उत्तर भारत, मध्य भारत, पूर्वोत्तर के बाद अब दक्षिण भारत में विजय रथजबर्दस्त प्रतिरोध के साथ प्रवेश कर चुका है। यह द्वार कर्नाटक ने खोला है जहां 15 मई को घोषित नतीजों में भाजपा सबसे अधिक सीट (104) लेकर सरकार बनाने का दावा कर रही है जबकि कांग्रेस (78) ने जनता दल (एस) को सरकार बनाने के लिए बिना शर्त समर्थन किया है। पूर्व प्रधानमंत्री एचडी देवगौड़ा की पार्टी जनता दल (एस) ने इस बार बसपा के साथ समझौता करके चुनाव लड़ा था लेकिन उसे 2013 की तरह जनता ने तीसरे स्थान पर ही रखा है। बसपा को भी एक विधायक मिल गया। भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह ने एग्जिट पोल को पूरी तरह ठुकराया था और कहा था कि कर्नाटक में भाजपा स्पष्ट बहुमत से सरकार बनाएगी। उनका यह आत्मविश्वास सच के करीब तक पहुंच गया। राजनीतिक समीक्षकों के अनुसार परिणाम कुछ अप्रत्याशित जरूर रहे हैं और जाति-धर्म के मुद्दे जिस तरह से उछाले गये थे, उनको जनता ने ठुकराकर अच्छा संदेश दिया है। भाजपा के नेता और विशेषकर श्री मोदी, अमित शाह और योगी ने जो मेहनत की, उसी का यह नतीजा है।
इसमें कोई संदेह नहीं कि कर्नाटक विधानसभा चुनाव में भाजपा, कांग्रेस और जनता दल(एस) तीनों ने अपना पूरा जोर लगा रखा था। भाजपा की तरफ से प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी, पार्टी अध्यक्ष अमित शाह, उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ समेत केन्द्र और राज्य स्तरीय नेता धुंआधार प्रचार कर रहे थे। हारी हुई बाजी को भी जीत में बदलने में माहिर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने कर्नाटक में जीत के साथ एक बार फिर अपनी क्षमता का परिचय दे दिया। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और पार्टी अध्यक्ष अमित शाह व योगी आदित्यनाथ की तिकड़ी के सामने कांगे्रस अध्यक्ष राहुल गांधी कमजोर तो पड़ ही रहे थे, इसी बीच उन्होंने श्री मोदी के सामने 15 मिनट के भाषण की चुनौती पेश कर दी और मैसूर के ही जाने-माने इंजीनियर विश्वेश्वरैया के नाम का उच्चारण करने में अटक गये। राहुल गांधी की इस कमजोरी को पूरे देश की जनता ने देखा और सुना था, इसलिए श्री मोदी ऐसे मामले में कब चूकने वाले थे और उन्होंने राहुल गांधी को ऐसी चुनौती दी जिसे वे पूरा नहीं कर सके। इस प्रकार कांग्रेसी सेना का सेनापति चुनाव नतीजे घोषित होने से पहले ही पराजित हो गया था।
भाजपा ने पूरे देश में भगवा लगभग फहरा दिया है। दक्षिण और पूर्वी भारत के राज्य ही बचे हैं। इनमें दक्षिण का प्रवेश द्वार कर्नाटक बना है और भाजपा ने उसे खोल दिया। भाजपा की देश भर में अब 21 राज्यों में सरकार या सरकार में भागीदारी है। श्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में 2014 में भाजपा ने जब केन्द्र में सरकार बनायी थी, उस समय केवल 8 राज्यों में उसकी सरकार थी और कांग्रेस 14 राज्यों में सत्तारूढ़ थी। मोदी के नेतृत्व में अब तक 21 राज्यों में विधानसभा के चुनाव हुए हैं और भाजपा उनमें से 14 राज्यों में सरकार बनाने में सफल रही है। भाजपा ने जिस वर्ष केन्द्र में सरकार बनायी थी, उसी वर्ष महाराष्ट्र, हरियाणा, झारखण्ड और जम्मू-कश्मीर में विधानसभा चुनाव हुए थे। तीन राज्यों में भाजपा ने अपनी सरकार बनायी और जम्मू-कश्मीर में पीडीपी के साथ साझे की सरकार बनाने में कामयाब रही। इसके बाद 2016 में असम, पश्चिम बंगाल, केरल, तमिलनाडु और पांडुचेरी में विधानसभा