जोसेफ़ बैपटिस्टा प्रसिद्ध राजनीतिज्ञ, अधिवक्ता तथा लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक के घनिष्ठ मित्र तथा प्रशंसक थे। इन्होंने तिलक पर लगाये गए राजद्रोह का मुक़दमा लड़ा था, जिस कारण इन्हें काफ़ी प्रसिद्धि मिली थी। जोसेफ़ बैपटिस्टा को 1925 में बम्बई का मेयर चुना गया था।
जोसेफ़ बैपटिस्टा का जन्म 17 मार्च, 1864 में मझगांव,में हुआ था। इनके पिता का नाम जॉन बैपटिस्टा था। इन्होंने अपनी प्रारम्भिक स्कूली शिक्षा सेंट मेरी हाई स्कूल, मज़गाँव से पाई थी। इसके बाद आगे की शिक्षा के लिए इन्होंने पूना अब पुणे के इंजीनियरिंग कॉलेज में प्रवेश लिया। पूना अब पुणे से सिविल इंजीनियर की डिग्री लेने के बाद जोसेफ़ बैपटिस्टा ने 7 वर्ष बम्बई में सरकारी नौकरी की, फिर 1894 में क़ानून की शिक्षा प्राप्त करने के ले वे इंग्लैण्ड चले गए। इसके बाद स्वदेश लौट कर उन्होंने 1899 में बम्बई हाईकोर्ट में वकालत शुरू की।
सरकार द्वारा लोकमान्य तिलक पर जब राजद्रोह का मुक़दमा चला तो उनका मुक़दमा लड़ने के कारण जोसेफ़ बैपटिस्टा की बड़ी ख्याति हुई। आगे चलकर वे सक्रिय राजनीति में भी हिस्सा लेने लगे। लोकमान्य तिलक ने जो ‘इंडियन होमरूल लीग’ बनाई, उसके प्रथम अध्यक्ष जोसेफ़ बैपटिस्टा ही थे। 1924 में वे बम्बई लेजेस्लेटिव कौंसिल के सदस्य भी चुने गए।
मज़दूर संगठन से जोसेफ़ का निकट का संबंध रहा था। 1917 में डाक कर्मचारियों की पहली हड़ताल का नेतृत्व उन्होंने ही किया था। लाला लाजपत राय के साथ मिलकर उन्होंने ‘ऑल इंडिया लेबर कांग्रेस’ की स्थापना की थी। राष्ट्रसंघ द्वारा जिनेवा में आयोजित अंतर्राष्ट्रीय श्रमिक सम्मेलन में उन्होंने भारत का प्रतिनिधित्व किया। जोसेफ़ बैपटिस्टा भारतीय ईसाइयों के लिए पृथक् निर्वाचन व्यवस्था के कट्टर विरोधी थे।
जीवन के अंतिम दिनों में जोसेफ़ बैपटिस्टा अपने समुदाय के पत्र ‘ईस्ट इंडिया जरनल’ का संपादन करने लगे थे। 18 सितंबर, 1930 को उनका देहांत हो गया था । एजेन्सी