04 अगस्त, 1956 को एशिया का पहला परमाणु रिएक्टर अप्सरा भाभा अनुसंधान केंद्र के ट्रांबे परिसर में शुरू कर भारत एक बार में एक मेगावाट थर्मल बिजली तैयार करने लगा था। 53 वर्ष तक काम करने के बाद 2009 में इसे बंद कर दिया गया और उन्नत वर्जन (अप्सरा-यू) 2018 में लांच किया गया। अब यह दो मेगावाट तक थर्मल बिजली उत्पादन की क्षमता रखता है।
देश को अप्सरा की सौगात देने में भारतीय परमाणु ऊर्जा के जनक डा. होमी जहांगीर भाभा को सबसे अधिक तकनीकी मदद बीएचयू के भौतिक विज्ञानी प्रो. एएस राव ने ही की थी। प्रो. राव का जन्म आंध्र प्रदेश के पश्चिम गोदावरी जिले में एक गरीब परिवार में हुआ था। उन्हें न्यूक्लियर फिजिक्स का महान विज्ञानी बनाने में बीएचयू में भौतिक विज्ञान विभाग स्थापित करने वाले प्रो. वी दासनचर्या की महत्वपूर्ण भूमिका थी।
1946 में बीएचयू में शोधकार्य के दौरान उन्हें प्रतिष्ठित टाटा स्कालरशिप मिली और वह अमेरिका की स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी चले गए। शोध पूरा कर बीएचयू लौट आए। कास्मिक किरणों व नाभिकीय ऊर्जा पर किए गए प्रो. राव के शोध से डा. भाभा इतना प्रभावित हुए कि अपनी परमाणु ऊर्जा की टीम में शामिल कर लिया। 1953 में परमाणु ऊर्जा विभाग का गठन हुआ और प्रो. राव उसके प्रमुख सदस्य बने। उन्होंने अप्सरा की डिजाइनिंग और सुरक्षा के मानकों की मानिटरिंग की।
प्रो. राव ने बीएचयू से भौतिकी में स्नातक और 1939 में एमएससी की। इसके बाद बीएचयू में भौतिकी के व्याख्याता नियुक्त हुए और 1946 तक परमाणु कार्यक्रम पर शोध और अनुसंधान करते रहे। बीएचयू में उन्हें महामना पं. मदन मोहन मालवीय के साथ ही महात्मा गांधी, जवाहरलाल नेहरू और रवींद्रनाथ टैगोर से विचारों को साझा करने का अवसर मिला और वह अपनी वैज्ञानिक सोच को राष्ट्रीयता के साथ जोड़ पाए।एजेंसी