नसीम बानो भारतीय सिनेमा में चालीस के दशक की हिन्दी फिल्मों की प्रमुख अभिनेत्री थीं। सिने जगत में अपनी दिलकश अदाओं से दर्शकों को दीवाना बनाने वाली नसीम बानो को उनकी खूबसूरती के लिए ब्यूटी क्वीन कहा जाता था। अभिनेत्री सायरा बानो, नसीम बानो की पुत्री हैं। नसीम बानो का जन्म 4 जुलाई, 1916 को हुआ था। इनकी परवरिश शाही ढग से हुयी थी। वह स्कूल पढने के लिए पालकी से जाती थीं। नसीम बानो सुन्दरता की मिसाल थीं। उनकी सुंदरता का अंदाज इस बात से लगाया जा सकता है कि उन्हें किसी की नजर न लग जाए, इसलिये उन्हें पर्दे में रखा जाता था। नसीम बानो ने अहसान मियाँ से प्रेम विवाह किया था। अहसान मियाँ ने नसीम बानो की खातिर कुछ फिल्मों का निर्माण भी किया था। बाद के समय में नसीम बानो और अहसान मियाँ का दाम्पत्य रिश्ता टूट गया। भारत का विभाजन होने और पाकिस्तान बन जाने के बाद अहसान मियाँ कराची जाकर बस गये। पति से अलग होने के बाद नसीम बानो बम्बई अब मुंबई में ही बनी रहीं। बाद में वे अपनी बेटी सायरा बानो और बेटे सुल्तान को लेकर लंदन में जा बसीं। सिनेमा जगत में नसीब बानो का प्रवेश संयोगवश हुआ था। एक बार नसीम बानो अपनी स्कूल की छुटियों के दौरान अपनी मां के साथ फिल्म सिल्वर किंग की शूटिंग देखने गयीं। फिल्म की शूटिंग देखकर नसीम बानो मंत्रमुग्ध हो गयीं और उन्होंने निश्चय किया कि वह अभिनेत्री के रुप में अपना सिने करियर बनायेंगी। इधर स्टूडियों में नसीम बानो की सुंदरता को देख कई फिल्मकारों ने नसीम बानो के सामने फिल्म अभिनेत्री बनने का प्रस्ताव रखा, लेकिन उनकी मां ने यह कहकर सभी प्रस्ताव ठुकरा दिये कि नसीम अभी बच्ची है। नसीम की मां उन्हें अभिनेत्री नहीं बल्कि डॉक्टर बनाना चाहती थीं। इसी दौरान फिल्म निर्माता सोहराब मोदी ने अपनी फिल्म ‘हेमलेट के लिये बतौर अभिनेत्री नसीम बानो को काम करने के लिए प्रस्ताव दिया और इस बार भी नसीम बानो की मां ने इंकार कर दिया, लेकिन इस बार नसीम अपनी जिद पर अड़ गयी कि उन्हें अभिनेत्री बनना ही है। इतना ही नहीं उन्होंने अपनी बात मनवाने के लिये भूख हडताल भी कर दी। सन् 1935 में नसीम को फिल्मों में ब्रेक दिया मशहूर फिल्मकार सोहराब मोदी ने और खून का खून फिल्म का निर्माण किया। इसके बाद नसीम 1941 तक सोहराब मोदी की ही फिल्मों में व्यस्त रहीं और इस दौरान उनकी खान बहादुर (1937), डाइवोर्स तथा मीठा जहर (1938), पुकार (1939) और मैं हारी (1940) में प्रदर्शित हुई। मुगल सम्राट जहाँगीर के एक इंसाफ को आधार बनाकर बनाई गई पुकार सुपरहिट रही। इसमें जहाँगीर का किरदार अभिनेता चंद्रमोहन ने निभाया, जबकि नसीम बानो जहाँगीर के बेगम की भूमिका में थीं। जब फिल्म प्रदर्शित हुई तो उस दौर में मुंबई के सिनेमाघरों में फिल्म देखने वालों की भारी भीड़ जुटी। उस फिल्म की सफलता के बाद नसीम बानो फिल्म उद्योग में स्टार के रूप में स्थापित हो गईं और इंडस्ट्री की सबसे व्यस्त अभिनेत्री बन गईं। अपनी इस सफलता के बाद 1942 में उनकी पृथ्वीराज कपूर के साथ फिल्म उजाला आई। इसे भी दर्शकों ने पसंद किया। उजाला का निर्माण ताजमहल पिक्चर के बैनर तले हुआ था।
फिल्मीस्तान कंपनी ने जब फिल्म निर्माण के क्षेत्र में कदम रखा तो अभिनेत्री के रूप में कंपनी की पहली पिक्चर में नसीम बानो को साइन किया। चल चल रे नौजवान फिल्म में नसीम के साथ नायक का किरदार निभाया दादा मुनि उर्फ अशोक कुमार ने। इस फिल्म ने भी अच्छा कारोबार किया और नसीम बानो और व्यस्त कलाकार बन गईं। उन्होंने फिल्मकार महबूब खान की कई फिल्मों में भी अभिनय किया। उसके बाद अपनी बेटी सायरा बानो का दौर शुरू हो जाने से उन्होंने खुद को हिन्दी सिनेमा की मुख्यधारा से अलग कर लिया। सायरा उनसे भी ज्यादा मशहूर अभिनेत्री हुईं। नसीम बानो फिल्मों से अलग तो हुई लेकिन बेटी सायरा के लिए हर फिल्म में ड्रैस डिजायनिंग वही करती थी। नसीम बानो का देहान्त 18 जून, 2002 को हुआ था। एजेन्सी।