डॉ अली देश के पहले ऐसे पक्षी विज्ञानी थे जिन्होंने सम्पूर्ण भारत में व्यवस्थित रूप से पक्षियों का सर्वेक्षण किया और पक्षियों पर ढेर सारे लेख और किताबें लिखीं। उनके द्वारा लिखी पुस्तकों ने भारत में पक्षी-विज्ञान के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। उनके कार्यों के मद्देनजर उन्हें “भारत का बर्डमैन” के रूप में भी जाना जाता है। उनके कार्यों और योगदान के लिए भारत सरकार ने उन्हें सन 1958 में पद्म भषण और 1976 में देश के दूसरे सर्वोच्च नागरिक सम्मान पद्म विभूषण से सम्मानित किया। 1947 के बाद वे ‘बॉम्बे नेचुरल हिस्ट्री सोसाइटी’ के सबसे प्रधान व्यक्ति बन गए और ‘भरतपुर पक्षी अभयारण्य’ (केओलदेव् राष्ट्रिय उद्यान) के गठन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उन्होंने ‘साइलेंट वैली नेशनल पार्क’ को बर्बादी से बचाने में भी महत्वपूर्ण योगदान दिया।
सलीम अली का जन्म बॉम्बे के सुलेमानी बोहरा मुस्लिम परिवार में 12 नवम्बर 1896 में हुआ। वे अपने माता-पिता के सबसे छोटे और नौंवे बच्चे थे। जब वे एक साल के थे तब उनके पिता मोइज़ुद्दीन चल बसे और जब वे तीन साल के हुए तब उनकी माता ज़ीनत-उन-निस्सा की भी मृत्यु हो गई। सलीम और उनके भाई-बहनों की देख-रेख उनके मामा अमिरुद्दीन तैयाबजी और चाची हमिदा द्वारा मुंबई की खेतवाड़ी इलाके में हुआ।
बॉम्बे नेचुरल हिस्ट्री सोसाइटी के सचिव डबल्यू.एस. मिलार्ड ने सलीम के अन्दर पक्षियों के प्रति जिज्ञासा बढ़ाई और बालक सलीम को पक्षियों के अध्ययन के लिए उत्साहित किया जिसके स्वरुप सलीम ने गंभीर अध्ययन करना शुरू किया। मिलार्ड ने सोसायटी में संग्रहीत सभी पक्षियों को सलीम को दिखाना प्रारंभ किया और पक्षियों के संग्रहण के लिए प्रोत्साहित भी किया। उन्होंने सलीम को कुछ किताबें भी दी जिसमें ‘कॉमन बर्ड्स ऑफ मुंबई’ भी शामिल थी। मिल्लार्ड ने सलीम को पक्षियों के छाल निकालने और संरक्षण में प्रशिक्षित करने की पेशकश भी की। उन्होंने ने ही युवा सलीम की मुलाकात नोर्मन बॉयड किनियर से करवाई, जो कि बॉम्बे नेचुरल हिस्ट्री सोसाइटी में प्रथम पेड क्यूरेटर थे।
सलीम की प्रारंभिक रूचि शिकार से संबंधित किताबों पर थी जो बाद में स्पोर्ट-शूटिंग की दिशा में आ गई जिसमें उनके पालक-पिता अमिरुद्दीन ने उन्हें काफी प्रोत्साहित भी किया। उनके आस-पड़ोस में अक्सर शूटिंग प्रतियोगिता का आयोजन होता था।
प्राथमिक शिक्षा के लिए सलीम और उनकी दो बहनों का दाखिला गिरगाम स्थित ज़नाना बाइबिल मेडिकल मिशन गर्ल्स हाई स्कूल और बाद में मुंबई के सेंट जेविएर में कराया गया। जब वे 13 साल के थे तब गंभीर सिरदर्द की बीमारी से पीड़ित हुए, जिसके कारण उन्हें उन्हें अक्सर कक्षा छोड़ना पड़ता था। किसी ने सुझाव दिया कि सिंध की शुष्क हवा से शायद उन्हें ठीक होने में मदद मिले इसलिए उन्हें अपने एक चाचा के साथ रहने के लिए सिंध भेज दिया गया। वे लंबे समय के बाद सिंध से वापस लौटे और बड़ी मुश्किल से 1913 में बॉम्बे विश्वविद्यालय से दसवीं की परीक्षा उत्तीर्ण की।
सलीम अली ने प्रारंभिक शिक्षा मुंबई के सेंट जेवियर्स कॉलेज से ग्रहण की पर कॉलेज का पहला साल ही मुश्किलों भरा था जिसके बाद उन्होंने पढ़ाई छोड़ दी और परिवार के वोलफ्रेम (टंग्सटेन) माइनिंग और इमारती लकड़ियों के व्यवसाय की देख-रेख के लिए टेवोय, बर्मा (टेनासेरिम) चले गए। यह स्थान सलीम के अभिरुचि में सहायक सिद्ध हुआ क्योंकि यहाँ पर घने जंगले थे जहाँ इनका मन तरह-तरह के परिन्दों को देखने में लगता।
