पुण्य तिथि पर विशेष। संजोग वाॅल्टर। गीतादत्त को गुजरे 51 साल हो गये हैं, महज 42 साल की उम्र में दुनिया को उस वक्त अलविदा कहा जब उनके बच्चे छोटे थे,शौहर था उनकी जिन्दगी में जिसे उन्होंने कभी टूट कर चाहा था,शौहर दूसरी औरत के लिए पागल हो गया था,शौहर की खुदकुशी के बाद जिस दौलत और कम्पनी की मालियत उन्हें और उनके बच्चों को मिलनी थी वो सब कुछ उन्हें नहीं मिला शौहर के भाई सब ले गये, गम गलत करने के लिए शराब का सहारा लिया जब होश आया तीन बच्चों की जिम्मेदारी थी उनके कन्धों पर। तब तक बहुत देर हो चुकी थी,1950 के मध्य से ही कुछ न कुछ वजहों से वो फिल्मी दुनिया से धीरे धीरे अलग हो रही थी।
जिसने हरेक गाने को अपने अंदाज में गाया। नायिका, सहनायिका, खलनायिका, नर्तकी या रास्ते की बंजारिन, हर किसी के लिए अलग रंग और ढंग के गाने गाये। “नाचे घोड़ा नाचे घोड़ा, किम्मत इसकी बीस हजार मैं बेच रही हूँ बीच बाजार” आज से 67साल पहले बना हैं और फिर भी तरोताजा हैं। “आज की काली घटा” सुनते हैं तो लगता है सचमुच बाहर बादल छा गए हैं। तब लोग कहते थे गीता गले से नहीं दिल से गाती थी! गीता दत्त का नाम ऐसी पार्श्वगायिका के तौर पर याद किया जाता है जिन्होंने अपनी दिलकश आवाज की कशिश से लगभग तीन दशकों तक करोड़ों श्रोताओं को मदहोश किया।
फिल्म जगत में गीता दत्त (23 नवंबर 1930 में फरीदपुर शहर में जन्मी) के नाम से मशहूर गीता घोष राय चौधरी महज 12 वर्ष की थी तब उनका पूरा परिवार फरीदपुर (अब बंगलादेश) से 1942 में बम्बई (अब मुंबई) आ गया। उनके पिता देबेन्द्रनाथ घोष रॉय चौधरी जमींदार थे,गीता के कुल दस भाई बहन थे जमींदार थे। बचपन के दिनों से ही गीता राय का झान संगीत की ओर था और वह पार्श्वगायिका बनना चाहती थी। गीता राय ने अपनी संगीत की प्रारंभिक शिक्षा हनुमान प्रसाद से हासिल की।
गीता राय को सबसे पहले 1946 में भक्त प्रहलाद के लिए गाने का मौका मिला। गीता राय ने कश्मीर की कली, रसीली, सर्कस किंग (1946) कुछ फिल्मो के लिए भी गीत गाए लेकिन इनमें से कोई भी बॉक्स आफिस पर सफल नही हुई। इस बीच उनकी मुलाकात महान संगीतकार एस डी बर्मन से हुई। गीता रॉय मे एस डी बर्मन को फिल्म इंडस्ट्री का उभरता हुआ सितारा दिखाई दिया और उन्होंने गीता राय से अपनी अगली फिल्म दो भाई के लिए गाने की पेशकश की। 1947 में प्रदर्शित दो भाई गीता राय के सिने कैरियर की अहम फिल्म साबित हुई और इस फिल्म में उनका गाया यह गीत मेरा सुंदर सपना बीत गया। लोगों के बीच काफी लोकप्रिय हुआ। फिल्म दो भाई मे अपने गाये इस गीत की कामयाबी के बात बतौर पार्श्वगायिका गीता राय अपनी पहचान बनाने में सफल हो गई।
1951 गीता राय के सिने करियर के साथ ही व्यक्तिगत जीवन में भी एक नया मोड़ लेकर आया। फिल्म बाजी के निर्माण के दौरान उनकी मुलाकात निर्देशक गुरूदत्त से हुई। फिल्म के एक गाने तदबीर से बिगड़ी हुई तकदीर बना ले की रिर्काडिंग के दौरान गीता राय को देख गुरूदत्त फिदा हो गए। फिल्म बाजी की सफलता ने गीता राय की तकदीर बना दी और बतौर पार्श्व गायिका वह फिल्म इंडस्ट्री में स्थापित हो गई। गीता राय भी गुरूदत्त से प्यार करने लगी। 1953 में गीता राय ने गुरूदत्त से शादी कर ली। गीता राय से वो बन गयी थी गीता दत्त, साल 1956 गीता दत्त के सिने कैरियर में एक अहम पड़ाव लेकर आया। हावड़ा ब्रिज के संगीत निर्देशन के दौरान ओ पी नैयर ने ऐसी धुन तैयार की थी जो सधी हुयी गायिकाओं के लिए भी काफी कठिन थी। जब उन्होने गीता दत्त को “मेरा नाम चिन चिन चु” गाने को कहा तो उन्हे लगा कि वह इस तरह के पाश्चात्य संगीत के साथ तालमेल नहीं बिठा पायेंगी। लेकिन उन्होने इसे एक चुनौती की तरह लिया और इसे गाने के लिए उन्होंने पाश्चात्य गायिकाओ के गाये गीतों को भी बारीकी से सुनकर अपनी आवाज मे ढालने की कोशिश की और बाद में जब उन्होंने इस गीत को गाया तो उन्हें भी इस बात का सुखद अहसास हुआ कि वह इस तरह के गाने गा सकती है।
