जयन्ती पर विशेष।
-अशोक पाण्डे । अपने होने वाले पति यानी अंतर्राष्ट्रीय ख्याति के नर्तक उदयशंकर से हुई पहली मुलाक़ात को याद करते हुए अमला शंकर ने अपने संस्मरण ‘प्रेम का देवता में लिखा है-जिन-जिन कारणों से विदेशी भूमि में उनसे पहली भेंट हुई कितनी बंगाली लड़कियों के जीवन में वैसा घटित होता है! यहाँ तक कि वैसी घटना आज भी नहीं घटा करती-उनका मिल पाना सचमुच अपने समय से कहीं आगे की बात थी. अमला के पिता अक्षय कुमार नंदी का कलकत्ता में इकॉनॉमिक ज्यूलरी वर्क्स नाम से आभूषणों का कारखाना था. 1931 की बात है जब उन्हें फ्रांस की एक एक्सपो में अपने उत्पादों की प्रदर्शनी लगाने का न्यौता मिला. वे अपने समय के लिहाज से खासे प्रगतिशील आदमी रहे होंगे क्योंकि वे अपनी ग्यारह साल की बेटी को भी वहां ले कर गए.
इत्तफाकन समूचे यूरोप के कला-संसार में अपनी नृत्यकला का लोहा मनवा चुकने के बाद उदय शंकर भी उन दिनों फ्रांस में ही मौजूद थे और उन्हें उस एक्सपो में अपनी प्रस्तुति देने बुलाया गया था. उनके नृत्य को देखने के बाद एक बार मशहूर लेखक जेम्स जॉयस ने अपनी बेटी को लिखा था – वह स्टेज पर किसी अर्ध-देवता की तरह चलता है. मेरा यकीन मानो इस गरीब संसार में अब भी कुछ खूबसूरत चीजें बची हुई हैं.
अक्षय नंदी उदय शंकर के दोस्त थे. फ्रांस में दोनों की मुलाक़ात होनी ही थी. नृत्य कला सीख रही, ग्यारह साल की, फ्रॉक पहनने वाली लड़की तीस साल के उदय शंकर को पहली बार देख कर विस्मय से भर गयी थी. एक्सपो में अमला ने भी अपनी प्रस्तुति दी जिसे उदय शंकर ने देखा और कुछ दिनों बाद अक्षय नंदी से उसे अपनी नृत्य-मंडली के यूरोप टूर के लिए मांग लिया. अमला का जीवन पूरी तरह बदल गया. उदय शंकर की नृत्य-मंडली के साथ रहते हुए उसने यूरोप के सबसे बड़े नगरों में समकालीन कला के उत्कृष्टतम प्रारूपों से साक्षात्कार किया. वापस बंगाल आकर उसने महज तेरह साल की आयु में ‘सात सागरों के पार शीर्षक से अपना यूरोप-वृत्तान्त प्रकाशित किया. उदय शंकर सालों से यूरोप में ही बसे हुए थे.
फिर 1935 में एक बार कलकत्ता आने पर उदय शंकर ने तय किया कि अपनी फोर्ड गाड़ी से कलकत्ता से अल्मोड़ा की यात्रा की जाय. उस यात्रा में भी अमला को साथ जाने का मौक़ा मिला.तब तक अमला के मन में उदय शंकर के लिए देवतातुल्य सम्मान के साथ-साथ गहरा एकतरफा प्रेम भी अपनी जगह बना चुका था लेकिन उसके मन में, उसी के शब्दों में “रोमांस के साथ घुली-मिली लज्जा, दुविधा और कुछ-कुछ भय भी था. पहली वजह कि उदय शंकर उससे उन्नीस साल बड़े थे, दूसरे यह कि एक दिलफेंक आशिक के रूप में उनका अलग जलवा था जिसके आगे अमला ने एक से एक सुंदरियों को बिछते देख रखा था.
फ्रेंच पियानिस्ट सिमोन बार्बीयर, एलिस बोनर, बेयात्रीस एल्महर्स्ट खूबसूरत विदेशी महिलाओं के अलावा उदय शंकर के जीवन में अपनी ही मंडली की अनेक लड़कियों के साथ जाहिर सम्बन्ध थे. रविन्द्रनाथ टैगोर के कहने पर 1938 में उदय शंकर ने बेयात्रीस एल्महर्स्ट के रईस पिता से मिली मदद से अल्मोड़ा में एक महत्वाकांक्षी नृत्य अकादमी स्थापित की जिसमें देश-विदेश के नामी और प्रतिभाशाली कलाकार आ जुड़े – उस्ताद अलाउद्दीन खान, शंकरन नम्बूदिरी, आम्बी सिंह, गुरु दत्त, जोहरा सहगल, लक्ष्मी शंकर के अलावा इनमें सिमोन बार्बीयर भी थी जिसे उदय शंकर ने सिम्की नाम दे दिया था. सुभाष चन्द्र बोस की सिफारिश पर अल्मोड़ा लाई गयी अमला का भी नया नाम रख दिया गया था – अपराजिता. अल्मोड़ा के सिमतोला इलाके में चौदह बंगले किराए पर लिए गए और देश के सांस्कृतिक परिदृश्य को पूरी तरह बदल देने के सपने पर काम शुरू किया गया. 1939 में उदय शंकर ने सभी को आश्चर्यचकित करते हुए अमला शंकर से विवाह करने का फैसला लिया. उसी अमला से जो अपने बारे में सोचती थी – “मेरे जैसी काली, ठिगनी महिला ऐसे सुपुरुष को कभी छू भी सकती है, ऐसी कल्पना भी नहीं की जा सकती थी.
