महात्मा गांधी का पसंदीदा भजन था “वैष्णव जन तो तेने कहिए”। ये गुजराती भजन था और इसे गाया था कन्नड़ गायिका अमीरबाई कर्नाटकी ने। महात्मा गांधी अमीरबाई के इस भजन के मुरीद थे और इसी भजन के लिए वो अमीरबाई के भी फैन थे। अमीरबाई कन्नड़, हिंदी और मराठी गानों की गायिका भी थीं और फिल्मों की नायिका भी। हिंदी सिनेमा की शुरुआती गायिकाओं में इनका नाम शुमार है।
अगर आज पूरे देश के सिनेमा की एक्ट्रेसेस अपने नाम और रुतबे पर फख्र कर सकती हैं तो वो सिर्फ अमीरबाई और उनकी कुछ साथियों की वजह से। जिस जमाने में लड़कियों का सिनेमा में काम करना इतना बुरा माना जाता था कि परिवार उन लड़कियों से रिश्ते तोड़ लेता था, हत्या तक कर देता था। उन लड़कियों को तवायफों में गिना जाता था, तब एक्टिंग और सिंगिंग में सम्मान पाने के लिए अमीरबाई ने ही इसके लिए पूरे समाज से लड़ाई लड़ी थी।
अमीरबाई बीजापुर में जन्मीं थीं। जन्म तारीख का कोई रिकॉर्ड नहीं है, लेकिन ऐसा कहा जाता है कि उनका जन्म 1912 में हुआ था। इसी साल पहली भारतीय फिल्म राजा हरिश्चंद्र भी बनी थी। माता-पिता अमीना बी और हुसैन साब दोनों गायिकी और थिएटर से जुड़े थे, इसलिए अमीरबाई और उनकी चार बहनों को संगीत विरासत में ही मिला था।
1931 में अमीरबाई बीजापुर से बम्बई अब मुंबई आ गईं। यहां देखते ही देखते वो टॉप की एक्ट्रेस और गायिका बनीं। उन्हें भारत की पहली सिंगिंग स्टार भी कहा जाने लगा। ग्रामोफोन कम्पनी भी उन्हें 1935 के जमाने में एक रिकॉर्डिंग के लिए 1000 रुपए देती थी। अमीरबाई को सॉन्ग ऑफ लव भी कहा जाता था क्योंकि उन्होंने उस जमाने में कई रोमांटिक गाने गाए थे। उनकी जिंदगी प्यार से महरूम रही।
उन्होंने उस जमाने के टॉप विलेन हिमालयवाला (अफजल कुरैशी) से शादी की थी। जो उन्हें बेइंतहा पीटता था। उनके पैसों को अपने कब्जे में रखता था। यहां तक कि उसने तलाक देने के लिए भी पैसे लिए। अमीरबाई को स्टूडियो से रिकॉर्डिंग के दौरान किडनैप किया और कमरे में बंद कर खूब मारा।इस पूरे मामले के बाद अमीरबाई ने अपने वकील चेलशंकर व्यास की मदद से कोर्ट में केस फाइल किया। उन्होंने पति पर कई गंभीर आरोप लगाए। हिंसा और बदसलूकी के लंबे दौर के बाद आखिरकार उन्हें पति से तलाक मिल गया। पति से अलग तो हो गईं, लेकिन इस रिश्ते का सदमा उन्हें लंबे समय तक रहा। वो कुछ साल तक काफी डिप्रेशन में रहीं। फिर उन्होंने एडिटर बद्री कांचवाला से दूसरी शादी की। ये शादी उनके लिए सुकून भरी रही। उनका पहला पति हिमालयवाला भी विभाजन के बाद पाकिस्तान में जा बसा और पाकिस्तानी फिल्मों का काफी बड़ा एक्टर बना।
1934 में आई फिल्म विष्णु भक्ति से अमीरबाई को पहला ब्रेक मिला। इस फिल्म में उनको काम अपनी बड़ी बहन गौहरबाई के कारण मिला था, जो खुद फिल्मों में आ चुकी थीं। हालांकि इस फिल्म से उन्हें कोई पहचान नहीं मिली, ना ही उनके काम को कोई सराहना मिल पाई। 1936 में आई फिल्म जमाना के गाने “इस पाप की दुनिया से कहीं और ले चल” से उन्हें पहला बड़ा ब्रेक मिला। इस फिल्म से उन्हें पहचान मिली और इसके बाद उन्होंने कई यादगार गाने गाए।
