पुण्य तिथि पर विशेष। एजेंसी। उमर खय्याम का नाम फ़ारसी रुबाइयों में काफी मशहूर है.रुबाई चार लाइनों की कविता को कहते हैं. इस ईरानी कवि को दुनिया एक अच्छे साहित्यकार के रूप में जानती है. लेकिन उसके व्यक्तित्व का दूसरा पहलू ये है की वह एक महान गणितज्ञ, खगोलशास्त्री और फिलास्फर भी थे। इनका जन्म उत्तर-पूर्वी फ़ारस के निशाबुर (निशापुर) में ग्यागरहीं सदी में एक ख़ेमा (तंबू) बनाने वाले परिवार में हुआ था। (18 मई 1048 -4 दिसंबर 1131 )इन्होंने इस्लामी ज्योतिष को एक नई पहचान दी और इसके सुधारों के कारण सुल्तान मलिकशाह का पत्रा (तारीख़-ए-मलिकशाही), जलाली संवत या सेल्जुक संवत का आरंभ हुआ। इनकी रुबाईयों (चार पंक्तियों में लिखी एक प्रकार की कविता) को विश्व स्तरीय करने में अंग्रेज़ी कवि एडवर्ड फ़िज़्ज़ेराल्ड का बहुत योगदान रहा है।
खय्याम ने ज्यामिति बीजगणित की स्थापना की, जिसमें उसने अल्जेब्रिक समीकरणों के ज्यामितीय हल प्रस्तुत किये। इसमें हाइपरबोला तथा वृत्त जैसी ज्यामितीय रचनाओं द्बारा क्यूबिक समीकरण का हल शामिल है। उसने अलजेब्रा में व्यापक द्विघात समीकरण का भी विचार दिया। खगोलशास्त्र में कार्य करते हुए उमर खय्याम ने एक सौर वर्ष की दूरी दशमलव के छः स्थानों तक शुद्ध प्राप्त की। इस आधार पर उसने एक नए कैलेंडर का आविष्कार किया। उस समय की ईरानी हुकूमत ने इसे जलाली कैलेंडर के नाम से लागू किया। वर्तमान ईरानी कैलंडर जलाली कैलेंडर का ही एक मानक रूप है।
रुबाई चार पंक्तियों की कविता है जिसकी पहली दो और चौथी पंक्तियाँ तुकात्मक होती है. साधारण जनता के बीच, और इसमें प्रायः ऐसे लोग अधिक हैं जिन्होंने उमर खैयाम की कविता स्वयं नहीं पढ़ी, बस यदा-कदा दूसरों से उसकी चर्चा सुनी है, या कभी उसके भावों को व्यक्त करने वाले चित्रों को उड़ती नज़र से देखा है, कवि की एक और ही तसवीर घर किए हुए है। उनके ख़याल में उमर खैयाम आनन्दी जीव है, प्याली और प्यारी का दीवाना है, मस्ती का गाना गाता है, सुखवादी है या जिसे अंग्रेज़ी में ‘हिडोनिस्ट’ या ‘एपीक्योर’ कहेंगे। इतिहासी व्यक्ति उमर खैयाम ऐसा ही था या इससे विपरीत, इस पर मुँह खोलने का मुझे(हरिवंशराय बच्चन) हक़ नहीं है। फ़ारसी की रुबाइयों में उमर ख़ैयाम का जो व्यक्तित्व झलका है, उस पर अपनी राय देने का मैं अधिकारी नहीं हूँ क्योंकि फ़ारसी का मेरा ज्ञान बहुत कम है, लेकिन, एडवर्ड फ़िट्ज़जेरल्ड ने उन्नीसवीं सदी के मध्य में अपने अंग्रेज़ी तरजुमे के अन्दर उमर खैयाम का जो खाका खींचा है उसके बारे में बिना किसी संकोच या सन्देह के मैं कह सकता हूँ कि वह किसी सुखवादी आनन्दी जीवन अथवा किसी हिडोनिस्ट या ‘एपीक्योर’ का नहीं है।
इन रुबाइयों का लिखने वाला वह व्यक्ति है जिसने मनुष्य की आकांक्षाओं को संसार की सीमाओं के अन्दर घुटते देखा है, जिसने मनुष्य की प्रत्याशाओं को संसार की प्राप्तियों पर सिर धुनते देखा है, जिसने मनुष्य के सुकुमार स्वप्नों को संसार के कठोर सत्यों से टक्कर खाकर चूर-चूर होते देखा है। इन रूबाइयों के अन्दर एक उद्विग्न और आर्त आत्मा की पुकार है, एक विषण्ण और विपन्न मन का रोदन है, एक दलित और भग्न हृदय का क्रन्दन है। संक्षेप में कहना चाहें तो यह कहेंगे कि रुबाइयात मनुष्य की जीवन के प्रति आसक्ति और जीवन की मनुष्य के प्रति उपेक्षा का गीत है-रुबाइयों का क्रम जैसा रक्खा गया है उससे वे अलग-अलग न रहकर एक लम्बे गीत के ही रूप में हो गई हैं। यह गीत जीवन-मायाविनी के प्रति मानव का एकांतिक प्रणय निवेदन है। पर कौन सुनता है ? वह अपना क्रोध-विरोध प्रकट करता है-पर उसे हार ही माननी पड़ती है। मानव की दुर्बलता, उसकी असमर्थता, उसकी परवशता, उसकी अज्ञानता और उसकी लघुता के साथ उसका दम्भ, उसका क्रोध-विरोध और उसकी क्रान्ति उसे कितना दयनीय बना देती है ! रुबाइयात सुख का नहीं दुख का गीत है, सन्तोष का नहीं असन्तोष का गान है। अंग्रेज़ी लेखक जी.के. चेस्टरटन ने लिखा है कि Omar`s Philosophy is not the Philosophy of happy people but of unhappy people. अर्थात् उमर ख़ैयाम की फ़िलासफ़ी सुखियों की फ़िलासफ़ी नहीं दुखियों की फ़िलासफ़ी है। और क्या ऐसा भी है कि मनुष्य हो और दुखी न हो ? सदा नहीं तो कम से कम एक समय, और तब वह अवश्य उमर ख़ैयाम के विचारों की ओर खिंच जाता है। सोशल मिडिया से