नूरजहाँ मुग़ल सम्राट जहाँगीर की पत्नी थी। उनका मूल नाम ‘मेहरुन्निसा था। जब उनके पिता मिर्ज़ा ग़यास बेग़, जो कि फ़ारस के निवासी थे, फारस से हिंदुस्तान वक्त नूरजहाँ का जन्म 31 मई 1577 को कंधार में हुआ था। मिर्ज़ा ग़यास बेग़ अकबर के दरबार में उच्च पद पाने में सफल हुए और 1605 में जहाँगीर के राज्यारोहण के बाद ही वह मालमंत्री नियुक्त हुए थे । उन्हें ‘एत्मादुद्दोला की उपाधि दी गई थी।
सत्रह वर्ष की अवस्था में मेहरुन्निसा का विवाह ‘अलीकुली खान से हुआ था , जिसे जहाँगीर के राज्य काल के प्रारम्भ में शेर अफग़़ान की उपाधि और बर्दवान की जागीर दी गई थी।1607 में शेर अफग़़ान को युद्ध में मार डाला गया । मेहरुन्निसा को पकड़ कर दिल्ली लाया गया और उसे बादशाह के शाही हरम में भेज दिया गया। यहाँ वह बादशाह अकबर की विधवा रानी ‘सलीमा बेगम की परिचारिका बनी। मेहरुन्निसा को जहाँगीर ने सर्वप्रथम नौरोज़ के अवसर पर देखा और उसके सौन्दर्य पर मुग्ध होकर जहाँगीर ने मई, 1611 में उससे विवाह कर लिया। विवाह के पश्चात् जहाँगीर ने मेहरुन्निसा को ‘नूरमहल एवं ‘नूरजहाँ का ख़िताब दिया।
1613 में नूरजहाँ को ‘बादशाह बेगम बनाया गया। विवाह के बाद नूरजहाँ ने ‘नूरजहाँ गुट का निर्माण किया। इस गुट के महत्त्वपूर्ण सदस्य थे- नूरजहाँ बेगम, एत्मादुद्दौला मिर्ज़ा ग़यास बेग़, (नूरजहाँ के पिता), अस्मत बेगम (नूरजहाँ की माँ), आसफ़ ख़ाँ (नूरजहाँ का भाई) एवं शाहज़ादा ख़ुर्रम (बाद में शाहजहाँ)।यह गुट मुग़ल दरबार में जहाँगीर के विवाह के तुरन्त बाद ही सक्रिय हो गया, जिसका प्रभाव 1627 तक रहा। नूरजहाँ के प्रभाव से प्रभावित जहाँगीर के शासन काल को दो भागों में बांटा जा सकता है-1611 से 1622 तक 1622 से 1627 तक।
प्रथम काल में नूरजहाँ गुट ने शाही सेवा में अपने समर्थकों को अधिक मात्रा में नियुक्त कर उन्हें उच्च मनसब प्रदान दिये। फलस्वरूप इस दल से जलन करने वाले विरोधी दल का गठन ख़ुसरो के नेतृत्व में हुआ। इस बीच महावत ख़ाँ की पदोन्नति में बाधा, ख़ानेआजम की कैद, ख़ुर्रम की अप्रत्याशित उन्नति, परवेज की अवनति एवं ख़ुसरो के भाग्य का उतार-चढ़ाव होता रहा। इस काल में नूरजहाँ के परिवार के लोगों के मनसब में हुई वृद्धि का क्रम इस प्रकार था- एत्मादुद्दौला का मनसब – 1611 में 2000/500, 1616 में 7000/500 और 1619 में 7000/ 7000 तक। आसफ़ ख़ाँ का मनसब – 1611 में 500/100, 1616 में 5000/3000 और 1622 में 6000/6000 तक। इब्राहिम ख़ाँ का मनसब – 1616 में 2500/2000 तक। असाधारण सुन्दरी होने के अतिरिक्त नूरजहाँ बुद्धिमती, शील और विवेकसम्पन्न भी थी। उनकी साहित्य, कविता और ललित कलाओं में विशेष रुचि थी।उनका लक्ष्य भेद अचूक होता था। 1619 में उन्होंने एक ही गोली से शेर को मार गिराया था। इन समस्त गुणों के कारण उन्होंने जहांगीर पर पूर्ण प्रभुत्व स्थापित कर लिया था। इसके फलस्वरूप जहाँगीर के शासन का समस्त भार उन्ही पर आ पड़ा था। सिक्कों पर भी उसका नाम खोदा जाने लगा और वह महल में ही दरबार करने लगी। उसके पिता एत्मादुद्दोला और भाई आसफ़ ख़ाँ को मुग़ल दरबार में उच्च पद प्रदान किया गया था और उसकी भतीजी का विवाह, जो आगे चलकर मुमताज़ के नाम से प्रसिद्ध हुई, शाहजहाँ से हो गया। उन्होंने पहले पति से उत्पन्न अपनी पुत्री का विवाह जहाँगीर के सबसे छोटे पुत्र शहरयार से कर दिया और क्योंकि उसकी जहाँगीर से कोई संतान नहीं थी, अत: वह शहरयार को ही जहाँगीर के उपरांत राज सिंहासन पर बैठाना चाहती थी। नूरजहाँ के ये सभी कार्य उसकी कूटनीति का ही एक हिस्सा थे।