1945 में आई फिल्म किस्मत भारतीय सिनेमा की पहली ब्लॉकबस्टर मानी गई। इस फिल्म ने कई स्टार दिए। अशोक कुमार इनमें से एक थे। पहली बार एंटी हीरो का कॉन्सेप्ट हिंदी फिल्म में आया। एक ऐसा हीरो जो विलेन जैसा हो। अशोक कुमार इस फिल्म से सुपरस्टार हो गए।
इस फिल्म का ही गाना “दूर हटो ऐ दुनियावालों हिन्दुस्तान हमारा है” ब्रिटिश हुकूमत को इतना खटका था कि इसे बैन करने में अंग्रेजों ने पूरी ताकत लगा दी थी। ये फिल्म इतनी हिट रही कि इसने भारतीय सिनेमा का नक्शा ही बदल दिया। 1945 में इसने बॉक्स ऑफिस पर एक करोड़ रुपए की कमाई की थी, जो आज की तारीख में 2100 करोड़ से भी ज्यादा है।
उन्होंने 1942 में आई फिल्म बसंत में भी आवाज दी थी। उनका गाना “हुआ क्या कसूर, हुए जो हमसे दूर” उस दौर के सबसे हिट गानों में शामिल था। इसी फिल्म से एक बाल कलाकार का भी डेब्यू हुआ था, जिसका नाम था बेबी मुमताज। इसी बेबी मुमताज को कुछ सालों बाद वीनस ऑफ इंडियन सिनेमा-मधुबाला के नाम से जाना गया।
ये वो दौर था जब फिल्मों में काम करना अच्छे घर की लड़कियों के लिए मना था। जो भी महिलाएं इस काम में आती उनकी तुलना वेश्याओं से की जाती थीं। अमीरबाई और उस दौर की कुछ गायिकाओं और अभिनेत्रियों ने समाज में अपने सम्मान के लिए काफी संघर्ष किया। समाज के तानों और परिवारवालों के विरोध का सामना करते हुए अपनी कला के दम पर पहचान बनाई।
उनकी बायोग्रॉफी लिखने वाले रहमत तारिकी ने लिखा है- अमीरबाई और उस समय फिल्मी दुनिया में आई लड़कियों की ये लड़ाई किसी आजादी की लड़ाई से कम नहीं थी। हालांकि इस लड़ाई को कभी इतना महत्व नहीं दिया गया, लेकिन ये इन्हीं महिलाओं की हिम्मत थी जो अब फिल्म एक्ट्रेस बनने पर लड़कियों को शर्म नहीं, गर्व का अनुभव होता है।
1947 के बाद से फिल्मी दुनिया में गायिकी के लिए सिर्फ लता मंगेशकर का नाम शीर्ष पर था। उनकी बहन आशा भोसले भी काफी सराही जा रही थीं और दोनों की गायिकी से कई दूसरी फीमेल सिंगर्स का करियर हाशिए पर आ गया। अमीरबाई भी उनमें थीं।
गायिकी में करियर ग्राफ गिरता देख अमीरबाई ने एक्टिंग पर फोकस करना शुरू किया। इसमें भी उन्हें लीड रोल नहीं मिलते थे। ज्यादातर सपोर्टिंग आर्टिस्ट मां, बहन, भाभी के कैरेक्टर्स ही उनके हिस्से में आते थे। अमीरबाई ने अपने करियर में कुल 150 फिल्में कीं। इन फिल्मों में उन्होंने कुल 380 गाने गाए।
अमीरबाई ने अपने शीर्ष के दिनों में सिनेमाघर भी बनवाया था। कर्नाटक के बीजापुर में अमीर टॉकीज उन्हीं का बनवाया हुआ है। फिल्मों और गायिकी से उन्हें इतना लगाव था कि वो इसके अलावा कुछ और सोचती भी नहीं थीं। बीजापुर में आज भी उनका परिवार इस अमीर टॉकीज को चला रहा है। उन्होंने पूरे कर्नाटक में शहर-शहर जाकर शोज किए। सिंगिंग प्रोग्राम और थिएटर भी किया। उनका सपना था कि लोग उनकी इस कला को वो सम्मान दें जिसकी वो हकदार हैं। इसके लिए उन्होंने अपनी पूरी ताकत लगा दी थी।भास्कर से साभार