ओ दूर के मुसाफिर
अपनी छह दशक लम्बी अभिनय-यात्रा में मरहूम दिलीप कुमार ने अभिनय की जिन ऊंचाईयों और गहराईयों को छुआ था वह भारतीय ही नहीं, विश्व सिनेमा के लिए भी असाधारण बात थी। दिलीप कुमार हिंदी सिनेमा के पहले महानायक हैं जिन्होंने यह साबित किया कि बगैर शारीरिक हावभाव के सिर्फ चेहरे की भंगिमाओं, आंखों और यहां तक कि ख़ामोशी से भी अभिनय किया जा सकता है। सिनेमा के तीन शुरूआती महानायकों में जहां राज कपूर को प्रेम के भोलेपन के लिए और देव आनंद को प्रेम की शरारतों के लिए जाना जाता है, दिलीप कुमार के हिस्से में प्रेम की व्यथा आई थी। व्यथा की उनकी अभिव्यक्ति का अंदाज़ कुछ ऐसा था कि दर्शकों को उस व्यथा में भी ग्लैमर नज़र आया। इस अर्थ में दिलीप कुमार ऐसे पहले अभिनेता थे जिन्होंने प्रेम की असफलता की पीड़ा को स्वीकार्यता दी। ‘देवदास’ प्रेम की उस पीड़ा का शिखर था। देवदास की भूमिका उनके पहले कुंदनलाल सहगल और उनके बाद शाहरूख खान ने भी निभाई, लेकिन दिलीप कुमार की वेदना और गहराई को कोई छू भी नहीं सका।
दिलीप कुमार को ‘ट्रैजेडी किंग’ का नाम मिला लेकिन यह भी सच है कि अपने अभिनय की विविधता और रेंज से उन्होंने लोगों को बार-बार चकित किया। वह ‘मेला, ‘दीदार’, ‘उड़न खटोला’, ‘आदमी’, ‘दिल दिया दर्द लिया’ का असफल आशिक हो, ‘देवदास’ का आत्महंता प्रेमी, ‘मुगले आज़म’ का विद्रोही शहज़ादा, ‘गंगा जमना’ का बागी डकैत, ‘कोहिनूर’, ‘आज़ाद’, ‘राम और श्याम’ का विदूषक, ‘शक्ति’ का सिद्धांतवादी पुलिस अफसर, या ‘मशाल’, ‘कर्मा’, ‘विधाता’और ‘सौदागर’ का चरित्र अभिनेता, लोगों ने उनके हर किरदार को बेपनाह प्यार दिया।
आज देश के महानतम अभिनेता दिलीप साहब देश के यौमे पैदाईश पर उन्हें खिराज़-ए-अक़ीदत !ध्रुव गुप्ता