देविका रानी रजतपट की नायिका जो अपने युग से कहीं आगे की सोच रखने वाली अभिनेत्री थीं और उन्होंने अपनी फिल्मों के माध्यम से जर्जर सामाजिक रूढियों और मान्यताओं को चुनौती देते हुए नए मानवीय मूल्यों और संवेदनाओं को स्थापित करने का काम किया था। कवि गुरुदेव रवीन्द्रनाथ ठाकुर के खानदान से ताल्लुक रखने वाली देविका ने दस वर्ष के अपने फिल्मी कैरियर में कुल 15 फिल्मों में ही काम किया, लेकिन उनकी हर फिल्म को क्लासिक का दर्जा हासिल है। विषय की गहराई और सामाजिक सरोकारों से जुड़ी उनकी फिल्मों ने अंतरराष्ट्रीय और भारतीय फिल्म जगत में नए मूल्य और मानदंड स्थापित किए। हिंदी फिल्मों की पहली स्वप्नन सुंदरी और ड्रैगन लेडी जैसे विशेषणों से अलंकृत देविका को उनकी खूबसूरती शालीनता धाराप्रवाह अंग्रेजी और अभिनय कौशल के लिए अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर जितनी लोक प्रियता और सराहना मिली उतनी कम ही अभिनेत्रियों को नसीब हो पाती है।
देविका रानी का जन्म वाल्टेयर 30 मार्च, 1908 (विशाखापटनम) में हुआ था। वे विख्यात कवि रवीन्द्रनाथ टैगोर के वंश से सम्बंधित थीं, श्री टैगोर उनके चचेरे परदादा थे। देविका रानी के पिता कर्नल एम.एन. चौधरी मद्रास (अब चेन्नई) के पहले सर्जन जनरल थे। उनकी माता का नाम लीला चौधरी था। स्कूल की शिक्षा समाप्त करने के बाद 1920 के दशक के आरंभिक वर्षों में देविका रानी नाट्य शिक्षा ग्रहण करने के लिये लंदन चली गईं और वहाँ वे रॉयल एकेडमी आफ ड्रामेटिक आर्ट और रॉयल एकेडमी आफ म्युजिक नामक संस्थाओं में भर्ती हो गईं। वहाँ उन्हें स्कालरशिप भी प्रदान किया गया। उन्होंने आर्किटेक्चर, टेक्सटाइल एवं डेकोर डिजाइन विधाओं का भी अध्ययन किया और एलिजाबेथ आर्डन में काम करने लगीं। पढ़ाई पूरी करने के बाद देविका रानी ने निश्चय किया कि वह फिल्मों में अभिनय करेगी लेकिन परिवार वाले इस बात के सख्त खिलाफ थे क्योंकि उन दिनों संभ्रान्त परिवार की लड़कियों को फिल्मों में काम नहीं करने दिया जाता था। इंग्लैंड में कुछ वर्ष रहकर देविका रानी ने रॉयल अकादमी ऑफ ड्रामेटिक आर्ट में अभिनय की विधिवत पढ़ाई की।
इस बीच उनकी मुलाकात सुप्रसिद्ध निर्माता हिमांशु राय से हुई। हिमांशु राय मैथ्यू अर्नाल्ड की कविता लाइट ऑफ एशिया के आधार पर इसी नाम से फिल्म बनाकर अपनी पहचान बना चुके थे। हिमांशु राय देविका रानी की सुंदरता पर मुग्ध हो गए और उन्होंने देविका रानी को अपनी फिल्म कर्मा में काम देने की पेशकश की जिसे देविका ने सहर्ष स्वीकार कर लिया। यह वह समय था जब मूक फिल्मों के निर्माण का दौर समाप्त हो रहा था और रुपहले पर्दे पर कलाकार बोलते नजर आ रहे थे। हिमांशु राय ने जब 1933 में फिल्म कर्मा का निर्माण किया तो उन्होंने नायक की भूमिका निभायी और अभिनेत्री के रूप में देविका रानी का चुनाव किया।
