द्वारा उत्पन्न 14 सन्तानों में 7 जीवित थीं, जिनमें 4 लड़के तथा 3 लड़कियाँ – जहान आरा, रौशन आरा एवं गोहन आरा थीं। जहान आरा ने दारा का, रोशन आरा ने औरंगज़ेब का एवं गोहन आरा ने मुराद का समर्थन किया। शाहजहाँ के चारों पुत्रों में दारा शिकोह सर्वाधिक उदार, शिक्षित एवं सभ्य थे। शाहजहाँ ने दारा को अपना उत्तराधिकारी घोषित किया और उसे ‘शाहबुलन्द इक़बाल’ की उपाधि दी। उत्तराधिकारी की घोषणा से ही ‘उत्तराधिकार का युद्ध’ प्रारम्भ हुआ। युद्धों की इस श्रंखला का प्रथम युद्ध शाहशुजा एवं दारा के लड़के सुलेमान शिकोह तथा आमेर के राजा जयसिंह के मध्य 24 फ़रवरी, 1658 को बहादुरपुर में हुआ, इस संघर्ष में शाहशुजा को शिकस्त का सामना करना पड़ा था। दूसरा युद्ध औरंगज़ेब एवं मुराद बख़्श तथा दारा की सेना, जिसका नेतृत्व महाराज जसवन्त सिंह एवं कासिम ख़ाँ कर रहे थे, के मध्य 25 अप्रैल, 1658 को ‘धरमट’ में हुआ, इसमें दारा की पराजय हुई। औरंगज़ेब ने इस विजय की स्मृति में ‘फ़तेहाबाद’ की स्थापना की। तीसरा युद्ध दारा एवं औरंगज़ेब के मध्य 8 जून, 1658. को ‘सामूगढ़’ में हुआ। इसमें भी दारा को पराजय का सामना करना पड़ा। 5 जनवरी, 1659 को उत्तराधिकार का एक और युद्ध खजुवा में लड़ा गया, जिसमें जसवंत सिंह की भूमिका औरंगज़ेब के विरुद्ध थी, किन्तु औरंगज़ेब सफल हुआ। शाह शुजा का जन्म 23 जून 1616 को हुआ था। निधन 7 फरवरी 1661 को