लगभग 7 साल बाद सलीम अली मुंबई वापस लौट गए और पक्षी शास्त्री विषय में प्रशिक्षण लिया और बंबई के ‘नेचुरल हिस्ट्री सोसाइटी’ के म्यूज़ियम में गाइड के पद पर नियुक्त हो गये। बहुत समय बाद इस कार्य में उनका मन नहीं लगा तो अवकास लेकर जर्मनी जाकर पक्षी विज्ञान में उच्च प्रशिक्षण प्राप्त किया। जब एक साल बाद भारत लौटे तब पता चला कि इनका पद ख़त्म हो चुका था। सलीम अली की पत्नी के पास कुछ रुपये थे जिससे उन्होंने बंबई बन्दरगाह के पास किहिम नामक स्थान पर एक छोटा सा मकान ले लिया।
डॉ सलीम अली ने अपना पूरा जीवन पक्षियों के लिए समर्पित कर दिया। ऐसा माना जाता है कि सलीम मोइज़ुद्दीन अब्दुल अली परिंदों की ज़ुबान समझते थे। उन्होंने पक्षियों के अध्ययन को आम जनमानस से जोड़ा और कई पक्षी विहारों की तामीर में अग्रणी भूमिका निभाई।
उन्होंने पक्षियों की अलग-अलग प्रजातियों के बारे में अध्ययन के लिए देश के कई भागों और जंगलों में भ्रमण किया। कुमाऊँ के तराई क्षेत्र से डॉ अली ने बया पक्षी की एक ऐसी प्रजाति ढूंढ़ निकाली जो लुप्त घोषित हो चुकी थी। साइबेरियाई सारसों की एक-एक आदत की उनको अच्छी तरह पहचान थी। उन्होंने ही अपने अध्ययन के माध्यम से बताया था कि साइबेरियन सारस मांसाहारी नहीं होते, बल्कि वे पानी के किनारे पर जमी काई खाते हैं। वे पक्षियों के साथ दोस्ताना व्यवहार करते थे और उन्हें बिना कष्ट पहुंचाए पकड़ने के 100 से भी ज़्यादा तरीक़े उनके पास थे। पक्षियों को पकड़ने के लिए डॉ सलीम अली ने प्रसिद्ध ‘गोंग एंड फायर’ व ‘डेक्कन विधि’ की खोज की जिन्हें आज भी पक्षी विज्ञानियों द्वारा प्रयोग किया जाता है।
जर्मनी के ‘बर्लिन विश्वविद्यालय’ में उन्होंने प्रसिद्ध जीव वैज्ञानिक इरविन स्ट्रेसमैन के देख-रेख में काम किया। उसके बाद 1930 में वे भारत लौट आये और फिर पक्षियों पर और तेजी से कार्य प्रारंभ किया। देश की आज़ादी के बाद डॉ सलीम अली ‘बांबे नेचुरल हिस्ट्री सोसायटी’ के प्रमुख लोगों में रहे। भरतपुर पक्षी विहार की स्थापना में उनकी प्रमुख भूमिका रही।
1930 में सलीम अली ने अपने अनुसन्धान और अध्ययन पर आधारित लेख लिखे। इन लेखों के माध्यम से लोगों को उनके कार्यों के बारे में पता चला और उन्हें एक ‘पक्षी शास्त्री’ के रूप में पहचाना मिली। लेखों के साथ-साथ सलीम अली ने कुछ पुस्तकें भी लिखीं। वे जगह जगह जाकर पक्षियों के बारे में जानकारी इकठ्ठी करते थे। उन्होंने इन जानकारियों के आधार पर एक पुस्तक तैयार की जिसका नाम था ‘द बुक ऑफ़ इंडियन बर्ड्स’। 1941 में प्रकाशित इस पुस्तक ने रिकॉर्ड बिक्री की। इसके बाद उन्होंने एक दूसरी पुस्तक ‘हैण्डबुक ऑफ़ द बर्ड्स ऑफ़ इंडिया एण्ड पाकिस्तान’ भी लिखी, जिसमें सभी प्रकार के पक्षियों, उनके गुणों-अवगुणों, प्रवासी आदतों आदि से संबंधित अनेक रोचक और मतवपूर्ण जानकारियां दी गई थी। डॉ सलीम अली ने एक और पुस्तक ‘द फाल ऑफ़ ए स्पैरो’ भी लिखी, जिसमें उन्होंने अपने जीवन से जुड़ी कई घटनाओं का ज़िक्र किया है।
डॉ सलीम अली ने प्रकृति विज्ञान और पक्षी विज्ञान के क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान दिया। इस दिशा में उनके कार्यों के मद्देनजर उन्हें कई प्रतिष्ठित सम्मान दिए गए। अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय और दिल्ली विश्वविद्यालय ने उन्हें डॉक्टरेट की मानद उपाधि दी। उनके महत्त्वपूर्ण कार्यों के लिए उन्हें भारत सरकार ने भी उन्हें 1958 में पद्म भूषण व 1976 में पद्म विभूषण जैसे महत्वपूर्ण नागरिक सम्मानों से नवाजा।
27 जुलाई 1987 को 91 साल की उम्र में डॉ. सालिम अली का निधन मुंबई में हुआ। डॉ सलीम अली भारत में एक ‘पक्षी अध्ययन व शोध केन्द्र’ की स्थापना करना चाहते थे। इनके महत्वपूर्ण कार्यों और प्रकृति विज्ञान और पक्षी विज्ञान के क्षेत्र में अहम् योगदान के मद्देनजर ‘बॉम्बे नैचुरल हिस्ट्री सोसाइटी’ और ‘पर्यावरण एवं वन मंत्रालय’ द्वारा कोयम्बटूर के निकट ‘अनाइकट्टी’ नामक स्थान पर ‘सलीम अली पक्षीविज्ञान एवं प्राकृतिक इतिहास केन्द्र’ स्थापित किया गया।एजेन्सी।