हमारे सामाजिक पर्व-त्योहारों में विजय दशमी अर्थात् दशहरा महत्वपूर्ण पर्व है। हमारे सभी पर्व-त्योहार समाज के लिए शिक्षा देते हैं। रक्षाबंधन पर जहां हम एक-दूसरे की मदद करने, आपसी सद्भाव बढ़ाने की प्रेरणा लेते हैं, उसी प्रकार विजय दशमी पर अहंकार और अत्याचार से दूर रहने की शिक्षा मिलती है। महापराक्रमी रावण के वध के लिए भगवान ने राम के रूप में मनुष्य का अवतार लिया और वानर-भालुओं की सेना एकत्र करके रावण का संहार किया। यह अत्याचार अभी पूरी तरह समाप्त नहीं हुआ है और रावण विभिन्न रूपों में समाज को ़त्रस्त कर रहा है। भ्रष्टाचार, आतंकवाद, कन्या भ्रूण हत्या, दहेज, जाति प्रथा जैसे इसके अनेक सिर बन गये हैंं। दशहरा पर्व को हम हर साल रावण और कुंभकर्ण के पुतले जलाकर बुराई पर सच्चाई की जीत की खुशी मनाते हैं लेकिन दशहरा पर्व में जो शिक्षाएं निहित हैं, उन पर गौर नहीं करते। इस बार दशहरा मनाते हुए हम यह संकल्प लें कि देश के अंदर जो भी बुराइयां हैं, उनको भी रावण के पुतले की तरह जला देंगे।
नवरात्र में हिन्दू लोग नौ दिन तक फलाहार कर व्रत रखते हैं और मां की पूजा-आराधना करते हैं। श्री रामचन्द्र जी ने भी राजा रावण को मारने से पहले ‘मां दुर्गा के ‘काली स्वरूप की आराधना की थी जिसके फलस्वरूप अंत में युद्ध में श्री रामचन्द्र जी को विजय प्राप्त हुई थी। ऐसा प्रतीत होता है कि उसी समय से नवरात्र पूजन का चलन आरम्भ हो गया था।
दशहरे के सम्बन्ध में पुरातन की एक कथा प्रसिद्ध है जो इस प्रकार है- रावण लंका का राजा था। वह बहुत विद्वान ज्ञानी और पंडित था। उसके पिता का नाम विश्रवा मुनि था। विश्रवा मुनि की तीन पत्नियां थीं तथा वह तीनों ही राक्षस कुल की थीं। इन्हीं से विश्रवा मुनि के तीन बेटे हुए जिनका नाम क्रमश: रावण, विभीषण और कुंभकर्ण था माताओं के राक्षसी होने के कारण विश्रवा मुनि के सभी बेटों के संस्कार भी राक्षसी थे। उस समय लंका का राजा कुबेर था। एक बार राजा कुबेर विश्रवा मुनि से मिलने उनके आश्रम आये, रावण कुबेर के ठाठ-बाट देखकर अचंभित रह गया तभी उसने प्रण किया कि वह लंका को जीतकर उस पर अपना साम्राज्य स्थापित करेगा। तदोपरान्त रावण, विभीषण और कुम्भकर्ण तीनों भाइयों ने हजार वर्ष तक ब्रह्मा जी की कठिन उपासना की तथा अनेक हवनादि किये। रावण को वरदान प्राप्त था कि यदि उसका एक सिर कट जायेगा तो दूसरा उत्पन्न हो जायेगा इसलिए रावण ने हवन, यज्ञ आदि में अपने दस सिर बलिदान किये जिससे ब्रह्मा जी प्रसन्न होकर प्रकट हुए और उन्होंने तीनों भाइयों से वरदान मांगने को कहा। रावण ने सर्वप्रथम अपने बलिदान दसों सिरों को वापस मांगा और दूसरे वरदान स्वरूप कहा कि हे ब्रह्मा गंधर्व, देवता यक्ष या राक्षस किसी के हाथ से मेरी मृत्यु न हो। ब्रह्मा जी ने ये दोनों वरदान उसे दे दिये, विभीषण ने वरदान स्वरूप हर परिस्थिति में धर्म के पालन का वर मांगा तथा कुंभकर्ण ने मांगा मेरे अंदर तमोगुण भरा रहे और मैं छ: महीने तक लगातार सोता रहूं। ब्रह्मा तीनों भाइयों को वर देकर अंतर्धान हो गये। इसके उपरान्त रावण ने लंका के राजा कुबेर पर चढ़ाई करके लंका पर साम्राज्य स्थापित कर लिया तत्पश्चात उसने अपने आस-पास के राज्यों पर भी विजय प्राप्त कर ली। रावण एक शक्तिशाली विद्वान राजनीतिज्ञ भी था। परन्तु अपने राक्षसी गुणों के कारण वह किसी को सुखी नहीं देख पाता था। वह न तो बड़ों का आदर करता था न बराबर वालों को सम्मान देता था। वह साधु-महात्माओं के पूजा-पाठ को भी भंग करवा देता था निर्दोष व्यक्तियों को प्रताडि़त करता था। इसलिए सभी लोग रावण से दुखी और परेशान रहते थे। श्री रामचन्द्र जी का जन्म प्रमुख रूप से रावण को मारने के लिये ही हुआ था क्योंकि ब्रह्मा के वर के अनुसार रावण की मृत्यु किसी मनुष्य के हाथों ही सम्भव थी।