फिल्म देविका रानी ने हिमांशु राय के साथ लगभग चार मिनट तक लिप टू लिप दृश्य देकर उस समय के समाज को अंचभित कर दिया। इसके लिए देविका रानी की काफी आलोचना भी हुई और को प्रतिबंधित भी किया गया। इसके बाद हिमांशु राय ने देविका रानी से शादी कर ली और मुंबई आ गए। मुंबई आने के बाद हिमांशु राय और देविका रानी ने मिलकर बांबे टॉकीज बैनर की स्थापना की और फिल्म जवानी की हवा का निर्माण किया। 1935 में प्रदर्शित देविका रानी अभिनीत यह फिल्म सफल रही। बाद में देविका रानी ने बांबे टॉकीज के बैनर तले बनी कई फिल्मों में अभिनय किया। इन फिल्मों में से एक फिल्म थी अछूत कन्या। 1936 में प्रदर्शित अछूत कन्या में देविका रानी ने ग्रामीण बाला की मोहक छवि को रुपहले पर्दे पर साकार किया। 1933 में निर्मित कर्मा फिल्म देविका के कैरियर का अहम मोड़ साबित हुई। इस फिल्म ने अंतरराष्ट्रीय लोकप्रियता हासिल की और उन्हें प्रसिद्धि के शिखर पर पहुंचा दिया। यह यूरोप में रिलीज होने वाली अंग्रेजी भाषा में बनी पहली भारतीय फिल्म थी। जिसके लंदन में विशेष शो आयोजित किए गए और विंडसर पैलेस में शाही परिवार के लिए इसका विशेष प्रदर्शन भी किया गया। इस फिल्म की विशेष बात यह थी कि देविका ने उस दौर में चुंबन दृश्य देने का दुस्साहस किया था, जब इस बारे में कोई सोच भी नहीं सकता था। उन्होंने अपने पति हिमांशु राय के साथ चार मिनट लंबा किसिंग सीन किया था, जो भारतीय फिल्म इतिहास के सबसे लंबे चुंबन दृश्यों में माना जाता है। अछूत कन्या में अपने अभिनय से देविका ने दर्शकों को अपना दीवाना बना दिया। फिल्म में अशोक कुमार एक ब्राह्मण युवक के किरदार मे थे जिन्हें एक अछूत लड़की से प्यार हो जाता है। सामाजिक पृष्ठभूमि पर बनी यह फिल्म काफी पसंद की गई और इस फिल्म के बाद देविका रानी फिल्म इंडस्ट्री में ड्रीम गर्ल के नाम से मशहूर हो गई। अछूत कन्या के प्रदर्शन के बाद देविका रानी फर्स्ट लेडी ऑफ इंडियन स्क्रीन यानी भारतीय रजत पट की पहली पटरानी की उपाधि से सम्मानित किया गया। ड्रीम गर्ल और पटरानी सम्मान प्राप्त होने से देविका रानी के बारे में यह अंदाजा लगाया जा सकता है कि उस दौर में वह कितनी लोकप्रिय रही होंगी।
फिल्म अछूत कन्या के देविका रानी ने अशोक कुमार के साथ कई फिल्मों में अभिनय किया। इन फिल्मों में 1937 मे प्रदर्शित फिल्म इज्जत के अलावा फिल्म सावित्री (1938) और निर्मला (1938) जैसी फिल्में शामिल है। प्रचलित सामाजिक मान्यताओं को स्वीकार नहीं करने वाली देविका रानी के साथ किस्मत ने भी क्रूर मजाक किया और 1940 में हिमांशु राय का निधन हो गया। इस विपदा को भी साहस के साथ झेलकर उन्होंने पति के स्टूडियो बांबे टाकीज पर नियंत्रण के लिए संघर्ष किया।
1945 में उन्होंने रूसी चित्रकार स्वेतोस्लाव रोरिक से शादी कर स्थाई रूप से उनके साथ बेंगलूर में रहने लगी जहाँ वह 1994 में अपने निधन तक रही। देविका रानी को भारतीय सिनेमा के सर्वोच्च सम्मान दादा साहब फाल्के पुरस्कार और सोवियत लैंड नेहरू पुरस्कार सहित दर्जनों सम्मान मिले। फिल्मों से अलग होने के बाद भी वह विभिन्न कलाओं से जुड़ी रहीं। वह नेशनल एकेडमी के अलावा ललित कला अकादमी, राष्ट्रीय हस्तशिल्प बोर्ड तथा भारतीय सांस्कृतिक संबंध परिषद संस्थाओं से संबद्ध रहीं। इसके अलावा देविका रानी फिल्म इंडस्ट्री की प्रथम महिला बनी जिन्हें पद्मश्री से नवाजा गया। अपने दिलकश अभिनय से दर्शकों के दिलो पर राज करने वाली देविका रानी 9 मार्च, 1994 को इस दुनिया को अलविदा कह गईं। (राष्ट्रीय सहारा,9.3.11)। फोटो in.pinterest.com से