अपने जीवन में सौ से भी ज्यादा संगीतकारों के लिए गीता दत्त ने लगभग सत्रह सौ गाने गाये। अपनी आवाज के जादू से हमारी जिंदगियों में एक ताजगी और आनंद का अनुभव कराने के लिए संगीत प्रेमी गीता दत्त को हमेशा याद रखेंगे।गीता रॉय (दत्त) ने एक से बढ़कर एक खूबसूरत प्रेमगीत गाये हैं मगर जिनके बारे में या तो कम लोगों को जानकारी हैं या संगीत प्रेमियों को इस बात का शायद अहसास नहीं है।
1957 मे गीता दत्त और गुरूदत्त की विवाहित जिंदगी मे दरार आ गई। गुरूदत्त ने गीता दत्त के काम में दखल देना शुरू कर दिया। वह चाहते थे गीता दत्त केवल उनकी बनाई फिल्म के लिए ही गीत गाये। काम में प्रति समर्पित गीता दत्त तो पहले इस बात के लिये राजी नही हुयी लेकिन बाद में गीता दत्त ने किस्मत से समझौता करना ही बेहतर समझा। धीरे-धीरे अन्य निर्माता निर्देशको ने गीता दत्त से किनारा करना शुरू कर दिया।
कुछ दिनो के बाद गीता दत्त अपने पति गुरूदत्त के बढ़ते दखल को बर्दाशत न कर सकी और उसने गुरूदत्त से अलग रहने का निर्णय कर लिया। इस बात की एक मुख्य वजह यह भी रही कि उस समय गुरूदत्त का नाम अभिनेत्री वहीदा रहमान के साथ भी जोड़ा जा रहा था जिसे गीता दत्त सहन नही कर सकी। गीता दत्त से जुदाई के बाद गुरूदत्त टूट से गये और उन्होंने अपने आप को शराब के नशे मे डूबो दिया। 10 अक्तूबर 1964 को अत्यधिक मात्रा मे नींद की गोलियां लेने के कारण गुरूदत्त इस दुनियां को छोड़कर चले गए।
गुरूदत्त की मौत के बाद गीता दत्त को गहरा सदमा पहुंचा और उसने भी अपने आप को नशे में डुबो दिया। गुरूदत्त की मौत के बाद उनकी निर्माण कंपनी उनके भाइयो के पास चली गयी। गीता दत्त को न तो बाहर के निर्माता की फिल्मों मे काम मिल रहा था और न ही गुरूदत्त की फिल्म कंपनी में। इसके बाद गीता दत्त की माली हालत धीरे धीरे खराब होने लगी। कुछ वर्ष के पश्चात गीता दत्त को अपने परिवार और बच्चों के प्रति अपनी जिम्मेदारी का अहसास हुआ तरुण ( 1954), अरुण (1956),और नीना ( 1962) का भविष्य उनके सामने था और वह पुन फिल्म इंडस्ट्री में अपनी खोयी हुयी जगह बनाने के लिये संघर्ष करने लगी। “मंगेशकर बैरियर” भी सामने था लिहाजा वो दुर्गापूजा में होने वाले स्टेज कार्यकर्मों के लिए गा कर गुजर बसर करने लगी।
जमींदार घराने की गीता दत्त के आखिरी दिन मुफलिसी में गुजरे,1967 में रिलीज बंग्ला फिल्म बधू बरन में गीता दत्त को काम करने का मौका मिला जिसकी कामयाबी के बाद गीता दत्त कुछ हद तक अपनी खोयी हुयी पहचान बनाने में सफल हो गई। हिन्दी के अलावा गीता दत्त ने कई बांग्ला फिल्मों के लिए भी गाने गाए। इनमें तुमी जो आमार (हरनो सुर-1957), निशि रात बाका चांद (पृथ्वी आमार छाया-1957), दूरे तुमी आज (इंद्राणी-1958), एई सुंदर स्वर्णलिपिसंध्या (हॉस्पिटल 1960), आमी सुनचि तुमारी गान (स्वरलिपि-1961) जैसे गीत श्रोताओं के बीच आज भी लोकप्रिय है। सत्तर के दशक में गीता दत्त की तबीयत खराब रहने लगी और उन्होंने एक बार फिर से गीत गाना कम कर दिया। 1971 में रिलीज हुई अनुभव में गीता दत्त ने तीन गीत गाये थे,संगीतकार थे कनु राय ” कोई चुपके से आके” “मेरा दिल जो मेरा होता “”मेरी जान मुझे जान न कहो” इस फिल्म में काम करने के बाद वो बीमार रहने लगी आखिकार 20 जुलाई 1972 को इस दुनिया को अलविदा कह दिया।