1620 के अन्त तक नूरजहाँ के सम्बन्ध ख़ुर्रम (शाहजहाँ) से अच्छे नहीं रहे, क्योंकि नूरजहाँ को अब तक यह अहसास हो गया था कि शाहजहाँ के बादशह बनने पर उसका प्रभाव शासन के कार्यों पर कम हो जायगा। इसलिए नूरजहाँ ने जहाँगीर के दूसरे पुत्र ‘शहरयार को महत्व देना प्रारम्भ कर किया। चूंकि शहरयार अल्पायु एवं दुर्बल चरित्र का था, इसलिए उसके सम्राट बनने पर नूरजहाँ का प्रभाव पहले की तरह शासन के कार्यों में बना रहता। इस कारण से शेर अफग़़ान से उत्पन्न अपनी पुत्री ‘लाडली बेगम की शादी 1620 में शहरयार से कर उसे 8000/4000 का मनसब प्रदान किया। शाहजहाँ को जब इस बात का अहसास हुआ कि नूरजहाँ उसके प्रभाव को कम करना चाह रही है, तो उसने जहाँगीर द्वारा कंधार दुर्ग पर आक्रमण कर उसे जीतने के आदेश की अवहेलना करते हुए 1623. में ख़ुसरो ख़ाँ का वध कर दक्कन में विद्रोह कर दिया। उसके विद्रोह को दबाने के लिए नूरजहाँ ने आसफ़ ख़ाँ को न भेज कर महावत ख़ाँ को शहज़ादा परवेज़ के नेतृत्व में भेजा। उन दोनों ने सफलतापूर्वक शाहजहाँ के विद्रोह को कुचल दिया। शाहजहाँ ने पिता जहाँगीर के समक्ष आत्समर्पण कर दिया और उसे क्षमा मिल गई। जमानत के रूप में शाहजहाँ के दो पुत्रों दारा शिकोह और औरंगज़ेब को बंधक के रूप में राजदरबार में रखा गया। 1625 तक शाहजहाँ का विद्रोह पूर्णत: शान्त हो गया। शाहजहाँ के विद्रोह को दबाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका का निर्वाह करने वाले महावत ख़ाँ से नूरजहाँ को जलन होने लगी। नूरजहाँ को इसका अहसास था, कि महावत ख़ाँ उन लोगों में से है, जिन्हें शासन के कार्यों में उनका प्रभुत्व स्वीकार नहीं है।
महावत ख़ाँ एवं शाहज़ादा परवेज की निकटता से भी नूरजहाँ को ख़तरा था। अत: उसके प्रभाव को कम करने के लिए नूरजहाँ ने उसे बंगाल जाने एवं युद्ध के समय लूटे गये धन का हिसाब देने को कहा। इन कारणों के अतिरिक्त कुछ और कारण भी थे, जिससे अपमानित महसूस कर महावत ख़ाँ ने विद्रोह कर काबुल जा रहे सम्राट जहाँगीर को झेलम नदी के तट पर 1626 में क़ैद कर लिया। नूरजहाँ एवं उसके भाई आसफ़ ख़ाँ को भी बन्दी बना लिया। क़ैद में रखने पर भी महावत ख़ाँ ने जहाँगीर के प्रति निष्ठा एवं सम्मान की बात नहीं सोची। रोहतास में नूरजहाँ एवं जहाँगीर ने कूटनीति के द्वारा अपने को महावत ख़ाँ के प्रभाव से मुक्त कर लिया। महावत ख़ाँ अपनी सुरक्षा के लिए ‘थट्टा की ओर भाग गया। 28 अक्टूबर, 1626 को परवेज की मृत्यु के बाद एक तरह से महावत ख़ाँ कमज़ोर हो गया और वह शाहजहाँ की सेवा में चला गया। जहाँगीर के जीवन काल में नूरजहाँ सर्वशक्ति सम्पन्न रही, किंतु 1627 में जहाँगीर की मृत्यु के उपरांत उसकी राजनीतिक प्रभुता नष्ट हो गई। नूरजहाँ की मृत्यु 17 दिसम्बर 1645 में हुई थी । अपनी मृत्यु पर्यन्त तक का शेष जीवन उसने लाहौर में बिताया। उसकी कलात्मक रुचि का प्रमाण उस भव्य एवं आकर्षक मक़बरे में उपलब्ध है, जिसे उन्होंने अपने पिता एत्मादुद्दोला के अस्थि अवशेषों पर आगरा में बनवाया था। कलाविदों के अनुसार यह मक़बरा बारीक और साज-सज्जा की दृष्टि से अनुपम है। नूरजहाँ को आज भी गुलाब के इत्र की खोज के लिए भी जाना जाता है। एजेंसी