लखनऊ. जाने-माने इतिहासकार, लेखक और संगीतकार पद्मश्री डॉ योगेश प्रवीण 82 साल की उम्र में उस लखनऊ को अलविदा कह गए, जिसके लिए वे कहते थे कि यहां की गलियों में फरिश्तों के पते मिलते हैं और इसके आंचल में मोहब्बत के फूल खिलते हैं. सोमवार को बुखार के चलते उनकी तबीयत बिगड़ी और अस्पताल ले जाते वक्त रास्ते में ही उनका निधन हो गया. ‘इनसाइक्लोपीडिया ऑफ़ लखनऊ’ के नाम से विख्यात योगेश प्रवीण के निधन की सूचना से साहित्य जगत में शोक की लहर है. मंगलवार को योगेश प्रवीण का भैंसाकुंड स्थित बैकुंठ धाम पर अंतिम संस्कार किया जाएगा.
इतिहासकार डॉ योगेश प्रवीण ने लखनऊ को विश्व पटल पर एक अलग पहचान दिलाई. उनकी पुस्तक लखनऊनामा ने दुनिया को लखनऊ की कला और संस्कृति से रूबरू कराया. वे लखनऊ को लिखते नहीं थे, बल्कि लखनऊ को जीते थे. उन्हें पद्मश्री के अलावा यश भारती, यूपी रत्न अवार्ड, नेशनल टीचर अवार्ड सहित कई सम्मान मिल चुके थे.
लखनऊ की धरोहरों से ख़ास लगाव रखने वाले योगेश प्रवीण ने ही उमराव जान की कब्र खोजी थी, जो तालकटोरा में स्थित है. ऐसा करने वाले वे पहले इतिहासकार बने थे. दरअसल योगेश प्रवीण बॉलीवुड फिल्मों के लिए गाने लिखने से लेकर शूटिंग की लोकेशन तक तय करते थे. इसी क्रम में मुजफ्फर अली निर्देशित उमराव जान बनने से पहले उन्होंने उमराव जान की कब्र खोज निकाली थी. जिसके बाद फिल्म की शूटिंग राजधानी में हुई थी.