अवनींद्रनाथ टैगोर ‘इंडियन सोसाइटी ऑफ़ ओरिएण्टल आर्ट’ के मुख्य चित्रकार और संस्थापक थे। भारतीय कला में स्वदेशी मूल्यों के वे पहले सबसे बड़े समर्थक थे। इस प्रकार उन्होंने ‘बंगाल स्कूल ऑफ़ आर्ट’ की स्थापना में अति प्रभावशाली भूमिका निभाई, जिससे आधुनिक भारतीय चित्रकारी का विकास हुआ। एक चित्रकार के साथ-साथ वे बंगाली बाल साहित्य के प्रख्यात लेखक भी थे। वे ‘अबन ठाकुर’ के नाम से प्रसिद्ध थे और उनकी पुस्तकें जैसे राजकहानी, बूड़ो अंगला, नलक, खिरेर पुतुल बांग्ला बाल-साहित्य में महत्त्वपूर्ण स्थान रखती हैं।
ब्रिटिश शासन के दौरान आर्ट स्कूलों में पढ़ाये जाने वाले पश्चिमी चित्रकला शैली के प्रभाव को रोकने के लिए उन्होंने मुग़ल और राजपूत शैली की पेंटिंग्स में आधुनिकता लाने का प्रयास किया, जिसके परिणामस्वरूप एक भारतीय शैली की कला का अभ्युदय हुआ जिसे हम ‘बंगाल स्कूल ऑफ़ आर्ट’ के नाम से जानते हैं। अबनिन्द्र की कला इतनी सफल हुई कि ‘ब्रिटिश कला संस्थानों’ में उसे ‘राष्ट्रवादी भारतीय कला’ के नाम से प्रोत्साहित किया गया।
उनकी शैली ने बाद के कई चित्रकारों को प्रभावित किया प्रमुख हैं – नंदलाल बोस, असित कुमार हलधर, क्षितिन्द्रनाथ मजुमदार, मुकुल डे, मनीषी डे और जामिनी रॉय।
अवनींद्रनाथ टैगोर का जन्म प्रसिद्ध ‘टैगोर परिवार’ में कलकत्ता अब कोलकता के जोरासंको में 7 अगस्त 1871 में हुआ था। उनके दादा का नाम गिरिन्द्रनाथ टैगोर था जो द्वारकानाथ टैगोर के दूसरे पुत्र थे। वे गुरु रविंद्रनाथ टैगोर के भतीजे थे। उनके दादा और बड़े भाई गगनेन्द्रनाथ टैगोर भी चित्रकार थे। उन्होंने कोलकाता के संस्कृति कॉलेज में अध्ययन के दौरान चित्रकारी सीखी। 1890 में उन्होंने कलकत्ता स्कूल ऑफ़ आर्ट में दाखिला लिया जहाँ उन्होंने यूरोपिय शिक्षकों जैसे ओ.घिलार्डी से पेस्टल का प्रयोग और चार्ल्स पामर से तैल चित्र बनाना सीखा। 1889 में उनका विवाह सुहासिनी देवी से हुआ जो भुजगेन्द्र भूषण चटर्जी की पुत्री थीं। लगभग 9 साल के अध्यन के बाद उन्होंने संस्कृति कॉलेज छोड़ दिया और कोलकाता के सेंट जेविएर्स कॉलेज में एक साल तक अंग्रेजी की पढ़ाई की।
उनकी एक बहन भी थी जिसका नाम सुनयना देवी था। पेंटिंग के अलावा उन्होंने बच्चों के लिए कई कहानियां भी लिखीं और ‘अबन ठाकुर’ के नाम से प्रसिद्ध हुए।
1897 के आस-पास उन्होंने कोलकाता के गवर्नमेंट स्कूल ऑफ़ आर्ट के उप-प्रधानाचार्य और इतालवी चित्रकार सिग्नोर गिल्हार्दी से चित्रकारी सीखना प्रारंभ किया। उन्होंने उनसे कास्ट ड्राइंग, फोलिअगे ड्राइंग, पस्टेल इत्यादि सीखा। इसके बाद उन्होंने ब्रिटिश चित्रकार चार्ल्स पाल्मर के स्टूडियो में लगभग 3 से 4 साल तक काम करके तैल चित्र और छायाचित्र में निपुणता हासिल की। इसी दौरान उन्होंने कई प्रतिष्ठित व्यक्तियों के तैल चित्र बनाये और ख्याति अर्जित की। कलकत्ता स्कूल ऑफ़ आर्ट के प्रधानाचार्य इ.बी. हैवेल उनके काम से इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने अवनीन्द्रनाथ को उसी स्कूल में उप-प्रधानाचार्य के पद का प्रस्ताव दे दिया। इसके बाद अवनीन्द्रनाथ ने कला और चित्रकारी के कई शैलियों पर काम किया और निपुणता हासिल की। हैवेल के साथ मिलकर उन्होंने कलकत्ता स्कूल ऑफ़ आर्ट में शिक्षण को पुनर्जीवित और पुनः परिभाषित करने की दिशा में कार्य किया। इस कार्य में उनके बड़े भाई गगनेन्द्रनाथ टैगोर ने भी उनकी बहुत सहायता की। उन्होंने विद्यालय में कई महत्वपूर्ण परिवर्तन किये – विद्यालय के दीवारों से यूरोपिय चित्रों को हटाकर मुग़ल और राजपूत शैली के चित्रों को लगवाया और ‘ललित कला विभाग’ की स्थापना भी की।
