-महान कलाकार हरि भाई ज़रीवाला उर्फ संजीव कुमार का नाम फिल्मजगत की आकाशगंगा में धुव्रतारे की तरह याद किया जाता है जिनके बेमिसाल अभिनय से सुसज्जित फिल्मों की रोशनी से बॉलीवुड हमेशा जगमगाता रहेगा.वे मूल रूप से गुजराती थे। उन्होंने नया दिन नयी रात फिल्म में नौ रोल किये थे। कोशिश में उन्होंने गूंगे बहरे व्यक्ति का शानदार अभिनय किया था। शोले फिल्म में ठाकुर का चरित्र उनके अभिनय से अमर हो गया।
संजीव कुमार का जन्म बम्बई अब मुंबई में 9 जुलाई 1938 को मध्यम वर्गीय गुजराती परिवार में हुआ था। इनका पैतृक निवास सूरत था, बाद में इनका परिवार बम्बई अब मुंबई आ गया. वह बचपन से हीं फिल्मों में बतौर अभिनेता काम करने का सपना देखा करते थे। फिल्म के प्रति जुनून इन्हें फिल्म उद्योग ले आया. अपने जीवन के शुरूआती दौर मे रंगमंच से जुड़े और बाद में उन्होंने फिल्मालय के एक्टिंग स्कूल में दाखिला लिया। इसी दौरान 1960 में उन्हें फिल्मालय बैनर की फिल्म हम हिन्दुस्तानी में छोटी सी भूमिका निभाने का मौका मिला। संजीव कुमार ने प्रेम कई बार किया था. इनका नाम हेमा मालिनी और सुलक्षना पंडित के साथ जुड़ा, इन्हें यह अन्धविश्वास था की इनके परिवार में बड़े पुत्र के 10 वर्ष का होने पर पिता की मृत्यु हो जाती है. इनके दादा, पिता, और भाई के साथ यह हो चुका था. संजीव कुमार ने अपने दिवंगत भाई के बेटे को गोद लिया और उसके दस वर्ष का होने पर उनकी मृत्यु हो गयी ! संजीव कुमार भोजन के बहुत शौक़ीन थे. बीस वर्ष की आयु में गरीब माध्यम वर्ग के इस युवा ने रंगमच में कम करना शुरू किया. इन्होने छोटी भूमिकाओ से कोई परहेज नहीं किया. सितारा हो जाने के बावजूद भी उन्होंने कभी नखरे नहीं किये. इन्होने जया बच्चन के स्वसुर, प्रेमी, पिता, पति की भूमिकाएँ भी निभाई. जब लेखक सलीम ख़ान ने इनसे त्रिशूल में अपने समकालीन अमिताभ बच्चन और शशि कपूर के पिता की भूमिका निभाने का आग्रह किया तो उन्होंने बेझिजक यह भूमिका इस शानदार ढंग से निभाई की उन्हें ही केंद्रीय पत्र मान लिया गया. इन्होंने बीस वर्ष की आयु में वृद्ध आदमी की भूमिका इतनी खूबी से निभाई कि पृथ्वीराज कपूर देखकर दंग रह गए. 1962 में राजश्री प्रोडक्शन की निर्मित फिल्म आरती के लिए उन्होंने स्क्रीन टेस्ट दिया जिसमें वह पास नही हो सके। इसके बाद उन्हें कई बी-ग्रेड फिल्में मिली। इन महत्वहीन फिल्मों के बावजूद अपने अभिनय के जरिये उन्होंने सबका ध्यान आकर्षित किया।
