हथकड़ी को जोर की “ना” कहिये! 1980 में किसी दिन तिहाड़ जेल से एक कैदी प्रेम कुमार शुक्ला का टेलीग्राम सुप्रीम कोर्ट को मिला! टेलीग्राम में लिखा था……..“In spite of Court order and directions of your Lordship in Sunil Batra v. Delhi handcuffs are forced on me and others. Admit writ of Habeas Corpus” इस टेलीग्राम की तारीख से पहले हिंदुस्तानी अंडरट्रायल को पुलिस थाने से कोर्ट, कोर्ट से जेल और जेल से कोर्ट ले जाते समय रूटीन में हथकड़ी लगाती थी!इस चार लाइन के मैसेज ने सुप्रीम कोर्ट के जज श्री वी.आर. कृष्णा अय्यर को अंडरट्रायल बंदियोंं के हालात समझने को प्रेरित किया! सुप्रीम कोर्ट ने इस टेलीग्राम को सुओमोटो रिट पिटीशन के रूप में दर्ज किया और बंदियों को एक्सेप्शनल सिचुएशन को छोड़ कर सामान्यतः हथकड़ी नहीं लगाये जाने के कठोर निर्देश सहित बंदियों के अन्य अधिकारों पर जस्टिस कृष्णा अय्यर ने 29/12/1980 को एक लैंड मार्क जजमेंट दिया जिसकी नजीरें आज भी दी जाती है!
1980 के बाद पुलिस एट्रोसिटी, जेल प्रताड़ना, फेक एनकाउंटर जैसे ह्यूमन राइट मुद्दों पर सुप्रीम कोर्ट और देश के हाई कोर्टस ने कई केसेस में पुलिस और जेल अथारिटी के लिए कड़े निर्देश जारी किए है और दोषी पुलिस वालों को सजा भी दी गयी है मगर आज भी आम आदमी पुलिस और सिविल प्रशासन से प्रताड़ित होता है मगर कुछ बोल नहीं पाता है, कुछ कर नहीं पाता है, वो शायद इसलिए कि उसे खुद के अधिकारों की जानकारी नहीं है या “कौन लड़े” सोच कर अपने ऊपर बीती भूलने की कोशिश में लग जाता है। और जब मामला पुलिस के खिलाफ होता है तो उसके परिवारवाले, शुभचिंतक यहां तक की ज्यादातर वकील भी “पुलिस से पंगा नहीं लेने” की सलाह देने लगते है!
आप पुलिस थाने, सिविल कोर्ट और डीएम या एसडीएम कोर्ट में मुल्जिमों को पुलिस के द्वारा हथकड़ी डालकर लाते ले जाते देखते होंगे। आप अक्सर देखते होंगे कि छोटे छोटे अपराध में गिरफ्तार या प्रतिबंधात्मक कार्यवाही (जैसे 151 सीआरपीसी में) के अधीन कस्टडी में लिए गए व्यक्तियों को भी पुलिस हथकड़ी डाल कर थाने से कोर्ट ले जाती है और कोर्ट से जेल और जेल से कोर्ट ले जाती और लाती है! आप समझते है कि गिरफ्तार है तो हथकड़ी तो लगेगी ही और गिरफ्तार व्यक्ति का वकील भी कोई एतराज नहीं करता है, ऐसे में आप या आपका कोई रिश्तेदार या दोस्त कभी गिरफ्तार होता है तो आप पुलिस वाले को “कुछ दे दुआ कर” खुद को या अपने आदमी को हथकड़ी पहनने की बेइज्जती से बचने या बचाने की कोशिश करने लगते है! मगर क्या आप जानते है कि पुलिस या जेल अधिकारी किसी एक्सेप्शनल सिचुयेशन को छोड़ कर आपको या किसी भी आरोपी को कोर्ट से परमिशन हासिल किए बिना हथकड़ी नहीं लगा सकती है और वो अगर ऐसा करती है तो उनके खिलाफ आप काँटेम्पट लाफ़ कोर्ट की प्रोसिडिंग चला सकते है, उनके खिलाफ आपराधिक मुकदमा कर सकते है! अगर नहीं पता तो आज जान लीजिए!
