(कुपोषण सप्ताह पर )नरेश दीक्षित संपादक समर विचार- भारत 21वीं शदी में प्रवेश कर चुका है लेकिन भारत में बच्चों के कुपोषण पर कोई भी सुधार नही हुआ है जहां विश्व के 75 प्रतिशत लोगो के पास दो वक्त का भोजन और तन ढकने के लिए कपड़ा नही है । वहीं दुनिया में भुखमरी बढ़ रही है और भूखे लोगों में करीब 23 फीसदी की आबादी भारत में भी रहती है । एक आकड़े के अनुसार 19 करोड़ कुपोषित भारत में रहते है पांच साल से कम उम्र के 38 फीसदी बच्चे कुपोषण के अभाव में जीने को मजबूर है । भारतीय महिलाओं की भी हालत अच्छी नही है रिपोर्ट के मुताबिक 51 फीसदी महिलाएँ खून की कमी से पीड़ित है । जबकि संविधान के अनुच्छेद 47 में कहा गया है कि राज्य का यह ‘कर्तव्य है कि वह लोगो के पोषण स्तर और जीवन स्तर को बढाने और सार्वजनिक स्वास्थ्य को सुधारने के लिए निरंतर प्रयास करे ।’
अंतरराष्ट्रीय खाद्य नीति अनुसंधान संस्थान द्वारा हाल ही में जारी ग्लोबल रिपोर्ट के अनुसार 119 देशों के इंडेक्स में भारत 100वें स्थान पर है और वह उत्तर कोरिया और बांग्लादेश जैसे देशो से भी पीछे है ।
विश्व बैंक का अनुमान है कि भारत कुपोषण से ग्रस्त बच्चो की संख्या के मामले में दुनिया के सबसे बड़े देशो में से एक है । भारत में कम वजन वाले बच्चों की संख्या बहुत अधिक है यहाँ तक कि यह संख्या उप सहरा अफ्रीका की तुलना में लगभग दोगुनी है । विश्व बैंक की एक अन्य रिपोर्ट में बताया गया है कि प्रत्येक वर्ष भारत अपने सकल घरेलू उत्पाद में से लगभग 12 अरब डॉलर विटामिन और खनिजों की कमी को पूरा करने के लिए खच॔ करता है ।
वर्तमान में भारत के लगभग 50 प्रतिशत गाँव में कुपोषण एक व्यापक समस्या है । भारत में प्रति वर्ष जितनी मौते होती है उसमें 5 प्रतिशत मौतें सिफ॔ कुपोषण से होती है । भारत में महिला एवं बाल विकास मंत्रालय द्वारा कुपोषण मिटाने के सतत् प्रयत्नशील है और यह योजना वष॔ 1975 से चलाई जा रही इसका उद्देश्य स्कूल जाने से पहले बच्चों के लिए एकीकृत रूप से सेवाएँ उपलब्ध कराना है ताकि ग्रामीण, आदिवासी और झुग्गी वाले क्षेत्रों में बच्चों की उचित वृद्धि और विकास किया जा सके ।
1975 से लेकर 2018 तक यानि 43 वर्षो में भारत से कुपोषण मुक्त के प्रचार प्रसार पर करोड़ो रूपया बहाना गया है लेकिन कुपोषण का बदनुमा दाग भारत से मिट नही पाया है । इसका सबसे बड़ा कारण इच्छा शक्ति की कमी और भ्रष्टाचार है ? चूंकि यह काय॔ जिन संस्थाओ को सौंपा गया है वह गांव से लेकर जिले तक अकंठ भ्रष्टाचार में डूबी है । कुपोषण के बचाव के लिए दवाई से लेकर खाने पीने की वस्तुओ को मुफ्त में बांटने के स्थान पर बेच दिया जाता है । चूँकि सरकार का कोई निगरानी तंत्र अभी तक ऐसा नही बन पाया है जो ऐसे भ्रष्टाचारों पर अंकुश लगा सके । गांव में बाल विकास एवं पुष्टाहार के केंद्र तो काय॔ रत है लेकिन बच्चों के कुपोषण की लिए इन केन्द्रो पर क्या होता है गांव वालों को नही पता । केन्द्र एवं प्रदेश सरकारें जब तक गाँव, नगर, शहरो में स्वतंत्र एवं निष्पक्ष ऐसी समितियां नही बनाएगी जो चुने हुए जनप्रतिनिधि से अलग हो ।
वह संचालित योजनाओं की समीक्षा कर सरकार को अवगत कराये । तभी भ्रष्टाचार पर अंकुश लग सकता है अन्यथा सरकार की अन्य योजनाओ की भांति कुपोषण हटाने की योजना भी भारत में हवाई साबित होगी ?