जयंती पर विशेष- महाराणा प्रताप सिंह का जन्म 9 मई 1540 को हुआ था व निधन –19 जनवरी 1597 को महान की उपाधि से लेकर हल्दीघाटी के युद्ध तक महाराणा प्रताप के साथ हालिया दौर में कई विवाद जुड़े. इन मुद्दों पर सबकी अपनी-अपनी राय हो सकती है लेकिन एक बात कोई नहीं नकार सकता कि वो एक महान शूरवीर थे.वे उदयपुर, मेवाड़ में सिसोदिया राजवंश के राजा थे। वे अकेले ऐसे वीर थे, जिसने मुग़ल बादशाह अकबर की अधीनता किसी भी प्रकार स्वीकार नहीं की। वे हिन्दू कुल के गौरव को सुरक्षित रखने में सदा तल्लीन रहे। उनका जन्म स्थान कुम्भलगढ़ दुर्ग में 9 मई 1540 को पिता राणा उदय सिंह और माता महाराणी जयवंता कँवर के घर में हुआ। उन्होंने अपने जीवन काल में कुल 11 शादियाँ की थी। महाराणा प्रताप के 17 पुत्र थे.
स्वतंत्रता प्रेमी होने के कारण उन्होंने अकबर के अधीनता को पूरी तरीके से अस्वीकार कर दिया। यह देखते हुए अकबर नें कुल 4 बार अपने शांति दूतों को महाराणा प्रताप के पास भेजा। राजा अकबर के शांति दूतों के नाम थे जलाल खान कोरची, मानसिंह, भगवान दास और टोडरमल।
हल्दीघाटी का युद्ध- जब महाराणा प्रताप की सेना एक मुस्लिम और अकबर की एक हिंदू सेनापति की कमान में आमने-सामने आईं.
21 जून साल का सबसे लंबा दिन होता है.1572 की उस रोज़ लगभग तेरह घंटे का दिन था. सूर्यदेव दक्षिणायन होने को जा रहे थे जब हल्दी घाटी में कोहराम मच गया. हिंदुस्तान के इतिहास में दर्ज़ सबसे ख़ूनी लडाइयों में से एक इस मायने में दिलचस्प थी कि मुग़लिया सेना की सरपरस्ती एक राजपूत के हाथों थीं और प्रताप की सेना की कमान एक पठान, हाकिम खां सूरी के हाथ में.पहर चढ़े जमकर जंग हुई. लड़ाई के शुरुआती घंटे तो राणा के पक्ष में थे. महाराणा और उनकी सेना अपने पूरे वेग में थी. वे खुद चेतक को उड़ाते हुए मान सिंह के ठीक सामने आ डटे. भरी जंग में उन्होंने चेतक की लगाम कसी और ऐड़ लगाकर हिनहिनाते चेतक ने आगे के दोनों पैर मान सिंह के हाथी की सूंड पर टिका दिए. राणा ने अपना भाला मान सिंह को निशाना करके चला दिया. मान सिंह हौदे में झुक गए और बच गए. लेकिन हाथी की सूंड पर लगी तलवार से चेतक ज़ख़्मी हो गया. प्रताप घिर गए कि तभी उनके एक साथी झाला वीदा सरदार ने प्रताप के हाथों से राज्य चिन्ह बलपूर्वक छीन लिया और उन्हें निकल जाने को कहा. प्रताप बच गए और वीदा उस दिन के बाद से अमर हो गए.जंग में यकीनन जीत मान सिंह की हुई पर राणा को जिंदा या मुर्दा पकड़ने का अकबर को दिया हुआ अहद पूरा नहीं हुआ. फिर कई और जंगें हुईं. अकबर ने भी खुद अपने आप को जंग में खपाकर प्रताप से लोहा लिया पर उन्हें पकड़ने में कामयाब नहीं हुए. हर बार जीते हुए इलाकों में मुगलिया चौकी बना दी जातीं और सेना के लौट जाने के बाद पहाड़ों में छिपे हुए प्रताप और उनकी सेना बाहर आकर उन्हें ध्वस्त कर देती. हर जंग का यही अंजाम था. बाद में अकबर भी थक गए और राणा ने बहुत कम समय में अपना खोया हुआ राज्य काफी हद तक पा लिया था.प्रताप ने भीलों की मदद से फिर फ़ौज खड़ी की और आने वाले वर्षों में मेवाड़ के काफ़ी हिस्से पर फिर से अपना शासन स्थापित कर लिया.अकबर ने भी यही ठीक समझा कि बेकार में मेवाड़ से झगड़ा मोल लेने से बेहतर है कि बंगाल और दक्कन की तरफ़ रुख किया जाए. मुग़ल बादशाह को धता बताने वाले राणा प्रताप को आने वाले समय में महाराणा की उपाधि से लोगों ने याद रखा.
कई इतिहासकारों ने महाराणा प्रताप को भगोड़ा कहा है लेकिन यह उन्हें देखने का निहायत ही संकीर्ण नजरिया है. प्रताप का उद्देश्य मरना नहीं, मेवाड़ को बचाए रखना था. इतिहासकारों ने शिवाजी के लिए भी यही कहा है. लेकिन अगर हुमायूं भगोड़ा न होता तो हिंदुस्तान का इतिहास कुछ और ही होता! कुल मिलकर बात ये है कि किसी काम के पीछे उद्देश्य महान होता है, न कि व्यक्ति का भाग जाना या मर जाना. अकबर के मेवाड़ जीतने के उद्देश्य कमतर थे पर राणा के मेवाड़ बचाने के उद्देश्य महान थे. वो अस्मिता, शान, इज़्ज़त और आज़ादी के लिए लड़ रहे थे.सोशल मिडिया से