चुनाव हुए इनमें असम में भाजपा ने कांग्रेस से सत्ता छीन ली जबकि पश्चिम बंगाल में सुश्री ममता बनर्जी तृणमूल कांग्रेस की सरकार बनाने में सफल रहीं। इससे पूर्व 2015 में दिल्ली और बिहार में भाजपा को पराजय का सामना करना पड़ा था लेकिन बिहार में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने महागठबंधन तोड़कर भाजपा के साथ सरकार बनायी। भाजपा के लिए 2016 बहुत अच्छा नहीं रहा और तमिलनाडु में अन्नाद्रमुक की सरकार बनी तो केरल में माकपा के नेतृत्व वाले एलडीएफ ने सरकार बनायी। केन्द्र शासित पुडुचेरी में कांग्रेस को आंसू पोंछने का मौका मिल गया था। इसके बाद 2017 में भाजपा की लहर एक बार फिर दिखाई पड़ी जब उत्तर प्रदेश, उत्तराखण्ड, मणिपुर, गोवा और गुजरात व हिमाचल प्रदेश में भाजपा ने भगवा फहराया। कांग्रेस को पंजाब में सरकार बनाने का अवसर मिला। इसी वर्ष के प्रारम्भ में भाजपा ने पूर्वोत्तर भारत में अपना वर्चस्व कायम करके त्रिपुरा में माकपा का सबसे मजबूत किला ढहा दिया, नगालैण्ड और मेघालय में भी सरकार बनायी।
इसमें कोई संदेह नहीं है कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का इस समय भारत की राजनीति में कोई जवाब नहीं है। कर्नाटक के चुनावों में भी भाजपा की ओर से प्रचार की कमान उन्होंने जब से संभाली, तभी से राज्य की जनता का रुख बदल गया। यही कारण रहा कि सेन्ट्रल कर्नाटक, मुंबई से लगा मुंबई कर्नाटक और हैदराबाद की सीमा से लगे हैदराबाद कर्नाटक, पुराने मैसूरू समेत पूरे राज्य में भाजपा को अच्छी तादाद में सीटंे मिली हैं। इस दौरान पार्टी अध्यक्ष अमित शाह ने भी उनका कदम-कदम पर साथ दिया और कांग्रेस के मुख्यमंत्री पद के प्रत्याशी सिद्धारमैया ने लिंगायतों को अल्पसंख्यक दर्जा देने का प्रस्ताव पारित करके जो धार्मिक कार्ड खेला था, उसकी काट करने में उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। राज्यमें नाथ सम्प्रदाय के लोगों की बड़ी आबादी है जो गोरक्ष पीठ के प्रति बहुत सम्मान रखते हैं और योगी आदित्यनाथ इसी पीठ के पीठाधीश्वर हैं। कांग्रेस की ओर से राहुल गांधी और सिद्ध रमैया ने प्रचार तो जमकर किया लेकिन मोदी, शाह और योगी की तिकड़ी ने उन्हें पछाड़ दिया।
दूसरी तरफ कांग्रेस के सामने एंटी इनकमबेंसी फैक्टर तो था ही क्योंकि कांग्रेस ने जो वादे चुनाव घोषणा पत्र में किये थे, उनके बारे में लोग सवाल करने लगे कि अब तक क्या करते रहे। सिद्ध रमैया के नेतृत्व मंे कांग्रेस सरकार इंदिरा कैन्टीन जैसी योजनाओं के बावजूद वहां की जनता को लुभाने में कामयाब नहीं हो पायी। कांग्रेस और भाजपा दोनों ने ही अपने-अपने चुनाव घोषणा पत्रों में किसानों की सिंचाई सुविधा, महिलाओं को आरक्षण, युवाओं को शिक्षा और रोजगार जैसे लगभग एक जैसे वादे किये थे लेकिन भाजपा के वादे इसीलिए पसंद आए कि उसे सरकार बनाने का मौका नहीं मिला था तो अब मिलना चाहिए। भाजपा के लिए कर्नाटक की जीत 2019 के लिए भी काफी महत्वपूर्ण है। दक्षिण भारत और पूर्व भारत में ही भाजपा को अपना परचम फहराना है। दक्षिण भारत के लिए कर्नाटक में भाजपा का प्रदर्शन अच्छी शुरुआत कहा जा सकता है। हालंाकि भाजपा कर्नाटक में पहले भी सरकार बना चुकी है लेकिन 2014 के बाद नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में भाजपा जिस तरह से आगे बढ़ रही है, उसमें उत्तर प्रदेश के दो उपचुनावों ने एक प्रश्नचिह्न लगाया था। कर्नाटक ने उस संशय को दूर कर दिया है। (हिफी)
