‘संकट कटै मिटै सब पीरा, जो सुमिरौ हनुमत बलतीरा।’ गोस्वामी तुलसीदास ने पवनपुत्र हनुमान को राम जी का सबसे बड़ा भक्त बताया है। चैत्र महीने के शुक्ल पक्ष की पूणिमा तिथि को वानरराज केसरी के घर में अंजनी माता के गर्भ से विलक्षण पुत्र हनुमान का जन्म हुआ था। इनके जन्म के कारक में स्वयं भगवान शिव और पवन देव शामिल थे। इसीलिए हनुमान जी को संकर सुवन केसरीनंदन और अंजनि सुत, पवन पुत्र कहा जाता है। इस बार 6 अप्रैल को चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा है, इसलिए उसी दिन हनुमान जयंती मनायी जाएगी। ज्योतिषियों के अनुसार 6 अप्रैल वृहस्पतिवार को प्रातः 6 बजकर 6 मिनट से 7 बजकर 40 मिनट तक हनुमान जी की पूजा-जन्मोत्सव का शुभ मुहूर्त है। इसके बाद दोपहर 12 बजकर 24 मिनट से 1 बजकर 58 मिनट तक और शाम को 5 बजकर 7 मिनट से 8 बजकर 7 मिनट तक पूजा करना ज्यादा शुभ होगा। ज्योतिषियों के अनुसार 11 बजकर 59 मिनट से दोपहर 12 बजकर 49 मिनट तक अभिजित मुहूर्त है। हनुमान जी हर प्रकार का संकट दूर करते हैं यदि सच्चे मन से उनकी आराधना की जाए।
हनुमान जी को लेकर कई कथाएं हैं। एक कथा के अनुसार सभा में आए नारद जी के भड़काने पर एक राजा ने भरी सभा में ऋषि विश्वामित्र को छोड़कर सभी को प्रणाम किया। ऋषि विश्वामित्र गुस्से से भर उठे और उन्होंने राम से कहा कि अगर सूर्यास्त से पहले श्रीराम ने उक्त राजा को मृत्यु दंड नहीं दिया तो वो राम को शाप दे देंगे। श्राप से भयभीत होकर श्रीराम ने उस राजा को सूर्यास्त से पहले मारने का प्रण ले लिया। श्रीराम के प्रण की खबर पाते ही राजा भागा भागा हनुमान जी की माता अंजनी के पास गया और पूरी बात बताए बिना उनसे प्राण रक्षा का वचन मांगा। माता अंजनी ने हनुमान जी को राजा की जान बचाने का आदेश दिया। हनुमान जी ने श्रीराम की कसम खाकर कहा कि कोई भी राजा का बाल भी बांका नहीं कर पाएगा। लेकिन जब राजा ने बताया कि श्रीराम ने ही उन्हें मारने का प्रण किया है तो हनुमान धर्म संकट में फंस गए। हनुमान के सामने धर्म संकट खड़ा हो गया कि वो राजा के प्राण कैसे बचाएं। अगर राजा को मौत मिलती है तो माता का दिया हुआ वचन पूरा नहीं हो पाएगा। अगर राजा को बचाया तो श्री राम का प्रण पूरा नहीं हो पाएगा और उन्हें शाप मिलेगा।उलझन में फंसे हनमान जी को एक युक्ति सूझी। हनुमान जी ने राजा से सरयू तट पर जाकर राम नाम जपने के लिए कहा। हनुमान जी खुद सूक्ष्म रूप में राजा के पीछे छिप गए।
जब श्री राम राजा को खोजते हुए सरयू तट पर पहुंचे तो उन्होंने देखा कि राजा राम-राम जप रहा है। राम जी ने सोचा, अरे! ये तो मेरा भक्त है, मैं कैसे इस पर बाण चला सकता हूं। श्री राम महल को लौट गए और विश्वामित्र से अपनी दुविधा कही। विश्वामित्र अपनी बात पर अड़े रहे और श्रीराम को फिर से राजा के प्राण लेने के लिए सरयू तट पर लौटना पड़ा। सारा राज्य देख रहा था कि कैसे श्रीराम दुविधा में फंसे हैं। एक तरफ राजा राम नाम जप रहा है और श्रीराम अपने ही भक्त को मारने के लिए मजबूर हैं। सभी सोच रहे थे कि ऐसे वक्त में हनुमान को राम के साथ होना चाहिए था लेकिन हनुमान जी थे कहां, वो तो अपने ही आराध्य के विरुद्ध सूक्ष्म रूप से एक धर्मयुद्ध का संचालन कर रहे थे।
