*पश्चिम बंगाल तथा त्रिपुरा में प्रजातंत्र की हत्या के मुद्दे पर **24 **जुलाई **2018 **को दिल्ली में वाम दलों का राष्ट्रीय विरोध दिवस*
लखनऊ। स्वप्निल संसार। पश्चिम बंगाल तथा त्रिपुरा में प्रजातंत्र की दिन दहाड़े हत्या की जा रही है. वहां मानवाधिकार तथा राजनैतिक स्वतन्त्रता के सामने गंभीर संकट पैदा हो गया है. वैसे तो यह संकट पूरे देश में ही पैदा हो गया है, जैसा कि दलितों की विरोध कार्यवाहियों के क्रूर दमन तथा मानवाधिकार कार्यकर्ताओं के खिलाफ कठोर कानूनों के प्रयोग से स्पष्ट हो जाता है, लेकिन, पश्चिम बंगाल एवम त्रिपुरा में, जो कि देश के वामपंथी आन्दोलन के गढ़ रहे हैं, ख़ास तौर पर ये संकट अपने तीखे स्वरुप में प्रकट हुआ है. त्रिपुरा में बीजेपी-आईपीएफटी की तथा बंगाल में टीएमसी की सरकारों ने हिंसा तथा आतंक की राजनीति का खेल शुरू कर रखा है.
*त्रिपुरा *
जब से बीजेपी-आइपीएफटी की सरकार राज्य सत्ता में आयी है, तब से सीपीआइ (एम), वाम पंथ तथा जनवादी जन संगठनों को बीजेपी-आइपीएफटी द्वारा की जा रही हिंसा का निशाना बनाया जा रहा है. विधान सभा चुनावों के बाद से, सीपीआइ (एम) के चार सदस्यों की हत्या की जा चुकी है. सैकड़ों वामपंथी कार्यकर्ता, जिनमें महिलायें भी शामिल हैं, घायल हुए हैं. पार्टी तथा वामपंथी दलों के सैकड़ों कार्यालय आग के हवाले कर दिए गए हैं. हजारों वाम समर्थकों के घर दुकानों में तोड़फोड़ की गयी है. लगभग पांच सौ कामरेड बेघर हो गये हैं, जो पार्टी कार्यालयों में स्थापित कैम्पों में शरण लिए हुए हैं.
राज्य के विभिन्न हिस्सों में, पार्टी तथा वाम संगठनों द्वारा आयोजित कार्यक्रमों पर हमले किये गए हैं, जिनमें मई दिवस तथा मार्क्स की जन्मशती समारोह शामिल हैं. प्रगतिशील दैनिक ‘देशेर कथा’ के विक्रेता तथा पाठकगढ़ भी इन हमलों की गिरफ्त में आये हैं. विभिन्न जनतांत्रिक संस्थाओं के निर्वाचित प्रधान, चेयरमैन आदि को त्यागपत्र देने अथवा बीजेपी में शामिल होने के लिए बाध्य किया जा रहा है. इस मामले में, राज्य प्रशासन की सहभागिता बहुत स्पष्ट है, क्योंकि पुलिस स्टेशन तक में पार्टी नेताओं पर हमले किये जा रहे हैं.
*पश्चिम बंगाल *
बंगाल में, टीएमसी ने आतंक का राज्य स्थापित कर रखा है, तथा लेफ्ट फ्रंट के खिलाफ फासिस्ट हमले किये जा रहे हैं. जून, 2016 के बाद से, सीपीआइ (एम) के 31 पार्टी
सदस्य तथा समर्थकों की टीएमसी के गुंडों द्वारा हत्या की जा चुकी है. अभी हाल के पंचायत चुनावों से जुड़ी हिंसा में, वाम दलों के ग्यारह कार्यकर्ताओं की जानें गयी हैं. इतने बड़े स्तर पर हिंसा के चलते, स्वतंत्र एवम निष्पक्ष चुनाव असंभव ही हैं. यही कारण है कि बड़ी संख्या में ग्राम पंचायत, पंचायत समितियों तथा जिला परिषद् स्तर पर विरोधी दलों के प्रत्याशी अपना नामांकन तक नहीं दाखिल कर पाए, तथा टीएमसी के उम्मीदवार निर्विरोध विजयी घोषित कर दिए गए. सुप्रीम कोर्ट ने, एक मामले में, जिसकी सुनवाई अभी जारी है, यह टिप्पणी की है कि पश्चिम बंगाल में, संविधान के अनुसार जमीनी स्तर पर प्रजातंत्र कारगर नहीं रह गया है.
असल में, यह घटनाक्रम, जनता की आजीविका पर तथा लम्बी लड़ाइयों के बाद प्राप्त किये गए अधिकारों पर हो रहे हमलों का ही हिस्सा है. इसलिए, सभी वामपंथी दल, पश्चिम
बंगाल एवम त्रिपुरा में जनतंत्र की दिन दहाड़े हो रही हत्या की भर्त्सना करते हैं, तथा देश भर की अपनी इकाइयों का आह्वान करते हैं कि वे इस बर्बरता के खिलाफ विरोध कार्यवाहियां आयोजित करें, तथा जनतंत्र, मानवाधिकार, तथा नागरिक स्वतन्त्रता के पक्ष में जनता को लामबंद करें.
वामपंथी पार्टियां भारत की समस्त जनता का भी आह्वान करती हैं कि वह संविधान, जनता के लोकतांत्रिक अधिकारों तथा नागरिक स्वतंत्रताओं पर हो रहे फासिस्ट हमलों को
परास्त करने के लिए आगे आयें.फाइल फोटो