हर वर्ष 21 मार्च को कठपुतली कला को बढ़ावा देने के लिए विश्व भर में विश्व कठपुतली दिवस मनाया जाता है। यह पूरे विश्व में यूनियन इंटरनेशनेल डे ला मैरियोनेट के राष्ट्रीय केंद्रों और उनके सदस्यों के माध्यम से मनाया जाता है। विश्व कठपुतली दिवस की शुरुआत 2003 में युनेस्कोvसे संबद्ध एक गैर-सरकारी संगठन UNIMA द्वारा की गई थी। 21 मार्च 2003 को पहला विश्व कठपुतली दिवस मनाया गया। मनोरंजन का सशक्त माध्यम रहीं कठपुतलियां जागरूकता का काम भी कर रही हैं। कठपुतलियों के जरिए सामाजिक मुद्दों को रोचक तरीके से भी उठाया जा रहा। कठपुतलियां सुशिक्षित और स्वस्थ समाज का भी बुलंद संदेश दे रहीं। इतिहास में दर्ज नामों की प्रेरक कहानियों को कठपुतलियों के जरिए लोगो तक पहुंचाने के भी प्रयास हो रहे हैं।
कठपुतली नृत्य लोकनाट्य की शैली कही जाती है। इसमें लकड़ी,धागे, प्लास्टिक या प्लास्टर ऑफ पेरिस की गुड़ियों के माध्यम से जीवन के प्रसंगों की अभिव्यक्ति का मंचन किया जाता है।
कठपुतली प्राचीन काल से ही लोगों के मनोरंजन का एक साधन रहा है। विद्वानों की मानें तो भारतीय नाट्यकला का जन्म भी कठपुतली के खेल से ही हुआ है। इस आर्ट को लोगों के बीच और अधिक लोकप्रिय बनाने के लिए 21 मार्च को विश्व कठपुतली दिवस के अवसर पर संगीत नाटक अकादमी पुतुल उत्सव का आयोजन करने जा रही है। ये उत्सव को देश के 5 बड़े शहरों में आयोजित किया जाएगा।
कठपुतली के इतिहास के बारे में ऐसा कहा जाता है कि ईसा पूर्व चौथी शताब्दी में महाकवि पाणिनी के अष्टाध्याई ग्रंथ में पुतला नाटक का जिक्र मिलता है। साथ ही सिंहासन बत्तीसी कथा में भी 32 पुतलियों का उल्लेख किया गया है। पुतली कला की प्राचीनता के संबंध में तमिल ग्रंथ ‘शिल्पादिकार’ से भी जानकारी मिलती है।एजेन्सी।