हनुमान जानते थे कि राम नाम जपते हुए राजा को कोई भी नहीं मार सकता, खुद मर्यादा पुरुषोत्तम राम भी नहीं।राम जी जब फिर से सरयू तट लौटे तो राजा को मारने के लिए शक्ति बाण निकाला लेकिन तब तक राजा हनुमान जी के कहने पर सिया राम सिया राम जपने लगा। राम जानते थे कि सिया राम जपने वाले पर शक्तिबाण असर नहीं करता। वो बेबस हो गए और महल को लौट पड़े। उधर, विश्वामित्र उन्हें लौटा देखकर शाप देने को उतारू हो गए और राम को फिर सरयू तट पर जाना पड़ा। इस बार राजा हनुमान जी के इशारे पर जय सियाराम जय जय हनुमान गा रहा था। राम ने सोचा कि मेरे नाम के साथ साथ ये राजा शक्ति और भक्ति की जय बोल रहा है। ऐसे में मेरा कोई अस्त्र इसे मार नहीं पाएगा। इस संकट को देखकर श्रीराम को मूर्छा आने लगी तो अयोध्या के साधु संतों में खलबली मच गई। तब ऋषि वशिष्ठ ने ऋषि विश्वामित्र को सलाह दी कि राम को इस तरह संकट में नहीं डालना चाहिए। उन्होंने कहा कि राम चाह कर भी राम नाम जपने वाले को नहीं मार सकते क्योंकि जो बल राम के नाम में है और खुद राम में नहीं है।संकट बढ़ता देखकर ऋषि विश्वामित्र ने राम को संभाला और अपने वचन से मुक्त कर दिया। मामला संभलते देखकर राजा के पीछे छिपे हनुमान वापस अपने रूप में आ गए और श्रीराम को प्रणाम किया। तब श्रीराम ने कहा कि हनुमान ने इस प्रसंग से साबित किया है कि भक्त की शक्ति हमेशा आराध्य की ताकत बनी है और सच्चा भक्त हमेशा भगवान से बड़ा ही रहेगा।
पवनपुत्र हनुमान कहें या मारुति नंदन, संकटमोचन हनुमान हर किसी परिस्थिति में अपने भक्तों के संकट हर लेते हैं। हनुमान जन्मोत्सव के दिन सभी भक्त हनुमान जी की पूरे विधि विधान से पूजा अर्चना करते हैं और पूरे उल्लास के साथ उनका जन्मोत्सव मनाते हैं । वैदिक ज्योतिषशास्त्र के अनुसार हनुमान जी को प्रसन्न करने के लिए कुछ विशेष उपाय करने चाहिए। ऐसा करने से साधक को सभी काम में सफलता मिल सकती है। यह उपाय हनुमान जन्मोत्सव के दिन करने से और भी लाभ प्राप्त हो सकता है। करियर में सफलता प्राप्ति के लिए हनुमान जन्मोत्सव के दिन मारुति नंदन को सिंदूरी रंग का लंगोट चढ़ाएं। इस उपाय को करने से कार्यों में आपको सफलता जरूर मिलेगी। यदि आप काफी समय से किसी परेशानी में घिरे हैं या आपको कोई डर सता रहा है तो हनुमान जयंती के दिन 21 बार हनुमान जी के बजरंग बाण का पाठ करें। अगर काफी समय से आप जो भी कार्य कर रहे हैं और उसमें सिर्फ असफलता हाथ लग रही है तो हनुमान जन्मोत्सव के दिन विधिपूर्वक बजरंगबली की पूजा करके उन्हें केसरिया लड्डू का भोग लगाएं। इस उपाय से आपको कार्यों में सफलता मिलने लगेगी। ऐसा माना जाता है। हनुमान जी प्रभु श्रीराम के सबसे प्रिय भक्त हैं, इसलिए उनकी शरण में जाने से कल्याण होगा। (हिफी)