मुख्य अभिनेता के रूप में संजीव कुमार को 1965 में प्रदर्शित फिल्म निशान में काम करने का मौका मिला। 1960 से 1968 तक संजीव कुमार फिल्म इंडस्ट्री में अपनी जगह बनाने के लिए संघर्ष करते रहे। हम हिंदुस्तानी के बाद उन्हें जो भी भूमिका मिली वह उसे स्वीकार करते चले गए। इस बीच उन्होंने स्मगलर, पति-पत्नी, हुस्न और इश्क, बादल, नौनिहाल और गुनहगार कई फिल्मों में अभिनय किया लेकिन इनमें से कोई भी फिल्म बॉक्स ऑफिस पर सफल नहीं हुई। 1968 में प्रदर्शित फिल्म शिकार में वह पुलिस ऑफिसर की भूमिका में दिखाई दिए। यह फिल्म पूरी तरह अभिनेता धर्मेन्द्र पर केन्द्रित थी फिर भी सजीव कुमार धर्मेन्द्र की उपस्थिति में अपने अभिनय की छाप छोड़ने में कामयाब रहे। इस फिल्म में उनके दमदार अभिनय के लिए उन्हें सहायक अभिनेता का फिल्म फेयर अवार्ड भी मिला। 1968 में प्रदर्शित फिल्म संघर्ष में उनके सामने हिन्दी फिल्म जगत के अभिनय सम्राट दिलीप कुमार थे लेकिन संजीव कुमार अपनी छोटी सी भूमिका के जरिए दर्शकों की वाहवाही लूट ली। एच.एस.रवैल की ‘संघर्ष’ में दिलीप कुमार की बाँहों में दम तोड़ने का दृश्य इतना शानदार किया की अभिनय सम्राट भी सकते में आ गए । आशीर्वाद, राजा और रंक, सत्याकाम और अनोखी रात जैसी फिल्मों में मिली कामयाबी के जरिए संजीव कुमार दर्शकों के बीच अपने अभिनय की धाक जमाते हुए ऐसी स्थिति में पहुंच गए जहां वह फिल्म में अपनी भूमिका स्वयं चुन सकते थे।
1970 में प्रदर्शित फिल्म खिलौना की जबर्दस्त कामयाबी के बाद संजीव कुमार बतौर अभिनेता अपनी अलग पहचान बना ली। 1970 में ही प्रदर्शित फिल्म दस्तक में उनके लाजवाब अभिनय के लिए वह सर्वश्रेष्ठ अभिनेता के राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित कि या गया। 1972 में प्रदर्शित फिल्म कोशिश में उनके अभिनय का नया आयाम दर्शकों को देखने को मिला। फिल्म कोशिश में गूंगे की भूमिका निभाना किसी भी अभिनेता के लिए बहुत बड़ी चुनौती थी। बगैर संवाद बोले सिर्फ आंखों और चेहरे के भाव से दर्शकों को सब कुछ बता देना संजीव कुमार की अभिनय प्रतिभा का ऐसा उदाहरण था जिसे शायद ही कोई अभिनेता दोहरा पाए। इन्होंने दिलीप कुमार के साथ संघर्ष (1968) फिल्म में काम किया. फिल्म खिलौना ने इन्हें स्टार का दर्जा दिलाया. इसके बाद इनकी हिट फिल्म सीता और गीता (1972) और मनचली (1973) प्रदर्शित हुईं.70 के दशक में इन्होने गुलज़ार के साथ काम किया. इन्होने गुलज़ार के साथ कुल 9 फिल्मे की जिनमे आंधी (1975), मौसम (1975), अंगूर (1982), नमकीन (1982) प्रमुख है. इनके कुछ प्रशंसक इन फिल्मों को इनकी सर्वश्रेष्ठ फिल्मो में से मानते है. फिल्म शोले (1975) में इनसे अभिनीत पात्र ठाकुर आज भी लोगो के दिलो में ज़िंदा है .संजीव कुमार के दौर में राजेश खन्ना, अमिताभ बच्चन, धर्मेन्द्र, शम्मी कपूर, दिलीप कुमार छाए हुए थे, लेकिन अपने सशक्त अभिनय से उन्होंने अपना स्थान बनाया।
संजीव कुमार कुंवारे रहे और 47 वर्ष की आयु में 6 नवम्बर 1985 को हृदय गति के रुक जाने से इनकी मृत्यु हुई । एजेंसी।