मुबारक साल गिरह। स्वाभाविक अभिनय और आकर्षक व्यक्तित्व के लिए प्रसिद्ध विश्वजीत चटर्जी ने बंगाली फिल्मों और हिंदी फिल्मों के दर्शकों के दिलों में वर्षो तक राज किया है। कलकत्ता अब कोलकाता में पले-बढ़े विश्वजीत चटर्जी के अभिनय के सफर की शुरूआत बंगाली फिल्मों से हुई। माया मृग और दुई भाई सफल बंगाली फिल्मों में अभिनय के बाद विश्वजीत चटर्जी ने हिंदी फिल्मों का रूख किया। वे कलकत्ता अब कोलकाता से बम्बई अब मुंबई आए।
हिंदी फिल्म इंडस्ट्री ने बंगाली फिल्मों के इस सफल अभिनेता को सिर-आंखों पर बिठाया। परिणामस्वरूप बेहद कम वक्तमें विश्वजीत की झोली हिंदी फिल्मों से भर गयी। 1962 में विश्वजीत चटर्जी की पहली हिंदी फिल्म बीस साल बाद प्रदर्शित हुई जिसने बॉक्स ऑफिस पर सफलता के नए सोपान बनाए। देखते-ही-देखते विश्वजीत हिंदी फिल्मों के तेजी से उभरते हुए अभिनेता बन गए। विश्वजीत चटर्जी के चाहने वालों ने उन्हें किंग ऑफ रोमांस की उपाधि दी। विश्वजीत पर फिल्माए गए गीतों की लोकप्रियता ने उनके फिल्मी कॅरिअर में चार-चांद लगाए। फिल्म निर्माता-निर्देशकों ने उन पर विश्वास करना शुरू कर दिया। बीस साल बाद के बाद विश्वजीत चटर्जी ने कई यादगार फिल्मों में नायक की भूमिकाएं निभायी जिनमें मेरे सनम, शहनाई, अप्रैल फूल, दो कलियां और शरारत उल्लेखनीय है। विश्वजीत चटर्जी को उस समय की लगभग सभी हीरोइनों के साथ अभिनय का अवसर मिला। विशेषकर आशा पारेख, मुमताज, माला सिन्हा और राजश्री केसाथ उनकी रोमांटिक जोड़ी बेहद पसंद की गई।
1962 में विश्वजीत की पहली हिन्दी फ़िल्म ‘बीस साल बाद’ प्रदर्शित हुई, जिसने बॉक्स ऑफिस पर सफलता के नए कीर्तिमान बनाए। देखते-ही-देखते विश्वजीत हिन्दी फ़िल्मों के तेजी से उभरते हुए अभिनेता बन गए। विश्वजीत के चाहने वालों ने उन्हें “किंग ऑफ रोमांस” की उपाधि दी। उन पर फ़िल्माए गए गीतों की लोकप्रियता ने उनके फ़िल्मी कॅरिअर में चार-चांद लगा दिए और उन्हें प्रसिद्धि की ऊँचाइयों पर बैठा दिया। फ़िल्म निर्माता-निर्देशकों ने उन पर विश्वास करना शुरू कर दिया। ‘बीस साल बाद’ की सफलता के बाद विश्वजीत ने कई यादगार फ़िल्मों में नायक की भूमिकाएँ निभायीं, जिनमें ‘मेरे सनम’, ‘शहनाई’, ‘अप्रैल फूल’, ‘दो कलियां ‘और ‘शरारत’ उल्लेखनीय हैं। विश्वजीत को उस समय की लगभग सभी हिरोइनों के साथ अभिनय का अवसर मिला। विशेषकर आशा पारेख, मुमताज, माला सिन्हा और राजश्री के साथ उनकी रोमांटिक जोड़ी बेहद पसंद की गई।
हिन्दी फ़िल्मों में मिली सफलता के बाद भी विश्वजीत ने बंगाली फ़िल्मों में अभिनय करना नहीं छोड़ा। वे कलकत्ता अब कोलकाता आते-जाते रहे और चुनींदा बंगाली फ़िल्मों में अभिनय करते रहे, जिनमें सुपरहिट फ़िल्म ‘चौरंगी’ उल्लेखनीय है। अभिनय के अनुभव के बाद विश्वजीत ने अपनी रचनात्मकता का रूख फ़िल्म निर्देशन की तरफ भी किया। 1975 में प्रदर्शित फ़िल्म ‘कहते हैं मुझको राजा’ के निर्माण और निर्देशन दोनों की जिम्मेदारी विश्वजीत ने संभाली। धर्मेंद्र, हेमा मालिनी, शत्रुघ्न सिन्हा और रेखा अभिनीत इस फ़िल्म ने बॉक्स ऑफिस पर अच्छा बिजनेस किया। एजेन्सी।