जयंती पर विशेष-1971 में राज खोसला की ‘मेरा गांव मेरा देश’ को सुपर हिट बनाने में जिन फैक्टर्स ने काम किया था उसमें निम्मांकित तीन गाने भी शामिल थे – 1) मार दिया जाए या छोड़ दिया जाए….. 2) हाय शरमाऊं किस-किस को बताऊं अपनी प्रेम कहानियां…और 3) आया, आया अटरिया पे कोई चोर…..इस सच को निर्देशक राज खोसला ने स्वीकार भी किया था।
ये दोनों गाने नायिका आशा पारेख पर नहीं फिल्माए गए थे बल्कि एक कम जानी -पहचानी अभिनेत्री लक्ष्मी छाया पर फिल्माए गए थे। बच्चा-बच्चा जान गया था उसे। राज खोसला ने ऐसा क्यों किया था? इस राज को आज तक कोई नहीं जान पाया। उनका मक़सद तो आशा पारेख की पतंग आसमान पर चढ़ाना था। यों कभी कभी ऐसा होता है कि बाज़ छोटे अदाकार भी अपनी अदाकारी से किरदार में जान डाल देते हैं कि फिल्म हिट होने सा सबब बन जाते हैं। और अहम अदाकार ठगे से रह जाते हैं। इससे पहले लक्ष्मी छाया नायिका की सहेली के छोटे-मोटे रोल किया करती थी। मज़े की बात ये थी ये नायिका ज्यादातर आशा पारेख ही रहती थी।
उन दिनों राज खोसला ने तय कर रखा था कि आशा पारेख को ग्लैमर की दुनिया से निकाल कर मीनाकुमारी सरीखी गंभीर अभिनेत्री बना देंगे। इसकी शुरआत वो ‘दो बदन’ से कर चुके थे।
‘मेरा गांव…’ सुपर हिट होने के बावजूद आशा पारेख को कुछ भी हासिल नहीं हुआ। लेकिन ट्रेजेडी ये रही कि ‘मार दिया जाए की छोड़ दिया जाए गर्ल’ से घर-घर की पहचान बनी लक्ष्मी छाया भी तीर मार कर कोई कद्दू नहीं फोड़ पायी। लक्ष्मी को ‘रास्ते का पत्थर’ में ज़रूर अच्छी फुटेज मिली। इसमें अमिताभ बच्चन नायक थे और नवोदिता नीता ख्याणी नायिका। नशे में हर वक़्त चूर लड़की के किरदार में लक्ष्मी ने जान डाल दी। लेकिन बॉक्स ऑफिस पर रिकॉर्ड नाकामी ने लक्ष्मी के अरमानों पर भी पानी फेर दिया। लक्ष्मी छाया की पहचान वही रही। वो नायिका की अच्छी सहेली से आगे नहीं बढ़ पायी।
हर फ़िल्मी और गैर फ़िल्मी शख्स ये मानता था कि लक्ष्मी बहुत अच्छी डांसर तो है ही, उसमें ज़बरदस्त एक्टिंग पोटेंशियल भी है। डांसर-एक्ट्रेस का उन दिनों बोलबाला था। लेकिन मेजर रोल देने के लिए कोई तैयार नही था। स्थापित नायिकाओं को नाराज़ करना कोई आसान काम नहीं था।
‘मेरा गावं…’ से पहले एनसी सिप्पी की रहस्यमई ‘गुमनाम’ में लक्ष्मी पर फिल्माया एक मास्क पॉप गाना बहुत पॉपुलर हो चुका था – जान पहचान हो, जीना आसान हो.… ये गाना 2001 में रिलीज़ हॉलीवुड फिल्म ‘घोस्ट वर्ल्ड’ की ओपनिंग में जस का तस रखा गया। लक्ष्मी छाया ने तीसरी मंज़िल, प्यार का मौसम, नौनिहाल, बहारों के सपने आदि कुल 55 फिल्मों में काम किया और लगभग हर फिल्म में उसे नोटिस भी किया गया। बस बड़ा काम नहीं मिला, सिर्फ वादे ही मिले।
लक्ष्मी छाया ने सत्तर के दशक के बाद फ़िल्में करना छोड़ एक डांसिंग स्कूल खोला लिया। ये बहुत चला भी। वो साईं बाबा की ज़बरदस्त भक्त हो गई थीं। साईं बाबा पर टीवी सीरियल बना कर अपनी अगाध श्रद्धा को अभिव्यक्त करना चाहती थीं। मगर फाइनेंस की समस्या के कारण उनका ये ख़्वाब अधूरा रह गया। 07 जनवरी 1948 को जन्मी लक्ष्मी को कैंसर ने 09 मई 2005 को महज़ 56 की उम्र में लील लिया। मीडिया ने ‘मार दिया जाए गर्ल’ लक्ष्मी छाया की मृत्यु का समाचार महज़ दो पंक्तियों में समेट दिया। शायद उन्हें लक्ष्मी छाया के ‘होने’ की जानकारी ही नहीं थी। -वीर विनोद छाबड़ा मो.750566326