वृंदावनलाल वर्मा ऐतिहासिक उपन्यासकार एवं निबंधकार थे। इनका जन्म मऊरानीपुर में हुआ था। इनके पिता का नाम अयोध्या प्रसाद था। वृंदावनलाल वर्मा जी के विद्या-गुरु स्वर्गीय पण्डित विद्याधर दीक्षित थे। वृंदावनलाल वर्मा (9 जनवरी, 1889) की पौराणिक तथा ऐतिहासिक कथाओं के प्रति बचपन से ही रुचि थी। इनकी प्रारम्भिक शिक्षा भिन्न-भिन्न स्थानों पर हुई। बी.ए. करने के पश्चात इन्होंने क़ानून की परीक्षा पास की और झाँसी में वकालत करने लगे। इनमें लेखन की प्रवृत्ति आरम्भ से ही रही है। जब नवीं श्रेणी में थे, तभी इन्होंने तीन छोटे-छोटे नाटक लिखकर इण्डियन प्रेस, प्रयाग को भेजे और पुरस्कार स्वरूप 50 रुपये प्राप्त किये। ‘महात्मा बुद्ध का जीवन-चरित’ नामक मौलिक ग्रन्थ तथा शेक्सपीयर के ‘टेम्पेस्ट’ का अनुवाद भी इन्होंने प्रस्तुत किया था।
1909 में वृंदावनलाल वर्मा जी का ‘सेनापति ऊदल’ नामक नाटक छपा, जिसे सरकार ने जब्त कर लिया। 1920 तक यह छोटी-छोटी कहानियाँ लिखते रहे। इन्होंने 1921 से निबन्ध लिखना प्रारम्भ किया। स्काट के उपन्यासों का इन्होंने स्वेच्छापूर्वक अध्ययन किया और उससे ये प्रभावित हुए। ऐतिहासिक उपन्यास लिखने की प्रेरणा इन्हें स्काट से ही मिली। देशी-विदेशी अन्य उपन्यास-साहित्य का भी इन्होंने यथेष्ट अध्ययन किया।
वृंदावनलाल वर्मा जी ने 1927 में ‘गढ़ कुण्डार’ दो महीने में लिखा। उसी वर्ष ‘लगन’, ‘संगम’, ‘प्रत्यागत’, कुण्डली चक्र’, ‘प्रेम की भेंट’ तथा ‘हृदय की हिलोर’ भी लिखा। 1930 में ‘विराट की पद्मिनी’ लिखने के पश्चात कई वर्षों तक इनका लेखन स्थगित रहा। इन्होंने 1939 में धीरे-धीरे व्यंग्य तथा 1942-44 में ‘कभी न कभी’, ‘मुसाहिब जृ’ उपन्यास लिखा। 1946 में इनका प्रसिद्ध उपन्यास ‘झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई’ प्रकाशित हुआ। तब से इनकी कलम अवाध रूप से चलती रही। ‘झाँसी की रानी’ के बाद इन्होंने ‘कचनार’, ‘मृगनयनी’, ‘टूटे काँटें’, ‘अहिल्याबाई’, ‘भुवन विक्रम’, ‘अचल मेरा कोई’ आदि उपन्यासों और ‘हंसमयूर’, ‘पूर्व की ओर’, ‘ललित विक्रम’, ‘राखी की लाज’ आदि नाटकों का प्रणयन किया। ‘दबे पाँव’, ‘शरणागत’, ‘कलाकार दण्ड’ आदि कहानीसंग्रह भी इस बीच प्रकाशित हो चुके हैं।
वृंदावनलाल वर्मा जी भारत सरकार, राज्य सरकार, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश राज्य के साहित्य पुरस्कार तथा डालमिया साहित्यकार संसद, हिन्दुस्तानी अकादमी, प्रयाग (उत्तर प्रदेश) और नागरी प्रचारिणी सभा, काशी के सर्वोत्तम पुरस्कारों से सम्मानित किये गये हैं। अपनी साहित्यिक सेवाओं के लिए वृंदावनलाल वर्मा जी आगरा विश्वविद्यालय द्वारा डी. लिट. की उपाधि से सम्मानित किये गये। इनकी अनेक रचनाओं को केन्द्रीय एवं प्रान्तीय राज्यों ने पुरस्कृत किया है। 23 फरवरी 1969 को आपका निधन हुआ था।एजेन्सी।