पुण्य तिथि पर विशेष। जगजीत सिंह गजलों की दुनिया के बादशाह और अपनी सहराना आवाज से लाखों-करोड़ों सुनने वालों के दिलों पर राज करने वाले प्रसिद्ध गजल गायक थे। खालिस उर्दू जानने वालों की मिल्कियत समझी जाने वाली.. नवाबों, रक्कासाओं की दुनिया में झनकती और शायरों की महफिलों में वाह-वाह की दाद पर इतराती गजलों को आम आदमी तक पहुंचाने का श्रेय अगर किसी को जाता है तो वह जगजीत सिंह हैं। उनकी गजलों ने न सिर्फ उर्दू के कम जानकारों के बीच शेरो-शायरी की समझ में इजाफा किया बल्कि गालिब, मीर, मजाज, जोश और फिराक जैसे शायरों से भी उनका परिचय कराया। हिंदी, उर्दू, पंजाबी, भोजपुरी सहित कई जबानों में गाने वाले जगजीत सिंह को 2003 में भारत सरकार के सर्वोच्च नागरिक सम्मानों में से एक पद्मभूषण से नवाजा गया है।
जगजीत जी का जन्म 8 फरवरी, 1941 को राजस्थान के गंगानगर में हुआ था। पिता सरदार अमर सिंह धमानी भारत सरकार के कर्मचारी थे। जगजीत जी का परिवार मूलतः पंजाब के रोपड़ जघ्लि के दल्ला गाँव का रहने वाला है। माँ बच्चन कौर पंजाब के ही समरल्ला के उट्टालन गाँव की रहने वाली थीं। जगजीत का बचपन का नाम जीत था। करोड़ों सुनने वालों के चलते सिंह साहब कुछ ही दशकों में जग को जीतने वाले जगजीत बन गए। शुरुआती शिक्षा गंगानगर के खालसा स्कूल में हुई और बाद पढ़ने के लिए जालंधर आ गए। डीएवी कॉलेज से स्नातक की डिग्री ली और इसके बाद कुरूक्षेत्र विश्वविद्यालय से इतिहास में पोस्ट ग्रेजुएशन भी किया। बचपन में अपने पिता से संगीत विरासत में मिला। गंगानगर मे ही पंडित छगन लाल शर्मा के सानिध्य में दो साल तक शास्त्रीय संगीत सीखने की शुरुआत की। आगे जाकर सैनिया घराने के उस्ताद जमाल खान साहब से ख्याल, ठुमरी और धु्रपद की बारीकियां सीखीं। पिता की ख्वाहिश थी कि उनका बेटा भारतीय प्रशासनिक सेवा (आईएएस) में जाए लेकिन जगजीत पर गायक बनने की धुन सवार थी। कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय में पढ़ाई के दौरान संगीत मे उनकी दिलचस्पी देखकर कुलपति प्रोफेसर सूरजभान ने जगजीत सिंह जी को काफी उत्साहित किया। उनके ही कहने पर वे 1965 में मुंबई आ गए। जगजीत सिंह पेइंग गेस्ट के तौर पर रहा करते थे और विज्ञापनों के लिए जिंगल्स गाकर या शादी समारोह वगैरह में गाकर रोजी रोटी का जुगाड़ करते रहे। यहाँ से संघर्ष का दौर शुरू हुआ। इसके बाद फिल्मों में हिट संगीत देने के सारे प्रयास बुरी तरह नाकामयाब रहे।
कुछ साल पहले डिंपल कापडिया और विनोद खन्ना अभिनीत फिलम लीला का संगीत औसत दर्जे का रहा। 1994 में खु़दाई, 1989 में बिल्लू बादशाह, 1989 में कानून की आवाज, 1987 में राही, 1986 में ज्वाला, 1986 में लौंग दा लश्कारा, 1984 में रावण और 1982 में सितम के न गीत चले और न ही फिल्में। 1981 में रमन कुमार निर्देशित ‘प्रेमगीत’ और 1982 में महेश भट्ट निर्देशित अर्थ को भला कौन भूल सकता है। अर्थ में जगजीत जी ने ही संगीत दिया था। फिल्म का हर गाना लोगों की जुबान पर चढ़ गया था। ये सारी फिल्में उन दिनों औसत से कम दर्जे की फिल्में मानी गईं।
1967 में जगजीत जी की मुलाकात चित्रा जी से हुई। दो साल बाद दोनों 1969 में परिणय सूत्र में बंध गए। 1961 में मुंबई का रुख किया लेकिन कोई सफलता न मिलने पर वापस जालंधर की राह पकड़ी। 1965 फिर मायानगरी में किस्मत आजमाने पहुँचे तो एमएमवी ने दो गजलें रिकॉड कराई। 1967 विज्ञापन फिल्मों और वृत्त चित्रों के लिए रिकॉडिंग करने के दौरान चित्रा सेन से मिले। 1970 चित्रा से शादी रचाई, संगीत घराने से ताल्लुक रहने वाली चित्रा का यह दूसरा विवाह था। 1975 चएमवी ने जगजीत सिंह और चित्रा का पहला एलबम द अनफॉरगेटेबल्स निकाला। 1980इस दशक में एलबम और कंसर्ट का आयोजन बढ़ा और फिल्मों में भी सफलता मिली। 1987 डिजिटल सीडी एलबम बियोंड टाइम करने वाले पहले भारतीय संगीतकार बने। 1990 इकलौते बेटे विवेक (18 वर्ष) की सड़क हादसे में हुई मौत ने जीवन में दर्द भर दिया। 2009 में चित्रा सिंह की पहली शादी से हुई बेटी मोनिका चौधरी (49 वर्ष) की आयु में आत्महत्या कर ली थी।
जाहिर है कि जगजीत सिंह ने बतौर कमजोर बहुत पापड़ बेले लेकिन वे अच्छे फिल्मी गाने रचने में असफल ही रहे। कुछ हिट फिल्मी गीत ये रहे-‘प्रेमगीत’ का ‘होठों से छू लो तुम मेरा गीत अमर कर दो’ ‘खलनायक’ का ‘ओ मां तुझे सलाम’ ‘दुश्मन’ का ‘चिट्ठी ना कोई संदेश’ ‘जॉगर्स पार्क’ का ‘बड़ी नाजुक है ये मंजिल’ ‘साथ-साथ’ का ‘ये तेरा घर, ये मेरा घर’ और ‘प्यार मुझसे जो किया तुमने’ ‘सरफरोश’ का ‘होशवालों को खबर क्या बेखुदी क्या चीज है’ ट्रैफिक सिगनल का ‘हाथ छुटे भी तो रिश्ते नहीं छूटा करते’ (फिल्मी वर्जन) ‘तुम बिन’ का ‘कोई फरयाद तेरे दिल में दबी हो जैसे’ ‘वीर जारा’ का ‘तुम पास आ रहे हो’ (लता जी के साथ) ‘तरकीब’ का ‘मेरी आंखों ने चुना है तुझको दुनिया देखकर’।एजेन्सी।