भारतीय फिल्म संगीत में सचिनदेव बर्मन, मदन मोहन, शंकर-जयकिशन, कल्याणजी-आनंदजी, लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल और राहुलदेव बर्मन जैसे दिग्गज संगीतकारों का डंका बज रहा था। ऐसे समय में आई फिल्म ‘चोर मचाए शोर’ का संगीत लीक से हटकर श्रोताओं को नया ‘टेस्ट’ देने वाला था। इस फिल्म के लिए संगीत रचनाएं लेकर आए थे तब के नए संगीतकार रवींद्र जैन। इस फिल्म का गीत ‘ले जाएंगे..ले जाएंगे दिल वाले दुल्हनिया ले जाएंगे…’ की लोकप्रियता आज तक बरकरार है। इसी फिल्म का एक अन्य ‘गीत घुंघरू की तरह बजता ही रहा हूं मैं…’ किशोर कुमार के श्रेष्ठ गीतों में से एक है। वास्तव में रवींद्र जैन की प्रतिभा ने ही उन्हें भारतीय फिल्म संगीत के क्षेत्र में भारी प्रतिस्पर्धा के बीच ऊंचा मुकाम दिलाया।
अमिताभ के साथ-साथ करियर की डगर
1973 में फिल्म ‘सौदागर’ आई थी। यह फिल्म जहां अमिताभ बच्चन के करियर की शुरुआती फिल्म थी वहीं रवींद्र जैन के करियर की भी शुरुआती फिल्म थी। अमिताभ और नूतन की यह फिल्म बहुत सफल नहीं रही लेकिन इसका संगीत पसंद किया गया। इस फिल्म के गीत ‘हर हंसी चीज का मैं तलबगार हूं…’, ‘सजना है मुझे सजना के लिए…’और ‘दूर है किनारा, गहरी समय की धारा…’ खासे लोकप्रिय हुए। ‘ फिल्म सौदागर में रवींद्र जैन संगीतकार के साथ-साथ गीतकार भी थे।
हमेशा गुनगुनाए जाने वाले गीत
राजश्री प्रोडक्शन की कई फिल्मों के लिए रवींद्र जैन ने संगीत दिया। यह वह संगीत है जो हमेशा सुना-गुनगुनाया जाता रहेगा। 1982 में आई फिल्म ‘नदिया के पार’ के गीत ‘कौन दिशा में लेके चला रे बटोहिया..’ और ‘सांची कहे तोरे आवन से हमरे..’ लोकप्रिय हुए। इस फिल्म ने सफलता के नए रिकार्ड बनाए थे और इसमें इसके संगीत का अहम योगदान था। इससे पहले 1978 में रवींद्र जैन के संगीत से सजी फिल्म ‘अंखियों के झरोखे से’ आई थी। इस फिल्म का टाइटल गीत ‘अंखियों के झरोखे से मैने देखा जो सांवरे..’ और ‘कई दिन से मुझे, कोई सपनों में…’ संगीत रसिकों के मन में ऐसे बसे कि आज भी सुने जा रहे हैं।
तू जो मेरे सुर में सुर मिला ले…
रवींद्र जैन का फिल्म ‘चोर मचाए शोर’ का संगीत जहां तड़क-भड़क के साथ गंभीरतापूर्ण भी था वहीं 1976 में आई फिल्म ‘चितचोर’ में उनका संगीत शास्त्रीयता पूर्ण था। इस फिल्म के दो गीतों ‘जब दीप जले आना, जब शाम ढले आना..’, और ‘तू जो मेरे सुर में, सुर मिलाले संग गा ले.. ‘ ने संगीत रसिकों को सुगम संगीत का वह खोया हुआ अहसास लौटाया जो उन दिनों में फिल्म संगीत से गायब होता जा रहा था। इस संगीत ने दक्षिण से हिन्दी फिल्मों में आए गायक येशुदास और हेमलता को भी काफी प्रतिष्ठा दिलाई। चितचोर के अन्य गीतों में ‘आज से पहले, आज से ज्यादा’ और ‘गोरी तेरा गांव बड़ा प्यारा’ भी बहुत लोकप्रिय हुए। अस्सी के दशक में रवींद्र जैन ने ‘अंखियों के झरोखे’ और ‘गीत गाता चल’ जैसी फिल्मों के लिए भी मधुर संगीत रचनाएं दीं। इन दोनों फिल्मों के टाइटल गीत इनके हिट होने का जरिया बने।
ग्रेट शो मैन राज कपूर के विश्वास पर खरे
भारतीय सिने जगत के महान फिल्मकार राज कपूर अपनी फिल्मों में हमेशा गीतकार शैलेंद्र और संगीतकार शंकर-जयकिशन को लेते थे। इस संगीतकार जोड़ी ने राज कपूर की फिल्मों में अविस्मरणीय संगीत दिया। राज कपूर की टीम में यह जोड़ी कई दशकों तक बनी रही। लेकिन राज कपूर ने इस जोड़ी के बाद अपनी फिल्मों के लिए रवींद्र जैन पर ही भरोसा किया। 1985 में ग्रेट शोमेन राज कपूर की फिल्म ‘राम तेरी गंगा मैली’ आई। यह फिल्म जहां उनकी पूर्व की फिल्मों से सर्वथा अलग थी वहीं इसके संगीत में भी नए रंग थे। फिल्म के टाइटल गीत से लेकर बाकी सारे गीतों ने लोकप्रियता के शिखरों को छुआ। इसके बाद राज कपूर नहीं रहे। उनका सपना था फिल्म ‘हिना’ बनाने का, जो उनके बेटे रणधीर कपूर ने पूरा किया। हिना में भी संगीतकार रवींद्र जैन ही थे। इस फिल्म का संगीत भी काफी लोकप्रिय हुआ।
रवींद्र जैन ने अपने संगीत में सुरों की ऐसी अनुभूतियों के रंग भरे जो मन को झंकृत करके श्रोताओं को अलौकिक अहसासों की दुनिया में ले जाते हैं। रवींद्र जैन दृष्टिहीन थे, लेकिन शायद संगीत ही उनकी वह आंखें थीं जिनसे वह अनदेखे जगत की संवेदनाओं को ग्रहण और अभिव्यक्त करते रहे। रवींद्र जैन आज भले ही नहीं रहे लेकिन उनकी मधुर संगीत रचनाएं उन्हें कभी विस्मृत नहीं होने देंगी।
रवीन्द्र जैन का जन्म 28 फरवरी 1944 में अलीगढ़ में हुआ था। वे सात भाई-बहन थे। 9 अक्टूबर, 2015 को मुंबई में उनका निधन हो गया। सूर्यकांत के ब्लॉग से