दिलीप बलवंत वेंगसरकर (अंग्रेज़ी: , क्रिकेट की दुनिया के बेहतरीन और महान खिलाड़ी रहे हैं। 1983 का वो सुनहरा पल जब भारत ने विश्वकप जीता था, तब यह टीम का हिस्सा थे और वर्ल्डकप जीतने में अपनी भूमिका निभाई थी। तीसरे नंबर पर बल्लेबाजी करने वाले दिलीप वेंगसरकर एक दशक से ज्यादा समय तक भारतीय क्रिकेट टीम में रहे। क्रिकेट की दुनिया में अच्छी बल्लेबाजी के लिए काफी मशहूर भी हुए
दिलीप वेंगसरकर का जन्म 6 अप्रॅल, 1956 को राजपुर, बम्बई अब मुंबई, हुआ था। 70 और 80 के दशक में सुनील गावस्कर , गुंडप्पा विश्वास के साथ वेंगसरकर को भी भारतीय बल्लेबाजी का स्तंभ माना जाता था। लंबे और छरहरे वेंगसरकर ने 116 टेस्ट और 129 वनडे मैचों में भारतीय टीम का प्रतिनिधित्व किया। दोनों ही तरह के क्रिकेट में वे समान रूप से सफल रहे। ‘कर्नल’ के नाम से लोकप्रिय वेंगसरकर ने टेस्ट क्रिकेट में जहां 42.13 कके औसत 6868 रन बनाए जिसमें 17 शतक और 35 अर्धशतक शामिल रहे। वनडे क्रिकेट में भी एक शतक उनके नाम पर दर्ज है।
दिलीप वेंगसरकर ने 129 मैचों में 34.73 के औसत से 3508 रन बनाए। सुनील गावस्कर की कप्तानी में वर्ल्ड चैंपियनशिप ऑफ क्रिकेट सीरीज जीतने वाली भारतीय टीम में न सिर्फ वेंगसरकर शामिल थे बल्कि टीम इंडिया को चैंपियन बनाने में अहम योगदान दिया था। किसी भी टीम में मुख्य बल्लेबाज को ही तीसरे क्रम के बल्लेबाजी जिम्मेदारी सौंपी जाती है और ‘कर्नल’ ने भारतीय टीम के लिए यह जिम्मेदारी कई सालों तक संभाली।
‘क्रिकेट का मक्का’ कहा जाने वाला लॉर्ड्स मैदान तो दिलीप वेंगसरकर का पसंदीदा था। यहां खेलना उन्हें इस कदर रास आता था कि उनके बल्ले से रन मानो अपने आप ही निकलने लगते थे। लार्ड्स में लगातार तीन शतक लगाने वाले वे पहले नॉन इंग्लिश बल्लेबाज हैं। भारत की ओर से सुनील गावस्कर, सचिन तेंदुलकर, राहुल द्रविड़ बल्लेबाजों के नाम के आगे भी यह उपलब्धि दर्ज नहीं है। लार्ड्स मैदान के प्रति इस दीवानेपन के आलम के चलते ही दिलीप वेंगसरकर इस मैदान के टॉप 10 प्लेयर्स के एलीट क्लब में स्थान दिया गया। लॉर्ड्स मैदान पर 1979 में दिलीप वेंगसरकर ने 0 और 103, 1982 में 2 और 157 तथा 1986 में नाबाद 126 और 33 रन की पारी खेली। इस ऐतिहासिक ग्राउंड पर चार टेस्ट खेलते हुए उन्होंने 72.57 के औसत से 508 रन बनाए।
आखिरी बार दिलीप वेंगसरकर 1990 में लॉर्ड्स मैदान में खेले, लेकिन शतक नहीं बना पाए। पहली पारी में उन्होंने 52 व दूसरी पारी में 35 रन बनाए। इसी कारण उन्हें ‘लॉर्ड ऑफ लॉर्ड्स’ कहा जाता था। इस शानदार बल्लेबाज ने 10 टेस्ट मैचों में भारत की कप्तानी भी की हालांकि कप्तानी में उन्हें बहुत अधिक सफलता नहीं मिल पाई। वेंगसरकर ने अपना आखिरी इंटररनेशनल मैच, टेस्ट के रूप में 1992 में ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ पर्थ में खेला। इसमें वे दोनों ही पारियां में 10 रन का आंकड़ा भी पार नहीं कर पाए।
अर्जुन पुरस्कार, 1981 भारत सरकार द्वारा पद्म श्री से सम्मानित, 1987 बीसीसीआई द्वारा सी.के. नायडू लाइफटाइम अचीवमेंट अवॉर्ड।
क्रिकेट से सन्यास लेने के बाद दिलीप वेंगसरकर ने अपनी क्रिकेट अकादमी (1995) खोली, जिसका नाम ‘ईआईएफ़ वेंगसरकर अकादमी’ है। आजकल वह इसी में ब्यस्त रहते हैं। दिलीप वेंगसरकर ने क्रिकेट की दुनिया में और भी बहुत सारे काम किये हैं।