के. कामराज / कुमारास्वामी कामराज प्रसिद्ध राजनीतिज्ञ थे। उनका जन्म 15 जुलाई 1903 को विरुधुनगर, मदुरै, तमिलनाडु में हुआ था। भारत के 2 प्रधानमंत्री, लालबहादुर शास्त्री और इंदिरा गांधी के चुनावों में उनका महत्वपूर्ण योगदान था।
तमिलनाडु के मुख्यमंत्री और ‘कांग्रेस पार्टी’ के अध्यक्ष बने। तमिलनाडु की राजनीति में बिल्कुल निचले स्तर से अपना राजनीतिक जीवन शुरू कर देश के दो प्रधानमंत्री चुनने में महत्वूपर्ण भूमिका निभाने के कारण ‘किंगमेकर’ कहे जाने वाले के कामराज साठ के दशक में ‘कांग्रेस संगठन’ में सुधार के लिए कामराज योजना प्रस्तुत करने के कारण विख्यात हुए।
उनका मूल नाम कामाक्षी कुमारस्वामी नादेर था लेकिन बाद में वह के कामराज के नाम से ही जाने गये। कामराज अपनी पढ़ाई पूरी नहीं कर पाए लेकिन जार्ज जोसेफ के नेतृत्व वाले ‘वैकम’ सत्याग्रह ने उन्हें आकर्षित किया। महज 16 वर्ष की उम्र में वे कांग्रेस में शामिल हो गए। आजादी से पूर्व के अपने राजनीतिक जीवन में कामराज कई बार गिरतार हुए। जेल में रहते हुए ही उन्हें म्युनिसिपल काउंसिल का अध्यक्ष चुना गया। लेकिन रिहाई के 9 महीने बाद उन्होंने इस्तीफा दे दिया और कहा- किसी को तब तक कोई पद स्वीकार नहीं करना चाहिए जब तक वह उसके साथ पूरा न्याय न कर सके। कामराज के राजनीतिक गुरु सत्यमूर्ति थे। उन्होंने कामराज में निष्ठावान और कुशल संगठक देखा। दो अक्टूबर 1975 को कामराज का निधन हुआ। उन्हें 1976 में मरणोपरांत ‘भारत रत्न‘ से नवाजा गया।
कामराज ने साठ के दशक की शुरुआत में महसूस किया कि कांग्रेस की पकड़ कमजोर होती जा रही है। उन्होंने सुझाया कि पार्टी के बड़े नेता सरकार में अपने पदों से इस्तीफा दे दें और अपनी ऊर्जा कांग्रेस में नई जान फूंकने के लिए लगाएं। उनकी इस योजना के तहत उन्होंने खुद भी इस्तीफा दिया और लाल बहादुर शास्त्री, जगजीवन राम, मोरारजी देसाई तथा एसके पाटिल ने भी सरकारी पद त्याग दिए। यही योजना कामराज प्लान के नाम से विख्यात हुई। कहा जाता है कि कामराज प्लान की बदौलत वह केंद्र की राजनीति में इतने मजबूत हो गए कि नेहरू के निधन के बाद शास्त्री और इंदिरा गांधी को प्रधानमंत्री बनवाने में उनकी भूमिका किंगमेकर की रही। वह तीन बार कांग्रेस अध्यक्ष भी रहे।
उस योजना के अंतर्गत करीब आधे दर्जन केंद्रीय मंत्री और करीब इतने ही मुख्यमंत्रियों ने इस्तीफा दिया था। उस योजना का उद्देश्य था, बतौर पार्टी कांग्रेस को मजबूत करना। पर वास्तव में उसने नेहरू को अपनी नई टीम बनाने के लिए स्वतंत्र कर दिया था, जिसकी छवि 1962 के चीनी युद्ध के कारण धूमिल हुई थी।
दक्षिण भारत की राजनीति में कामराज ऐसे नेता भी रहे जिन्हें शिक्षा के क्षेत्र में उनके महत्वपूर्ण योगदान के लिए जाना जाता है। आजादी मिलने के बाद 13 अप्रैल 1954 को कामराज ने अनिच्छा में तमिलनाडु का मुख्यमंत्री पद स्वीकार किया लेकिन प्रदेश को ऐसा नेता मिल गया जो उनके लिए कई क्रांतिकारी कदम उठाने वाला था। कामराज लगातार तीन बार तमिलनाडु के मुख्यमंत्री रहे। उन्होंने प्रदेश की साक्षरता दर, जो कभी सात फीसद हुआ करती थी, को बढ़ाकर 37 फीसद तक पहुंचा दिया।
कामराज ने आजादी के बाद तमिलनाडु में जन्मी पीढ़ी के लिए बुनियादी संरचना पुख्ता की थी। कामराज ने शिक्षा क्षेत्र के लिए कई अहम फैसले किए। मसलन उन्होंने यह व्यवस्था की कि कोई भी गांव बिना प्राथमिक स्कूल के न रहे। उन्होंने निरक्षरता हटाने का प्रण किया और कक्षा 11वीं तक निःशुल्क तथा अनिवार्य शिक्षा लागू कर दी। वह स्कूलों में गरीब बच्चों को मध्याह्न भोजन देने की योजना लेकर आए। उन्हीं के कार्यकाल के बाद से तमिलनाडु में बच्चे तमिल में शिक्षा हासिल कर सके।एजेंसी।