1995 में Citizen for Democracy Vs State of Assam & others मामले में एक बार फिर अंडरट्रायल प्रिजनर्स को पुलिस द्वारा रूटीन में हथकड़ी लगाये जाने का मामला कानून के एक स्टूडेंट को हथकड़ी लगाये जाने की वजह से कानूनी हलकों में चर्चा में आया। तब जस्टिस कुलदीप सिंह ने सुप्रीम कोर्ट की बेंच को प्रिसाईड करते हुए 1 मई 1995 को दिए फैसले में देश भर के पुलिस और जेल अधिकारियों के लिए बंदियों को हथकड़ी लगाये जाने के सम्बंध में कानून बनाते हुए कड़े निर्देश जारी किए जो ये है….
# हम डिक्लेयर करते है, निर्देश देते है और नियम बनाते है कि हथकड़ी या अन्य कोई बेड़ियां किसी भी बन्दी पर थोपा नहीं जायेगा, चाहे वो देश के किसी भी जेल में बंद अंडरट्रायल हो या सजायाफ्ता हो, चाहे उसे एक जेल से दूसरी जेल ले जाया जा रहा हो, चाहे जेल से कोर्ट या कोर्ट से जेल ले जाया जा रहा हो! पुलिस या जेल अधिकारियों को ये अधिकार नहीं होगा कि वो खुद से (on their own) देश के किसी भी जेल बन्दी को एक जेल से दूसरी जेल या जेल से कोर्ट और कोर्ट से जेल ले जाते समय उसको हथकड़ी लगाने का आदेश/निर्देश जारी करे!
# जहां पुलिस या जेल अधिकारी को पुख्ता आधार पर ये अनुमान हो कि कोई खास बन्दी/मुलजिम जेल से भाग सकता है, कस्टडी से फरार हो सकता है तो उस बन्दी/मुलजिम को सम्बंधित मजिस्ट्रेट के सामने पेश किया जाएगा और वो पुलिस या जेल अधिकारी मजिस्ट्रेट से उसको हथकड़ी लगाए की अनुमति दिए जाने की प्रार्थना करेगा! रेयर केसेस जिनमें बन्दी/मुलजिम के हिंसक होने, कस्टडी ब्रेक करने या कस्टडी से भागने के पुख्ता आधार हो को छोड़कर अन्य केसेस में मजिस्ट्रेट पुलिस या जेल अधिकारी के अनुमान के आधारों का परीक्षण करने के बाद हथकड़ी लगाए जाने की परमिशन दे सकता है!
# ऐसे सभी केसेस में जिसमें पुलिस द्वारा मुल्जिम को गिरफ्तार किया गया है और मजिस्ट्रेट के सामने पेश करने पर मजिस्ट्रेट द्वारा उसको पुलिस या ज्यूडिशियल रिमांड ने भेजा गया है, मुल्जिम को हथकड़ी तब तक नहीं लगाई जाएगी जब तक रिमांड लेते समय मजिस्ट्रेट से ऐसा करने का स्पेशल आर्डर प्राप्त नहीं किया गया है!
# जब किसी मजिस्ट्रेट द्वारा जारी वारंट की तामीली में पुलिस किसी मुलजिम को गिरफ्तार करती है तो उस मुलजिम को हथकड़ी केवल उसी सूरत में लगाई जा सकती है जब तक पुलिस ने वारंट के साथ मजिस्ट्रेट से उस मुलजिम को हथकड़ी लगाए जाने का भी आदेश प्राप्त किया हो, अन्यथा मुलजिम को हथकड़ी नहीं लगाई जायेगी! .
# जहां पुलिस बिना वारंट के किसी मुलजिम को गिरफ्तार करती है और ऊपर दिए निर्देशों के हवाले से पुलिस ऑफिसर को मुलजिम को हथकड़ी लगाया जाना आवश्यक लगता है तब वो पुलिस अधिकारी मुलजिम को गिरफ्तारी की जगह से थाने और थाने से मजिस्ट्रेट के सामने पेश करने तक ही हथकड़ी लगा सकता है, उसके बाद जैसा कि ऊपर बताया गया है, मजिस्ट्रेट से आदेश प्राप्त होने पर ही हथकड़ी लगाई जा सकती है!
# हम (सुप्रीम कोर्ट) सभी रैंक के पुलिस और जेल अथॉरिटीज को निर्देशित करते है कि ऊपर दिए निर्देशों का कड़ाई से पालन करें! ऊपर दिए गए किसी भी निर्देश का देश के किसी भी पुलिस या जेल अधिकारी द्वारा उल्लंघन किया जाता है तो वो समरिली काँटेम्पट ऑफ कोर्ट में सजा का हकदार होगा और अतिरिक्त रूप से आपराधिक कानून के अधीन भी दण्ड भुगतेगा। महेंद्र दुबे -एडवोकेट