अमेरिका द्वारा 9 अगस्त 1945 को दक्षिणी जापान के बन्दरगाह नगर नागासाकी पर 6.4 किलो. का प्लूटोनियम-239 वाला ‘फैट मैन’ नाम का बम गिराया गया था। इससे पहले 6 अगस्त को अमेरिका द्वारा ही जापान के हिरोशिमा शहर पर ‘लिटिल बॉय’ नाम का यूरेनियम बम गिराया जा चुका था। इससे लगभग एक लाख चालीस हज़ार लोग मारे गए थे। जब नागासाकी पर प्लूटोनियम परमाणु बम गिराया गया, तब 43 सेकण्ड के बाद ज़मीन से 1,540 फीट की ऊँचाई पर यह बम फटा और इससे 21 किलोटन टी.एन.टी. के बराबर धमाका हुआ। परिणामस्वरूप 3,900 डिग्री सेल्सियस की ऊष्मा उत्पन्न हुई और हवा की गति 1005 कि.मी. प्रति घण्टे तक पहुँच गयी। इससे तत्काल हुई मौतों की संख्या का अनुमान 40,000 से 75,000 के बीच था। 1945 के अन्त तक यह आँकड़ा 80,000 तक जा पहुँचा।
नागासाकी अमेरिका के निशाने पर नहीं था, लेकिन अमेरिका के तत्कालीन युद्धमंत्री स्टिम्सन के कहने पर जापान की पुरानी राजधानी क्योतो का नाम संभावित शहरों की सूची से हटा कर उसकी जगह नागासाकी का नाम शामिल कर लिया गया। स्टिम्सन ने अपनी पत्नी के साथ क्योतो में कभी हनीमून मनाया था और वे नहीं चाहते थे कि वह मटियामेट हो जाए। वहीं दूसरी तरफ अमेरिका के जनरल ड्वाइट आइज़नहावर जैसे सैनिक अफ़सर और लेओ ज़िलार्द जैसे भौतिकशास्त्री इस बम के विरुद्ध थे। उनका कहना था कि इससे सोवियत संघ के साथ परमाणु हथियारों की घातक होड़ चल पडेगी। उनका यह भी मानना था कि यूरोप में जर्मनी की पराजय के बाद से जापान इतना कमज़ोर हो गया था कि देर-सवेर वह अपने आप घुटने टेकने ही वाला था। लेकिन, राष्ट्रपति ट्रूमैन और उनके सलाहकार जापान पर परमाणु बम गिराने के अपने इरादे पर अटल रहे। उनका कहना था कि दो अरब डॉलर लगा कर इन बमों का विकास क्या इसलिए किया गया है कि उनका कभी इस्तेमाल ही न हो! तर्क दिया गया कि इन बमों की मार से जापान जल्द ही आत्मसमर्पण कर देगा और अमेरिकी सैनिकों का कटना-मरना बंद हो जाएगा। अमेरिका के लिए अपने सैनिकों की यह अतिरिक्त चिंता जापानी सैनिकों के उस जीवट से भी निकली थी, जिसके बूते उन्होंने जुलाई, 1945 में ओकीनावा की लड़ाई में 12,500 अमेरिकी सैनिकों का सफाया कर दिया था। तब तक पूरे प्रशांत महासागरीय क्षेत्र में करीब 70 000 अमेरिकी सैनिक मारे जा चुके थे।एजेंसी।