सैयद अकबर हुसैन रिज़वी 16 नवम्बर 1846 को इलाहाबाद के निकट बारा में हुआ था । उनके पिता का नाम सैयद तफ्फज़ुल हुसैन था। अकबर इलाहाबादी शायर और लेखक थे। इनके द्वारा लिखे गए लेख स्वतंत्रता संग्राम के समय बहुत ज्यादा मशहूर थे । सैयद अकबर हुसैन ने अपनी प्राथमिक शिक्षा अपने पिता द्वारा घर पर ही प्राप्त की। शिक्षा और रोज़गार: दोनों साथ-साथ चले। 1866 में मुख़्तारी और फिर हाईकोर्ट में मिस्लख़्वानी। कुछ समय तक नायब-तहसीलदारी। 1872 में वकालत की परीक्षा पास करके 1880 तक वकालत करते रहे। उसके बाद मुंसिफ़, 1888 में जज और 1892 में अदालते-ख़ुफ़िया के जज हुए। सरकार से, आगे चलकर ख़ानबहादुर का खि़ताब भी मिला। इलाहाबाद विश्वविद्यालय के फ़ेलो भी रहे। उन्होंने 15 साल की उम्र में अपने दो या तीन साल वरिष्ठ लड़की से शादी की थी और जल्द ही उन्की दूसरी शादी भी हुई । दोंनो पत्नीयों से अकबर के 2-2 पुत्र थे।
भारतीय रंगमंच पर गांधी के उदय के बाद उनके प्रशंसक रहे, मगर 1921 के असहयोग आंदोलन को पूरी तरह देख-समझ नहीं सके असहयोग आन्दोलन अभी ज़ोर ही पकड़ रहा था। और न उसका कोई विशेष प्रभाव ग्रहण कर सके। प्रकाशन: ‘अकबर’ की शायरी का एक दीवान उनके जीवन-काल में ही प्रकाशित हुआ, और फिर इज़ाफ़ों के साथ अनेकों बार इसका पुनर्प्रकाशन होता रहा। ‘अकबर’ के कुल्लियात को आखि़री शक्ल बहुत बाद में जाकर मिली।
अकबर शानदार, तर्कशील, मिलनसार आदमी थे। और उनकी कविता हास्य की एक उल्लेखनीय भावना के साथ कविता की पहचान थी। वो चाहे गजल, नजम, रुबाई या क़ित हो उनका अपना ही अलग अन्दाज़ था। वह समाज सुधारक थे ।
अकबर इलाहाबादी आशावादी शायर थे, उसके बाद के जीवन में चीजों के बारे में उनकी दृष्टि घर पर उसकी त्रासदी के अनुभव से घिर गई थी। उन्के बेटे और पोते का निधन कम उम्र में ही हो गया। यह उसके लिये बड़ा झटका था और निराशा का कारण बना। 75 साल की उम्र में 9 सितम्बर 1921 में अकबर की मृत्यु हो गई। मशहूर पुस्तक गाँधीनामा को उनके पोते ने 1948 में छपवाया था उसका हिंदी अनुवाद भी हुआ था।एजेन्सी।