श्री रामचन्द्र जी का जन्म, पिता द्वारा उनको दिया गया वनवास, सीता माता का रावण द्वारा अपहरण तथा सीता को रावण के कैद से मुक्त कराने के लिये श्री राम द्वारा लंका पर चढ़ाई सब विधि के विधान स्वरूप निश्चित रूप से घटने वाली घटनाएं थीं जिनका उद्देश्य रावण व उसके साम्राज्य का अंत कर पृथ्वी पर सुख और शांति व्याप्त करना था। श्री रामचन्द्र जी ने रावण को उसके कुटुम्ब सहित युद्ध में मारकर विजय प्राप्त की थी इसलिए दशहरे का नाम विजयादशमी पड़ा।
दशहरे का त्यौहार दस दिन पहले आरम्भ हो जाता है। क्वार महीने में अमावस्या के बाद की प्रथमा से स्थान-स्थान पर रामलीलाएं होनी शुरू हो जाती हैं जो रामजन्म से लेकर, वनवास, राम-रावण युद्ध और राम के राज्याभिषेक तक तथा लवकुश के जन्म और अश्वमेघ यज्ञ तथा सीता मां के धरती में समाने पर पूर्ण होती हैं। इसके दसवें दिन चूंकि श्रीराम ने रावण का वध किया था इसलिए दशहरा मनाया जाता है, शरदपूर्णिमा के दिन भरत-मिलाप और दीवाली के दिन राम को राजगद्दी प्राप्त होने के उपलक्ष्य में त्योहार मनाये जाते हैं।
दशहरे के दिन शाम को रावण, मेघनाद और कुम्भकर्ण के विशालकाय पुतले बनाये जाते हैं जिन्हें रामलीला के अंत में रामचन्द्र बने कलाकार द्वारा बाण मारकर जलाया जाता है। इस प्रकार काल्पनिक रूप से हर वर्ष रावण का वध कर बुराई पर अच्छाई की विजय को स्मरण कर यह त्योहार मनाया जाता है। दशहरे में स्थान-स्थान पर अनेकों भव्य रामलीलाओं, मेलों एवं प्रदर्शनियों का आयोजन किया जाता है। इस दिन क्षत्रिय लोग अपने हथियारों की पूजा भी करते हैं यह पूजा विजय प्राप्त करने के उपरान्त श्री रामचन्द्र जी ने भी की थी। जिन हथियारों के कारण विजय प्राप्त हुई थी उनका उन्होंने आभार माना और पूजा की। वही चलन अभी तक चला आ रहा है। राज-परिवारों में दशहरे की पूजा का बड़ा महत्व है और वे लोग आज भी इसे बड़े गाजे-बाजे और जोशोखरोश से मनाते हैं।
विभिन्न प्रदेशों में दशहरे का त्योहार वहां के पारम्परिक रीति-रिवाजों तथा मान्यताओं के आधार पर मनाया जाता है परन्तु मूलरूप सभी का लगभग एक सा होता है।
बंगाल में दशहरे से पहले दुर्गा देवी की नवरात्र अत्यन्त भव्य रूप से मनाई जाती है यह यहां का सर्वप्रमुख त्योहार होता है कुल्लू और मैसूर का दशहरा अत्यन्त मशहूर है। कुल्लू घाटी में पहाड़ी लोग सामूहिक रूप से दशहरा मनाते हैं। वे रंग-बिरंगे कपड़े पहनकर खूब नाचते-गाते हैं। देवताओं का जुलूस निकालते हैं। यहां पर बकरे के बलिदान का भी चलन है।
मैसूर का दशहरा बहुत भव्य और आकर्षक होता है। वहां और सब रिवाजों को पूर्ण करने के साथ-साथ सुन्दर रूप से चित्रकारी और सजे-धजे हाथियों का जुलूस निकाला जाता है, इसमें सजे घोड़े तथा सेना के पैदल सिपाही भी होते है। यहां का दशहरा देखने के लिये भारी संख्या में पर्यटक भी आते हैं।
दशहरे के अवसर पर सबसे सुन्दर और भव्यात्मक रूप से रामलीला रामगढ़ में मनाई जाती है यहां पर दस किलोमीटर के दायरे में रामलीला का आयोजन होता है। रामचन्द्र जी के समय के सभी स्थान काल्पनिक रूप से उसी प्रकार बनाये जाते हैं जैसा रामायण में वर्णित है। दर्शक गण जहां-जहां रामलीला के दृश्य होते हैं वहीं जाकर देखते हैं यह रामलीला 10 दिन में पूरी होता है। इस प्रकार विभिन्न प्रकार से सम्पूर्ण भारतवर्ष में यह त्योहार पारम्परिक रीति-रिवाजों से सौहार्दपूर्वक मनाया जाता है। (हिफी)