पुण्य तिथि पर विशेष एवेरस्ट के शिखर पर चढने वाले प्रथम पुरुष और पहले भारतीय नागरिक तेनजिंग नोर्गे शेरपा 29 मई, 1914 को शेरपा परिवार में पैदा हुए. नोर्गे को नोर्के भी कहते हैं, इनका वास्तविक नाम था न्यांगल वांगरी जिसका अभिप्राय होता है धर्म के अनुयायी । वे तेनज़िंग खुमजुंग भूटिया भी कहलाते थे.उनके पिता घांग ला मिंगमा याक पालने वाले थे। उनकी माँ का नाम डोक्यो किन्जम था। उनकी माँ उनके पर्वतारोहण तक जीवित थीं। अपने माता-पिता के 13 बच्चों में वह 11वीं संतान थे, जिनमें से अधिकांश की मृत्यु हो गई थी।तेनज़िंग ने तीन बार विवाह किया था। पहली पत्नी दावा फुटी की युवावस्था में 1944 में मृत्यु हो गई। अन्य पत्नियों के नाम आंग लाहमू तथा डक्कू थे। उनके बच्चों के नाम पेम, नीमा, जामलिंग व नोर्बू थे। तेनज़िंग बौद्ध धर्म के अनुयायी थे और 1933 में वे भारतीय नागरिक बन गये थे। 1959 में उन्हें ‘पद्मभूषण’ से अलंकृत किया गया।भारत के अतिरिक्त इंग्लैंड एवं नेपाल की सरकार ने भी उन्हें सम्मानित(सुप्रदीप्त मान्यवर नेपाल तारा)किया था।उन्होंने एडमंड हिलेरी और ब्रिटेन के जॉन हंट के साथ महारानी एलिज़ाबेथ की ताजपोशी की पूर्व संध्या पर दुनिया की सबसे ऊंची 29,028 फ़ीट पर्वत चोटी एवरेस्ट पर 29 मई 1953 को सबसे पहले क़दम रखे थे.बाद में महारानी ने एडमंड हिलेरी और जॉन हंट को तो नाइटहुड की उपाधि से सम्मानित किया लेकिन शेरपा तेनज़िंग को सिर्फ़ एक मेडल(जार्ज मैडल) ही मिला.एडमंड हिलेरी की आत्मकथा में ये उल्लेख होने के बाद कि एवरेस्ट पर पहुचंने वाले वे पहले व्यक्ति थे ना की उनके गाईड शेरपा तेनज़िंग, दोनों परिवारों के बीच कुछ कटुता पैदा हो गयी थी.ये आत्मकथा 1986 में शेरपा तेनज़िंग का निधन होने के बाद प्रकाशित हुई थी.बचपन मे ही तेन्जिंग एवरेस्ट के दक्षिणी क्षेत्र में स्थित अपने गाँव, जहां शेरपाओं (पर्वतारोहण में निपुण नेपाली लोग, आमतौर पर कुली) का निवास था, से भागकर भारत के पश्चिम बंगाल में दार्जिलिंग में बस गए। 1935 में वे एक कुली के रूप में सर एरिक शिपटन के प्रारम्भिक एवरेस्ट सर्वेक्षण अभियान में शामिल हुए। अगले कुछ वर्षों में उन्होने अन्य किसी भी पर्वतारोही के मुक़ाबले एवरेस्ट के सर्वाधिक अभियानों में हिस्सा लिया। द्वितीय विश्व युद्ध के बाद वह कुलियों के संयोजक अथवा सरदार बन गए। और इस हैसियत से वह कई अभियानों पर साथ गए। 1952 में स्वीस पर्वतारोहियों ने दक्षिणी मार्ग से एवरेस्ट पर चढ़ने के दो प्रयास किए और दोनों अभियानों में तेन्जिंग सरदार के रूप में उनके साथ थे। 1954 में ‘हिमालयन माउन्टेनियरिंग इंस्टिट्यूट की दार्जलिंग (प. बंगाल) में स्थापना की गई और तेनज़िंग नोर्गे को उसमें निदेशक बनाया गया। उनका निक नेम ‘टाइगर ऑफ स्नोज’ रखा गया था। 1978 में उन्होंने ‘तेनज़िंग नोर्गे एडवेन्चर्स’ नाम की कम्पनी बनाई, जो हिमालय में ट्रेकिंग कराती थी।एक स्विस कंपनी ने उनके नाम से शेरपा तेनसिंग लोशन और लिप क्रीम बेचा। न्यूज़ीलैंड की एक कार का नाम शेरपा रखा गया न्यूज़ीलैंड की एक कार का नाम शेरपा रखा गया। सन् 2008 में नेपाल के लुकला एयरपोर्ट का नाम बदल कर तेनज़िंग-हिलेरी एयरपोर्ट कर दिया गया।उनके पुत्र जैमलिंग तेनज़िंग नोर्गे 1996 में एवरेस्ट विजय प्राप्त कर चुके हैं।
तेनज़िंग नोर्गे का 9 मई, 1986 को दार्जिलिंग में निधन हो गया।