तीन-चार साल तक सब कुछ ठीकठाक चला, 1942 में अल्मोड़ा में उनके पुत्र आनंद का जन्म हुआ और इस अवधि में उदय शंकर के ड्रीम प्रोजेक्ट यानी फिल्म ‘कल्पना की स्क्रिप्ट लिखी गयी – गीत सुमित्रानंदन पन्त से लिखवाये गए. फिर पैसों की कमी के कारण अल्मोड़ा केंद्र बंद कर देना पड़ा. यह उदय शंकर के लिए गहरा धक्का था लेकिन अमला ने उन्हें सम्हाल लिया. उसके बाद ‘कल्पनाÓ पर काम शुरू हुआ – अमला ने उदयन बने उदय शंकर की नायिका उमा का रोल किया और फिल्म 1948 में रिलीज हुई. फिल्म बुरी तरह फ्लॉप रही. यह अलग बात है कि आज इसकी हिफाजत किसी बेशकीमती नगीने की तरह की जाती है और 2010 में मार्टिन स्कोर्सेसी की कंपनी वर्ल्ड सिनेमा फाउंडेशन ने इसके डिजिटल संरक्षण का जिम्मा उठाया.
बहरहाल व्यक्तिगत जीवन में उदय शंकर के साथ आने-जाने वाली स्त्रियों को किसी तरह बर्दाश्त करते हुए भी 1955 में अमला ने अपनी दूसरी संतान यानी ममता को जन्म दिया. उदय शंकर की आयु हो रही थी और वे अपनी कला के प्रसार के लिए एक बड़े संस्थान की स्थापना करना चाहते थे ताकि नृत्य का शंकर घराना बचा रहे. 1965 में ऐसा संस्थान अस्तित्व में आ भी गया. कलकत्ता में बनाए गए इस संस्थान में अमला शंकर को निर्देशक बनाया गया.
1968 में अमला के जीवन में एक और तूफ़ान आया. अड़सठ साल के उदय शंकर ने अमला शंकर को छोड़, आयु में अपने से बहुत छोटी, कलकत्ते के उसी केंद्र की एक छात्रा अनुपमा दास के साथ रहने का फैसला किया. इस हादसे को याद करते हुए अमला ने लिखा है – पता नहीं क्यों उदय शंकर में कैसी विचित्र दुर्बलता दिखाई देने लगी. इस दुर्बलता के साथ एक प्रकार का निरर्थक अहंकार बोध मिला हुआ था. मुझे पता था इसका फल उन दोनों के लिए अंतत: मंगल-जनक नहीं होगा. अंतिम दिनों में उदय शंकर ने इसके लिए पश्चाताप भी किया था लेकिन तब तक मेरे भीतर प्रेम के सम्बन्ध को लेकर गहरा अविश्वास पैदा हो चुका था.
उदय शंकर ने अपनी वसीयत में अपनी सारी धरोहर अनुपमा दास के नाम कर दी जिसमें ‘कल्पना का कॉपीराइट और ऐतिहासिक महत्त्व की अनगिनत चीजें थीं जिन्हें बाद के वर्षों में अनुपमा ने कौड़ियों के दाम बेच डाला. 1977 में हुई उदय शंकर की मृत्यु के बाद जब उनकी वसीयत को लेकर अनुपमा दास वाला विवाद चल रहा था, तो बात करते हुए उन्होंने कहा था -अगर उदय शंकर किसी ऐसी औरत के साथ गए होते जिसे उसकी कद्र होती तो मुझे ज़रा भी खराब न लगता. उनके जीवन में जोहरा थी,सिमकी थी, एलिस बोनर थी उन्हें हर किसी से प्रेम करने का अधिकार था. उनका व्यक्तित्व हर किसी को आकर्षित कर लेता था. अनुपमा दास उनकी सोहबत के लायक नहीं थी. उसने कभी उदय शंकर को परफॉर्म करते हुए नहीं देखा. वह उनके पैसे और शोहरत के लिए उनके नजदीक गयी.
जब तक शरीर में ताकत रही, अमला दास कलकत्ता के उस नृत्य संस्थान में अगले पचास वर्षों तक उदय शंकर घराने की नृत्य शैली को जीवित रखे रहीं. अमला को जानने वाले उन्हें शक्ति के ऐसे पुंज के रूप में याद रखते हैं जिसने 1999 में अपने बेटे आनंद की मौत के बाद भी नृत्य की कक्षाएं लेना बंद नहीं किया. 2012 में कान फिल्म फेस्टीवल में उन्हें ‘कल्पना के प्रदर्शन के लिए बुलाया गया. एक बेहद मशहूर लेकिन हरजाई पति के नाम की परछाई के साए तले 101 साल की उम्र पूरी करने के बाद 24 जुलाई 2020 को अमला शंकर खामोशी से इस दुनिया से विदा हो गईं.