इसके तुरंत बाद जोश ने पत्रिका, कलीम (उर्दू में “वार्ताकार”) की स्थापना की, जिसमें उन्होंने खुले तौर पर भारत में ब्रिटिश राज से आजादी के पक्ष में लेख लिखा था,जिससे उनकी ख्याति चहु और फेल गयी और उन्हें शायर-ए-इन्कलाब कहा जाने लगा। और इस कारण से आपके रिश्ते कांग्रेस विशेषकर जवाहर लाल नेहरु से मजबूत हुए । भारत में ब्रिटिश शासन के समाप्त होने के बाद जोश आज-कल प्रकाशन के संपादक बन गए। आपको 1954 में भारत सरकार की और से पद्म भूषण पुरस्कार दिया गया।
जवाहर लाल नेहरु के मनाने पर भी जोश 1958 में पकिस्तान चले गए उनका सोचना था की भारत हिन्दू राष्ट्र है जहा हिंदी भाषा को ज्यादा तवज्जो दी जायगी न की उर्दू को जिससे उर्दू का भारत में कोई भविष्य नहीं है । पकिस्तान जाने के बाद आप कराची में बस गए और आपने मौलवी अब्दुल हक के साथ में अंजुमन-ए-तरक्की-ए-उर्दू के लिए काम किया । जोश उर्दू साहित्य में उर्दू पर अधिपत्य और उर्दू व्याकरण के सर्वोत्तम उपयोग के लिए जाने जाते है । आपका पहला शायरी संग्रह 1921 में प्रकाशित हुआ जिसमे शोला-ओ-शबनम, जुनून-ओ-हिकमत, फ़िक्र-ओ-निशात, सुंबल-ओ-सलासल, हर्फ़-ओ-हिकायत, सरोद-ओ-खरोश और इरफ़ानियत-ए-जोश शामिल है।| फिल्म डायरेक्टर W. Z. अहमद की राय पर आपने शालीमार पिक्चर्स के लिए गीत भी लिखे इस दौरान आप पुणे में रहे । आपकी आत्मकथा का शीर्षक है यादो की बारात।
‘शायरे इन्क़लाब
पुण्य तिथि पर विशेष । जोश मलिहाबादी (शब्बीर हसन खान) जन्म 5 दिसंबर 1894 को , संयुक्त प्रांत, के मलिहाबाद में हुआ था। आप 1958 तक भारत के नागरिक रहे फिर पकिस्तान चले गए। आपने अपना तखल्लुस जोश ( जिसका मतलब जूनून है ) रखा और इसके साथ में अपने जन्मस्थान मलिहाबादी का नाम भी जोड़ लिया। आप ने सेंट पीटर कॉलेज आगरा में अध्ययन किया और 1914 में सीनियर कैम्ब्रिज परीक्षा उत्तीर्ण की । हालांकि जोश साथ में अरबी और फ़ारसी और का अध्ययन करते रहे और आपने टैगोर विश्वविद्यालय में 6 महीने भी गुजारे। परन्तु 1916 में आपके पिता बशीर अहमद खान की मृत्यु के कारण आप कॉलेज की पढाई पूरी नहीं कर सके । 1925 में आपने उस्मानिया विश्वविद्यालय हैदराबाद रियासत में अनुवाद की निगरानी का कार्य शुरू किया। परन्तु उनका यह प्रवास हैदराबाद में ज्यादा दिन न रह सका आपनी एक नज्म जो की रियासत के शासक के खिलाफ थी जिस कारण से आपको राज्य से निष्कासित कर दिया गया ।
फैज अहमद फैज और सैयद फखरुद्दीन बल्ले दोनों जोश के करीबी साथी रहे और जोश और सज्जाद हैदर खरोश (जोश के पुत्र) के दोस्त थे। जोश की बीमारी के दौरान फैज अहमद फैज ने इस्लामाबाद का दौरा किया और सैयद फखरुद्दीन बल्ले पूरी तरह हज़रत जोश और सज्जाद हैदर खरोश साथ जुड़े रहे। आपका इस्लामाबाद में 22 फरवरी, 1982 को निधन हो गया ।