जयंती पर विशेष-राजेन्द्र अवस्थी का जन्म 25 जनवरी, 1930 को जबलपुर के गढ़ा में हुआ था। उनके पिता का नाम धनेश्वर प्रसाद और माता बेटी बाई थीं। अवस्थी जी ने अपनी प्रारम्भिक शिक्षा मंडला में और फिर उच्च शिक्षा जबलपुर में प्राप्त की थी। शिक्षा के दौरान ही उनका साहित्य व पत्रकारिता संसार से इतना गहरा जुड़ाव हुआ कि अंतत: इसी क्षेत्र की ऊँचाइयों को उन्होंने स्पर्श किया। राजेन्द्र अवस्थी ने 1950 से 1957 तक कलेक्ट्रेट में लिपिक के पद पर कार्य किया, किंतु 1957 के आखिरी महीनों में वे पत्रकारिता के क्षेत्र में आ गए। पंडित द्वारका प्रसाद मिश्र के मार्गदर्शन में उन्होंने पत्रकारिता की शुरूआत की थी। वे ‘नवभारत में सहायक संपादक भी रहे थे। उन्होंने अपनी कलात्मक सोच और चमत्कारिक लेखनी से अंतर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त की। उन्होंने कई समाचार पत्रों सहित प्रतिष्ठित पत्रिकाओं का संपादन भी किया।
राजेन्द्र अवस्थी 1960 तक जबलपुर में रहे और इसके बाद दिल्ली चले गए। दिल्ली में रहते हुए उन्होंने जमीन से जुड़ी सामाजिक विसंगतियों को उजागर करने वाला साहित्य रचा एवं पत्रकारिता में भी सक्रिय रहे। इस दौरान अवस्थी जी का विवाह मंडला में शकुंतला अवस्थी से हुआ। उनके परिवार में तीन बेटे और दो बेटियाँ हैं। अवस्थी जी ने ‘कादम्बिनी के ‘कालचिंतन कॉलम के माध्यम से असीम लोकप्रियता प्राप्त की थी। यह ‘कालचिंतन की ख्याति ही थी कि कादम्बिनी ने किसी समय में बिक्री के सारे रिकॉर्ड ध्वस्त कर दिए थे। यह भी राजेन्द्र अवस्थी की लेखनी का ही करिश्मा था कि मृतप्राय: पत्रिकाओं के दौर में भी उनकी ‘कादम्बिनी साँस लेती रही। उनके कुशल संपादन और दूरदर्शिता का ही उदाहरण था कि रहस्य,रोमांच, भूत-प्रेत, आत्माओं, रत्न-जवाहरात, तंत्र-मंत्र-यंत्र व कापालिक सिद्धयिों जैसे विषय को भी गहरी पड़ताल, अनूठे विश्लेषण और अद्भुत तार्किकता के साथ वे पेश कर सके। कादम्बिनी के नियमित पाठक जानते थे कि कॉलम ‘कालचिंतन ने कितनी ही बार उनके मन की दार्शनिक उलझनों को सहजता से सुलझा कर रख दिया था। उनका एक-एक शब्द नपा-तुला, जाँचा-परखा और अनुभवों की गहनता से उपजा हुआ लगता था।
वे ‘कादम्बिनी पत्रिका के सम्पादक थे। उन्होंने जहाँ एक पत्रकार के रूप में कई मापदण्ड स्थापित किये, वहीं अपने साहित्य सृजन में भी अद्भुत सफलता प्राप्त की थी। राजेन्द्र अवस्थी ‘नवभारत, ‘सारिका, ‘नंदन और ‘साप्ताहिक हिन्दुस्तान के सम्पादक भी रहे थे। उन्होंने कई चर्चित उपन्यासों, कहानियों एवं कविताओं की रचना की। वह ‘ऑथर गिल्ड ऑफ़ इंडिया के अध्यक्ष भी रहे थे। दिल्ली सरकार की हिन्दी अकादमी ने उन्हें 1997-1998 में साहित्यिक कृति से सम्मानित किया था।
राजेन्द्र अवस्थी ने ‘कादम्बिनी के ऐसे अनूठे और अदभुत विशेषांक निकाले, जो आज भी सुधी पाठकों के पुस्तक-संग्रह में आसानी से मिल जाएँगे। ‘रिडर्स डाइजेस्ट की ‘सर्वोत्तम जैसी पत्रिका की बराबरी अगर कोई कर सकती थी तो वह सिर्फ ‘कादम्बिनी ही थी। ‘नवनीत इस कड़ी में दूसरे स्थान पर रखी जा सकती है। हालाँकि समय बदलने के साथ ‘कादम्बिनी की विषयवस्तु सिमटने लगी थी, लेकिन गुणवत्ता के स्तर पर वह हमेशा शीर्ष पर रही। राजेन्द्र अवस्थी के संपादकीय व्यक्तित्व का प्रभाव ‘कादम्बिनी के अलावा ‘साप्ताहिक हिन्दुस्तान, ‘सरिता और ‘नंदन जैसी स्तरीय पत्रिकाओं में भी बखूबी नजर आया। एक गम्भीर विचारक और वक्ता के रूप में भी अवस्थी जी को विशेष सम्मान प्राप्त थी। समाज, साहित्य, पत्रकारिता, राजनीति आदि विषयों पर सम्भाषण हेतु गम्भीर विषयों पर सारगर्भित विचारों के लिये राजेन्द्र अवस्थी को अक्सर सभाओं और गोष्ठियों में भी आमंत्रित किया जाता था। वहाँ आने वाला प्रत्येक श्रोता बड़े ध्यान से उनकी बात सुनता था। राजेन्द्र अवस्थी जी की साठ से भी अधिक कृतियाँ प्रकाशित हो चुकी हैं। उपन्यास, कहानी, निबंध, यात्रा-वृत्तांत के साथ-साथ उनका दार्शनिक स्वरूप है, जो शायद ही किसी कथाकार में देखने को मिलता है। उनकी प्रमुख रचनाएँ निम्नलिखित हैं-उपन्यास सूरज किरण की छाँव जंगल के फूल जाने कितनी आंखें बीमार शहर अकेली आवाज मछली बाज़ार कविता संग्रह मकड़ी के जाले दो जोड़ी आंखें मेरी प्रिय कहानियाँ उतरते ज्वार की सीपियाँ एक औरत से इंटरव्यू दोस्तों की दुनिया यात्रा वृत्तांत जंगल से शहर तक राजेन्द्र अवस्थी को विश्वयात्री भी कहा जा सकता है। दुनिया का कोई ऐसा देश नहीं, जहाँ अनेक बार वे न गए हों। वहाँ के सांस्कृतिक और सामाजिक जीवन के साथ उनका पूरा समन्वय रहा। कथाकार और पत्रकार होने के साथ ही, उन्होंने सांस्कृतिक राजनीति तथा सामयिक विषयों पर भी भरपूर लिखा। अनेक दैनिक समाचार-पत्रों तथा पत्रिकाओं में उनके लेख प्रमुखता से छपते रहे।अवस्थी जी हृदय के मरीज थे। दिल्ली में भर्ती कराया गया था। उनके स्वास्थ्य में सुधार भी आया था, लेकिन 30 दिसम्बर, 2009 को उनका देहांत हो गया।एजेन्सी।