आस्मा जहाँगीर पाकिस्तानी मानवाधिकार कार्यकर्ता, वकील और पाकिस्तानी मानवाधिकार आयोग की संस्थापक और प्रथम अध्यक्ष थीं। वे पाकिस्तान के सुप्रीम कोर्ट में कार्यरत थीं। आस्मा जहाँगीर हाशिए पर पड़े बेबस लोगों के लिए आवाज बुलंद करने के लिए जानी जाती थीं। वे समाजसेविका थीं और मुख्यतः अल्पसंख्यक समुदाय व महिलाओं के लिए कार्य करती थीं। सयुंक्त राष्ट्र की ” आस्था की स्वतंत्रता ” पर अगस्त 2004 वाचिका थीं (पहले मानवाधिकार संघ तथा बाद में मानवाधिकार आयोग)। मृत्य से पहले वे पाकिस्तान के मानव अधिकार आयोग की अध्यक्ष थीं। आस्मा जहाँगीर को दुनिया भर के तमाम मंचों पर बोलने के लिए बुलाया जाता था। पाकिस्तान में वो उन गिनी-चुनी आवाज़ों में थीं जो खुले तौर पर सैन्य शासन और सरकार के भ्रष्टाचार के खिलाफ बोलती थीं।
आसमा जहांगीर का जन्म 27 जनवरी, 1952 को लाहौर में सम्पन्न परिवार में हुआ जो मानव अधिकार क्षेत्र में काफी सक्रिय था। इनके पिता मालिक जिलानी एक सरकारी कर्मचारी थे जो बाद में राजनीति में आये और सैनिक तानाशाही का विरोध करते हुए जेल गए। उन्होंने के कई बार बेबाकी से पाकिस्तानी सेना द्वारा पूर्वी पाकिस्तान (वर्तमान में बंगलादेश) में की गए नरसंहार का विरोध किया। उनकी माता ने सह-शिक्षा द्वारा संचालित महाविद्यालय में उस समय शिक्षा ली जब कई महिलाये शिक्षा से वंचित थी। उन्होंने किन्नार्ड महाविद्यालय से कला में स्नातक की उपाधि ली तथा 1972 में न्याय में स्नातकोत्तर की उपाधि ली उसके पश्चात् उन्हें स्वित्ज़रलैंड की गेल्लें विश्वविद्यालय से डॉकटरेट की उपाधि दे गयी।
पंजाब विश्वविद्यालय से कानून की डिग्री हासिल करने वाली आसमा पाकिस्तान के सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन की पहली महिला अध्यक्ष थीं। आसमा ने पाकिस्तानी राजनीति में पाकिस्तानी सेना की भूमिका को लेकर हमेशा आलोचना भी की। कई बार उन्होंने पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आईएसआई सहित पाकिस्तानी सुरक्षा एजेंसियों के खिलाफ बहुत गंभीर आरोप लगाए और उनसे अपनी जान का खतरा भी बताया था।
जब-जब पाकिस्तान में लोकतंत्र की आवाज दबाने की कोशिश हुई तो आसमा ने भी अपनी आवाज बुलंद की। 1983 में उन्हें जेल भी हुई थी। 2007 में हुए वकीलों से जुड़े आंदोलन में भी उन्होंने हिस्सा लिया था, तब उन्हें घर में नजरबंद कर दिया गया था। उन्होंने पाकिस्तान में जनरल जियाउल हक की तानाशाह सरकार के खिलाफ भी जमकर आवाज उठाई थी। वह संयुक्त राष्ट्र संघ के लिए बतौर मानवाधिकार पत्रकार काम करती थीं। इसके अलावा वह ह्यूमन राइट्स कमीशन की सह संस्थापक भी थीं। आसमा 2010 से 2012 तक सुप्रीम कोर्ट बार की प्रेसीडेंट भी रही हैं। वह अक्सर सुप्रीम कोर्ट के गलत फैसलों की भी आलोचना किया करती थीं।
उन्हें कई सम्मानों से भी सम्मानित किया गया था। आस्मा को हिलाल-ए-इम्तियाज, सितारा-ए-इम्तियाज मिला। मानव अधिकार पर काम करने के लिए यूनेस्को ने भी उन्हें सम्मानित किया था। उन्होंने इफ्तिकार चौधरी को पाकिस्तान का प्रधान न्यायाधीश बहाल करने के लिए प्रसिद्ध वकील आंदोलन में सक्रिय हिस्सेदारी की। वह न्यायिक सक्रियाता को लेकर सुप्रीम कोर्ट की आलोचक थीं तथा उन्होंने नवाज शरीफ को प्रधानमंत्री के पद के लिए अयोग्य ठहराने के लिए शीर्ष अदालत की आलोचना की थी।
पाकिस्तान की चर्चित मानवाधिकार वकील और सामाजिक कार्यकर्ता अस्मा जहांगीर का दिल का दौरा पड़ने से 11 फरवरी 2008 को निधन हो गया था। वह 66 साल की थीं। उनके परिवार में दो बेटियां और एक बेटा है। उनकी बेटी मुनीजे जहांगीर टीवी एंकर हैं।:एजेंसी-फोटो साभार