-वीर विनोद छाबड़ा- बहुत अच्छे गीतकार हुआ करते थे पंडित भरत व्यास. उन्होंने अनेक यादगार गीत लिखे हैं. हिंदी सिनेमा उनकी देन सदैव याद रखेगा. पचास के साल उनके फ़िल्मी जीवन का सर्वश्रेष्ठ दौर रहा. लेकिन इस दौर में उनके साथ एक ऐसा वाक्या हुआ जो ट्रेजेडी बनने से बच गया. हुआ यों कि भरत व्यास का बेटा उनसे किसी बात से नाराज़ होकर घर छोड़ कर चला गया. उन्होंने उसे लाख ढूंढ़ा. धरती-आकाश और पाताल सब एक कर दिया. लेकिन वो न मिला. ज़मीन खा गई या आसमां निगल गया? आख़िर हो कहां पुत्र? तेरी सारी इच्छाएं और हसरतें सर आंखों पर. तू लौट तो आ. इस बाबत अखबारों में इश्तहार दिए. शहर-शहर की गली-गली में पोस्टर चस्पाये. मुनादी पिटवाई. सिनेमा हाल में स्लाईड चलवाईं. ज्योतिषियों, नजूमियों से पूछा. मज़ार, गुरद्वारे, चर्च और मंदिर में मत्था टेका. बहुत निराश हो गए भरत व्यास.
ज़िंदगी के सर्वश्रेष्ठ काल से कोई गुज़र रहा हो और उसके साथ ऐसा हो जाये तो ज़िंदगी ठहर जाती है. किसी काम में मन नहीं लगता. कुछ ऐसा भरत व्यास के साथ भी हुआ. ऐसे ही निराशा भरे दौर में ‘जन्म जन्म के फेरे’ (1957) के निर्देशक मनमोहन देसाई के सुझाव पर उन्होंने एक गीत लिखा – ज़रा सामने तो छलिये, छुप-छुप छलने में क्या राज़ है, यूँ छुप न सकेगा परमात्मा, मेरी आत्मा की यह आवाज़ है.… लेकिन बेटा नहीं लौटा. मगर भरत व्यास ने हिम्मत नहीं हारी. रानी रूपमती (1959) में उन्होंने एक और दर्द भरा गीत लिखा – आ लौट के आजा मेरे गीत तुझे मेरे गीत बुलाते हैं, मेरा सूना पड़ा संगीत तुझे मेरे गीत बुलाते हैं.… इस गीत में इतना दर्द था, इतनी कशिश थी कि बेटा रोक न सका अपने को. और वो लौट आया.
चुरू, से आये भरत व्यास ने 1943 में सिनेमा में पदार्पण किया था. बहुत संघर्ष करना पड़ा उन्हें. बेशुमार सुपर हिट गीत लिखे. उनके रचित कुछ अन्य गीत हैं – आधा है चंद्रमा रात आधी.… तू छुपी है कहां मैं तपड़ता यहां…(नवरंग)…निर्बल से लड़ाई भगवान की, यह कहानी है दिए और तूफ़ान की.… (तूफ़ान और दिया).…सारंगा तेरी याद में (सारंगा)…तुम गगन के चंद्रमा हो मैं धरा की धूल हूं.… (सती सावित्री)…ज्योत से ज्योत जलाते चलो.…(संत ज्ञानेश्वर)…हरी भरी वसुंधरा पे नीला नीला यह गगन, यह कौन चित्रकार है.…(बूँद जो बन गई मोती)… सैयां झूठों का बड़ा सरताज़ निकला…(दो आंखें बारह हाथ)…दीप जल रहा मगर रोशनी कहां…(अंधेर नगरी चौपट राजा)…दिल का खिलौना हाय टूट गया.… कह दो कोई न करे यहां प्यार …तेरे सुर और मेरे गीत.…(गूँज उठी शहनाई)…क़ैद में है बुलबुल, सैय्याद मुस्कुराये…(बेदर्द ज़माना क्या जाने) आदि. ये गाने आज भी बड़े मशहूर हैं. दो आँखें बारह हाथ में लिखा उनका यह गीत – ऐ मालिक तेरे बंदे हम.…कई साल तक अनेक स्कूलों में प्रार्थना गीत बना रहा. पाकिस्तानी स्कूलों में भी इस गीत को स्थान मिला.
मगर ट्रेजेडी यह रही कि बड़े-बड़े निर्माता-निर्देशकों के साथ काम करने के बावजूद भरत व्यास ज़्यादातर पौराणिक और कॉस्ट्यूम फिल्मों तक महदूद रहे. उनका जन्म 18 दिसंबर 1918 को हुआ था और 04 जुलाई 1982 को वो चुपचाप इस दुनिया से चले गए.