उन्होंने पश्चिम की भौतिकतावाद कला को छोड़ भारत के परंपरागत कलाओं को अपनाने पर जोर दिया। सन 1930 में बनाई गई ‘अरेबियन नाइट्स’ श्रृंखला उनकी सबसे महत्पूर्ण उपलब्धि थी। वे मुग़ल और राजपूत कला शैली से बहुत प्रभावित थे। धीरे-धीरे वे कला के क्षेत्र में दूसरे महत्वपूर्ण व्यक्तियों के संपर्क में भी आये। इनमें शामिल थे जापानी कला इतिहासविद ओकाकुरा काकुजो और जापानी चित्रकार योकोयामा टाय्कन। इसका परिणाम यह हुआ कि अपने बाद के कार्यों में उन्होंने जापानी और चीनी सुलेखन पद्धति को अपनी कला में एकीकृत किया।
अबनिन्द्रनाथ टैगोर के शिष्यों में प्रमुख थे नंदलाल बोस, कालिपद घोषाल, क्षितिन्द्रनाथ मजुमदार, सुरेन्द्रनाथ गांगुली, असित कुमार हलधर, शारदा उकील, समरेन्द्रनाथ गुप्ता, मनीषी डे, मुकुल डे, के. वेंकटप्पा और रानाडा वकील। लन्दन के प्रसिद्ध चित्रकार, लेखक और बाद में लन्दन के ‘रॉयल ‘कॉलेज ऑफ़ आर्ट’ के अध्यक्ष विलियम रोथेनस्टीन से उनकी जीवन-पर्यान्त मित्रता रही। वे सन 1910 में भारत आये और लगभग 1 साल तक भारत भ्रमण किया और कोलकाता में अबनिन्द्रनाथ के साथ चित्रकारी की और बंगाली कला शैली के तत्वों को अपने शैली में समाहित करने की कोशिश की।
1913 में उनके चित्रों की प्रदर्शनी लन्दन और पेरिस में लगायी गयी। उसके बाद उन्होंने 1919 में जापान में अपनी कला की प्रदर्शनी लगाई। 1951 में उनकी मृयु के उपरान्त उनके सबसे बड़े पुत्र तोपू धबल ने अबनिन्द्रनाथ टैगोर के सभी चित्रों को नव-स्थापित ‘रबिन्द्र भारती सोसाइटी ट्रस्ट’ को दे दिया। इस प्रकार यह सोसाइटी उनके द्वारा बनाये गए चित्रों की बड़ी संख्या की संग्रहक बन गई।
अबनिन्द्रनाथ टैगोर के बारे में एक दिलचस्प बात कम लोगों को ही ज्ञात होगी कि रविंद्रनाथ टैगोर को अंतर्राष्ट्रीय ख्याति मिलने ने से भी पहले अबनिन्द्र का नाम यूरोप में एक प्रतिष्ठित चित्रकार के तौर पर स्थापित हो चुका था और अबनिन्द्र और उनके बड़े भाई गगनेन्द्रनाथ के ब्रिटिश और यूरोपिय मित्रों ने ही रविंद्रनाथ टैगोर को अपनी प्रसिद्ध पुस्तक ‘गीतांजलि’ को अंग्रेजी में प्रकाशित करने के लिए प्रोत्साहित किया।
अबनिन्द्रनाथ टैगोर एक चित्रकार के अलावा एक प्रसिद्ध साहित्यकार भी थे। उन्होंने बंगला भाषा में बाल-साहित्य का सृजन किया। क्षिरेर पुतुल, बुरो अंगला, राज कहानी और शकुंतला उनकी कुछ प्रमुख कहानियों में से हैं। उनकी दूसरी महत्वपूर्ण रचनाएँ थीं अपन्कथा, घरोया, पथे विपथे, जोरासंकोर धरे, भुतापत्री, नलका और नहुष। उन्होंने कला दर्शन और सिद्धांत पर कई लेख लिखे जिससे उन्हें कलाकारों और विद्वानों से प्रशंसा मिली। 5 दिसम्बर 1951 को उनका स्वर्गवास हो गयाथा । एजेंसी